सार

भारत की पहली और एशिया की पांचवीं मेट्रो सिस्टम की शुरुआत कोलकाता में हुई थी। इसकी शुरुआत आज से ठीक 40 साल पहले 24 अक्टूबर 1984 को हुई थी।

कोलकाता मेट्रो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार (6 मार्च) को कोलकाता में भारत के पहले पानी के नीचे मेट्रो मार्ग का उद्घाटन किया। ये देश में बुनियादी ढांचे के विकास के ओर ले जाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। ये देश की प्रगति को प्रदर्शित करने वाली एक ऐतिहासिक परियोजना है।इसके अलावा उन्होंने 15,400 करोड़ रुपये की कई कनेक्टिविटी परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी। कोलकाता की हुगली नदी के नीचे बनी सुरंग, हावड़ा मैदान और एस्प्लेनेड को जोड़ने का काम करेगी। ये एक विश्व स्तरीय परियोजना है। इस सुरंग की सबसे खास बात ये है कि ये सतह से 33 मीटर नीचे है, जो खुद में बेहद अलग है।

हुगली नदी के अंडरवाटर सुरंग की खास बातें  

  • कोलकाता मेट्रो के हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड खंड में हुगली नदी के नीचे भारत की पहली परिवहन सुरंग है।
  • ये ईस्ट-वेस्ट मेट्रो का हिस्सा है।  ये हुगली के पश्चिमी तट पर हावड़ा को पूर्वी तट पर साल्ट लेक सिटी से जोड़ेगी, जिसकी कुल लंबाई 16।5 किमी है।
  • ये भारत में पहली बार होगा, जब समुंद्र के अंदर ट्रेन चलेगा।
  • इसका उद्देश्य ऐतिहासिक शहर कोलकाता में यातायात की भीड़ को कम करना है, जिसका इतिहास 300 साल पुराना है।
  • कोलकाता मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (KMRCL) के मुताबिक  10।8 किलोमीटर का हिस्सा भूमिगत है, जबकि 5।75 किलोमीटर का हिस्सा वायाडक्ट पर ऊंचा है।
  • मेट्रो हुगली नदी के नीचे 520 मीटर की दूरी को मात्र 45 सेकंड में कवर लेगा।

भारत की पहली मेट्रो कहां शुरू हुई थी?

भारत की पहली और एशिया की पांचवीं मेट्रो सिस्टम की शुरुआत कोलकाता में हुई थी। इसकी शुरुआत आज से ठीक 40 साल पहले  24 अक्टूबर 1984 को हुई थी। मेट्रो वेबसाइट के अनुसार, इसने एस्प्लेनेड और नेताजी भवन के बीच पांच स्टेशनों के साथ 3।40 किमी की दूरी तय की थी।

पानी के अंदर ट्रेन सुरंग बनाने का विचार ब्रिटिश कनेक्शन

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार बंगाल में जन्मे ब्रिटिश इंजीनियर हार्ले डेलरिम्पल-हे ने एक सदी पहले कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी 10।6 किमी भूमिगत रेलवे की कल्पना की थी। इस योजना में हुगली नदी के नीचे एक सुरंग और 10 स्टॉप शामिल थे। हालांकि, फंडिंग चुनौतियों और शहर की रूपरेखा की वजह से परियोजना कभी साकार नहीं हो पाई।

बाद में 1928 में शहर की बिजली आपूर्ति कंपनी सीईएससी ने बिजली केबलों के लिए हुगली के नीचे एक सुरंग बनाने के लिए हार्ले से संपर्क किया। उन्होंने चुनौती स्वीकार की और सुरंग 1931 में कोलकाता की पहली पानी के नीचे सुरंग बन गई, जो कोलकाता और हावड़ा के बीच बिजली केबल संचारित करने में काम आई।

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