सार
भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद चरम पर है। लद्दाख में चीनी सैनिकों की हरकत के बाद से देश में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मांग उठ रही है। लेकिन मौजूदा वक्त में कुछ सेक्टर ऐसे हैं, जहां चीन ने कब्जा कर रखा है।
नई दिल्ली. भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद चरम पर है। लद्दाख में चीनी सैनिकों की हरकत के बाद से देश में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मांग उठ रही है। लेकिन मौजूदा वक्त में कुछ सेक्टर ऐसे हैं, जहां चीन ने कब्जा कर रखा है। ऐसी ही भारत की टेक इंडस्ट्री है। आइए जानते हैं कि कैसे भारत की टेक इंडस्ट्री पर चीन ने अपना कब्जा जमा रखा है।
भारत चीनी निवेश पर प्रतिबंध लगाता है, तो क्या असर होगा?
पड़ोसी देशों खासकर चीन से निवेश पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के निर्णय का स्टार्टअप्स पर काफी असर पड़ेगा। चीन के निवेशकों ने पहले ही भारत की 30 बड़ी स्टार्टअप कंपनियों में 18 में से अपनी हिस्सेदारी से किनाराकशी कर लिया है।
एक फॉरेन पॉलिसी थिंक टैंक 'गेटवे हाउस : इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशन्स' ने अपनी हालिया रिपोर्ट में यह आकलन प्रस्तुत किया है कि भारत के टेक स्टार्टअप सेक्टर में चीन से जुड़ा निवेश 4 बिलियन डॉलर है। ये निवेश छोटे हो सकते हैं, लेकिन भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर में चीन के अच्छे-खासे प्रभाव को दिखाते हैं। मार्च, 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले विदेशी ऐप्स पर चीन का प्रभुत्व और नियंत्रण है। वैसे, कोविड-19 महामारी के दौरान चीनी निवेश पर असर पड़ा है।
चीन ने बिग बास्केट (Big Basket),बायजुज (Byju's), देल्हीवेरी (Delhivery), ड्रीम 11 (Dream 11), फ्लिपकार्ट (Flipkart), हाइक (Hike), मेकमायट्रिप (MakeMyTrip), ओला (Ola), पेटीएम (Paytm), पेटीएम मॉल (Paytm Mall), पॉलिसीबाजार (PolicyBazzar), क्विकर (Quikr), रिविगो (Rivigo), स्विगी (Swiggy), उड़ान (Udaan), जोमैटो (Zomato) जैसी कंपनियों में भारी निवेश किया है।
भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सिर्फ 6.2 बिलियन डॉलर है, लेकिन भारत के तकनीकी क्षेत्र में इसका प्रभाव बहुत ज्यादा है। 'गेटवे हाउस : इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशन्स' की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय टेक स्टार्टअप्स पर चीन का प्रभाव बहुत ज्यादा है, भले ही उसका निवेश कम हो। भारत के तकनीकी क्षेत्र में चीन की पहुंच काफी गहरी है। चीन के बाइटडांस (ByteDance) का ऐप टिकटॉक भारत में बहुत ही लोकप्रिय है। यहां तक कि इसने यूट्यूब को भी पीछे छोड़ दिया है। श्यामोई के फोन सैमसंग से ज्यादा बिकते हैं। हुवेई के राउटर का भी काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। ये निवेश करीब दो दर्जन चीनी कंपनियों और फंड्स के द्वारा किया जा रहा है, जिनका नेतृत्व अलीबाबा, बाइटडांस और टेनसेंट (Tencent) जैसी बड़ी कंपनियां कर रही हैं। इन्होंने 92 भारतीय स्टार्टअप्स में निवेश किया है, जिनमें पेटीएम Paytm, बायजुज (Byju's), ओयो (Oyo) और ओला (Ola) शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था, और टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम के साथ बंध गया है और उस पर पूरा असर डाल रहा है।
रिपोर्ट का कहना है कि किसी पोर्ट और रेलवे लाइन में किए गया निवेश जैसे दिखाई पड़ता है, उस तरह चीन का तकनीकी निवेश आसानी से दिखाई नहीं पड़ सकता। इसकी वजह यह है कि यह निवेश बहुत ज्यादा नहीं है। यह महज 100 मिलियन डॉलर के करीब है और प्राइवेट सेक्टर में किया गया है। इसके अलावा, आधिकारिक तौर पर किया गया चीनी निवेश जिसमें हांगकांग भी शामिल है, सिर्फ 1.5 फीसदी है। इसमें सिंगापुर और दूसरी जगहों के फंड्स से किया गया निवेश शामिल नहीं है, जिसका स्वामित्व वास्तव में चीन के पास है। इसलिए चीन के द्वारा किया गया निवेश कहीं ज्यादा है।
भारत में चीनी निवेश
भारत में चीन के द्वारा किया गया एकमात्र सबसे बड़ा निवेश 1.1 बिलियन डॉलर का है। यह निवेश फोसुन (Fosun) ने साल 2018 में किया और ग्लैंड फार्मा (Gland Pharma) का अधिग्रहण कर लिया। यह भारत में किए गए कुल चीनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 17.7 फीसदी है, लेकिन अपने आप में अलग तरह का है। रिपोर्ट के मुताबिक, गेटवे हाउस ने चीनी कंपनियों द्वारा किए गए कुल 5 निवेश की पहचान की जो 100 मिलियन डॉलर से ज्यादा के थे। इनमें एमजी मोटर्स में किया गया 300 मिलियन डॉलर का निवेश भी शामिल है। चीन भारत के स्टार्टअप में सबसे ज्यादा सक्रिय है। गेटवे हाउस ने ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है, जिनमें चीन के निवेशकों ने इन्वेस्टमेंट किया है। इनमें ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया और सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विसेस और लॉजिस्टिक्स शामिल हैं। भारत के 30 से ज्यादा यूनिकॉर्न्स (वे स्टार्टअप्स जिनकी वैल्यूएशन 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा हो) में से कम से कम आधे यानी 15 में किसी न किसी चीनी इन्वेस्टर ने निवेश किया है।
ओवरसीज वेंचर कैपिटल
'गेटवे हाउस : इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशन्स' की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय स्टार्टअप्स में असमान ओवरसीज वेंचर कैपिटल फंडिंग हुई है। सभी स्टार्टअप्स जिनकी वैल्यूएशन 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा है, उन्हें विदेशों से फंड मिला है। फ्लिपकार्ट और पेटीएम का तो पूरी तरह से अधिग्रहण कर लिया गया। फिर भी भारत के पास अपना सेकोउइया (Sequoia) या गूगल (Google) नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज जियो के जरिए अलीबाबा के सफल मॉडल को भारत में अपनाने की कोशिश में है।
विश्लेषण के मुताबिक, कुछ बड़ी चीनी इन्वेस्टमेंट कंपनियों का अपना इकोसिस्टम है। इनमें ऑनलाइन स्टोर्स, पेमेंट गेटेवेज, मैसेजिंग सर्विसेस वगैरह शामिल हैं। कोई भी चीनी फर्म भारतीय कंपनी में निवेश करने के बाद उसे अपने इकोसिस्टम में शामिल कर लेती है। इसका मतलब कंपनी के लिए यह होता है कि उसका अपने डाटा पर कोई कंट्रोल नहीं रह जाता।
आम तौर पर वेंचर कैपिटलिस्ट्स के कंशोर्टियम द्वारा निवेश किए जाने पर कोई एक पार्टनर स्टार्टअप को सलाह देने लगता है। चीनी इन्वेस्टर स्टार्टअप को तकनीकी जरूरतों के लिए चाइनीज सॉल्यूशन्स का इस्तेमाल करने पर जोर डालते हैं। अगर स्टार्टअप ऐसा करता है तो उसका अपने डाटा पर नियंत्रण नहीं रह जाता। अगर यह प्रक्रिया दूसरी कई तरह की कंपनियों या स्टार्टअप्स द्वारा अपनाई जाती है, उदाहरण के लिए टैक्सी सर्विस, होटल एग्रीगेटर, ऑनलाइन रिटेल आउटलेट, पेमेंट प्रोवाइडर, तो सबके साथ एक ही बात होती है। उनके बिजनेस का और पर्सनल डाटा भी उनके नियंत्रण में नहीं रह जाता।