चीफ जस्टिस की बात पर वकील हेगड़े ने कहा- लेकिन कुछ दिनों के लिए हमारी आस्था को रोका नहीं जा सकता। इस पर चीफ जस्टिस बोले- हम सुनवाई चलने तक सभी के धार्मिक प्रतीक पहनने पर रोक लगा रहे हैं। इस पर वकील ने विरोध जताया। बता दें कि इस मामले की सुनवाई अब सोमवार दोपहर 2.30 बजे होगी।
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Hijab Row Live updates : HC का फैसला आने तक स्कूल- कॉलेजों में धार्मिक परिधान पहनने पर रोक, 14 को अगली सुनवाई
कर्नाटक का हिजाब मामला अब हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच के सामने है। आज दोपहर 2:30 से बजे मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की तीन सदस्यीय बेंच में हो रही है। सरकार और छात्राओं के वकीलों के बीच बहस जारी है। शाम 5 बजे तक चली दलीलों के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक मामले में फैसला नहीं आता है तब तक स्कूल-कॉलेजों में धार्मिक परिधान पहनने की छूट नहीं होगी। अगली सुनवाई सोमवार 14 फरवरी को होगी।
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इस पर कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि हम इस मामले में स्कूल-कॉलेज खोलने का आदेश जारी करेंगे, लेकिन जब तक इस मामले की सुनवाई जारी रहती है, तब तक किसी स्टूडेंट को धार्मिक कपड़े पहनने की जिद नहीं करनी चाहिए। यह कुछ दिनों का मामला है, लेकिन जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता, तब तक कोई भी अपनी धार्मिक पोशाक न पहने।
सुनवाई के दौरान वकील हेगड़े ने कोर्ट से अपील की कि वो अंतिरम आदेश दे ताकि याचिका लगाने वाली लड़कियों को राहत मिल सके और वे इस सेशन में बचे हुए 3 महीनों के दौरान कॉलेज अटेंड कर सकें।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने आपकी इस बात को समझ लिया है कि कर्नाटक एजुकेशन एक्ट में यूनिफॉर्म के नियम का उल्लंघन करने पर दंड का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बाद वकील हेगड़े ने प्राइवेसी को लेकर पुत्तास्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का रेफरेंस दिया। इसके बाद उन्होंने केरल हाईकोर्ट के जजमेंट का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि हिजाब एक जरूरी धार्मिक प्रतीक है।
सुनवाई के दौरान वकील संजय हेगड़े ने सरकार के कदम पर सवाल उठाते हुए कहा- 1983 के कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट में ड्रेस या यूनिफॉर्म के बारे में कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। अपने यूनिवर्सिटी के दिनों को याद करते हुए हेगड़े ने कहा कि तब भी कोई यूनिफॉर्म नहीं होती थी। उन्होंने अपनी दलील में कहा कि पहले के दिनों में यूनिफॉर्म सिर्फ स्कूल में होती थी। कॉलेजों के लिए वर्दी बहुत बाद में आई।
उडुपी की छात्राओं की तरफ से वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े दलील वकील संजय हेगड़े ने कहा- यह केवल धार्मिक आस्था का मामला नहीं है, बल्कि इससे लड़कियों की शिक्षा का सवाल भी जुड़ा हुआ है। यूनिफॉर्म के नियम का उल्लंघन करने पर दंड का कोई प्रावधान नहीं है। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम में जो भी दंड की व्यवस्था की गई है, वह ज्यादातर प्रबंधन से जुड़े मामलों के लिए है।
मामले की सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि हम देखेंगे कि हिजाब पहनना मौलिक अधिकार है या नहीं। इसके बाद कोर्ट ने मीडिया को निर्देश दिए कि वो अदालत की मौखिक कार्यवाही की रिपोर्टिंग न करे, बल्कि फाइनल ऑर्डर आने तक इंतजार करे। बता दें कि यह मामला बुधवार को हाईकोर्ट की बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया था।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक अदालत इस मामले का फैसला नहीं करती तब तक किसी को भी धार्मिक परिधान (स्कूल-कॉलेज में ) पहनने पर रोक लगाई जा रही है। अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने अदालत की बात पर आपत्ति जताई। कहा कि हमें खाना और पानी दोनों में से एक को चुनने को कहा जा रहा है। इस पर अदालत ने कहा कि हम सभी को (अंतरिम रूप से) इन सभी प्रथाओं को अपनाने से रोकेंगे।
छात्राओं की तरफ से कामत ने कई मामलों का हवाला दिया। इन्हें सुनने के बाद बेंच ने कहा कि हम एक आदेश पारित करेंगे कि संस्थानों को खुलने होने दें, लेकिन जब तक मामला लंबित है, छात्र और अन्य हितधारक किसी भी धार्मिक परिधान या सिर की पोशाक पहनने पर जोर नहीं देंगे। हम सभी को रोकेंगे। कोर्ट ने कहा- हम अमन-चैन चाहते हैं। आप लोगों को इन सभी धार्मिक चीजों को पहनने की जिद नहीं करनी चाहिए जो अनुकूल नहीं हैं। बेंच के इस फैसले पर कामत ने कहा- हमें भोजन और पानी के बीच चयन करने के लिए कहा जा रहा है। हमें शिक्षा और विवेक के बीच चयन करने के लिए कहा जा रहा है।
हेगड़े के बाद देवदत्त कामत ने अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि सरकार का आदेश बिना दिमाग का इस्तेमाल किए हुए बनाया गया है। इसका संपूर्ण आधार हाईकोर्ट के वो तीन निर्णय हैं, जिनके हिसाब से हिजाब आर्टिकल 25 का हिस्सा नहीं है। मैं यह साबित करूंगा कि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकारी आदेश में किए गए तीनों निर्णय पूरी तरह से राज्य के खिलाफ हैं। बेंच ने कहा कि बेंच का कहना है कि राज्य की समझ ऐसी नहीं है। इस पर कामत ने कहा कि उनकी समझ पूरी तरह से गलत है। सरकारी आदेश के आधार पर कॉलेज यह निर्धारित कर रहे हैं कि हिजाब की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह टिक नहीं सकता।
हेगड़े ने विभिन्न केंद्रीय अधिनियमों का हवाला दिया और कहा कि इनमें विशिष्ट प्रावधान हैं जो सिर को ढकने की अनुमति देते हैं। मोटर वाहन अधिनियम तक सिर ढकने की अनुमति देता है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने परदानशीन महिला के लिए खास नियम बनाए हैं। उन्होंने इसके लिए आदेश 9 के नियम 8 का हवाला दिया।
हेगड़े ने अम्नाह बिंट बनाम सीबीएसई मामले का जिक्र किया। हेगड़े ने कहा कि यह मामला सरकारी संस्थान का है। यह संस्थान कर्नाटक के प्रत्येक निवासी और भारत के प्रत्येक नागरिक का है। तो क्या इसमें आने के लिए लोगों को अपना भरोसा त्यागना होगा।
सुनवाई के दौरान छात्राओं के वकील ने जिग्या यादव बनाम सीबीएसई केस और मेनका गांधी के मामले में पुट्टस्वामी फैसले का जिक्र किया। हेगड़े ने पुट्टस्वामी के हवाले से कहा- कुछ समूहों की अपनी उपस्थिति और परिधान (जैसे लंबे बाल रखना और पगड़ी पहनना) निर्धारित करने की स्वतंत्रता को गोपनीयता के अधिकार के हिस्से के रूप में नहीं, बल्कि उनके धार्मिक विश्वास के हिस्से के रूप में संरक्षित किया जाता है।उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकार राजनेताओं या सांसदों पर नहीं छोड़े जा सकते, चाहे वे सत्ता में हों या सत्ता से बाहर। अंतत: संविधान ही है जो सभी नागरिकों की रक्षा करता है।
हेगड़े ने कहा कि मेरी राय है कि अगर संवैधानिक मुद्दों पर फैसला किए बिना वैधानिक सवालों के आधार पर किसी मामले का फैसला किया जा सकता है, तो उसे तय किया जाना चाहिए इस पर बेंच का कहना है कि चरण खत्म हो गया है क्योंकि एकल-न्यायाधीश पहले ही कह चुके हैं कि मामले में संवैधानिक मुद्दे शामिल हैं और यह बड़ी बेंच के सामने आ चुका है।
हेगड़े ने कहा कि मैं एजी के साथ बैठने और अंतरिम व्यवस्था पर काम करने के लिए तैयार हूं। कामत भी सहमत हैं। अधिवक्ता कालीश्वरम राज भी अंतरिम व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। हिजाब पहनने का अधिकार अभिव्यक्ति, निजता और अंतःकरण की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आता है।
हेगड़े ने तर्क दिया कि ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. अम्बेडकर को बचपन में ही स्कूल में अलग बिठाया गया था। गणतंत्र के इतने वर्षों के बाद मैं किसी तरह का अलगाव नहीं चाहता। हम एक ऐसा देश हैं जैसे कोई दूसरा नहीं। हम कई तरह के प्रभावों और तरह के लोगों का मिश्रण हैं। भारत में एक ही सिद्धांत है - कभी-कभी हमें कृपया समायोजित करना पड़ता है। हेगड़े बिजो इमैनुएल केस को कोट करते हुए कहते हैं - हमारी परंपरा सहिष्णुता सिखाती है; हमारा दर्शन सहिष्णुता का उपदेश देता है; हमारा संविधान सहिष्णुता का अभ्यास करता है; आइए हम इसे कम न करें।
छात्राओं के वकील हेगड़े ने कहा कि सरकार आग से खेल रही है। मैं आग में घी नहीं डालना चाहता। यह एक ऐसा राज्य है जो किसी भी तरह की गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह एक ऐसा राज्य है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान देता है।
हेगड़े ने कहा- मैं राज्य से अनुरोध कर रहा हूं कि ड्रेस, भोजन, आस्था के बावजूद वे सभी हमारी बच्चियां हैं। यह केवल आवश्यक धार्मिक प्रथा के बारे में नहीं है। यह आवश्यक शिक्षा अधिकारों का मामला है। इस न्यायालय के एक वकील के रूप में मेरा धार्मिक विश्वास है कि भारत का संविधान सर्वोच्च है। एक लेख यहां हो सकता है, दूसरा वहां। अनुच्छेद 14, 21 की कई व्याख्याएं हो सकती हैं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि यह सभी पर लागू होता है।
हेगड़े ने कहा कि राज्य सरकार के लिए यह कहना आसान है कि वे (छात्राएं) कॉलेज वापस जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि जब तक अदालत मामले का फैसला नहीं कर लेती, तब तक बीच का रास्ता अपनाने में ही समझदारी है।