कर्नाटक कैबिनेट ने कई बिल पास किए। हेट स्पीच पर ₹1 लाख तक जुर्माना व 2 साल जेल का प्रावधान है। मंदिर समितियों से कुष्ठ रोगियों पर लगी पाबंदी हटाई गई। प्रमुख मंदिर प्राधिकरणों में अब केवल मुजरई विभाग के अधिकारी ही सचिव बनेंगे।
बेंगलुरु : हेट स्पीच, नफरत फैलाने या हिंसा भड़काने वालों पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना और 2 साल तक की जेल की सज़ा देने वाले 'हेट स्पीच और हेट क्राइम कंट्रोल बिल-2025' और मंदिर मैनेजमेंट कमेटियों की सदस्यता के लिए कुष्ठ रोगियों पर लगी पाबंदी हटाने वाले 'कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक-2025' समेत आठ विधेयकों को गुरुवार की कैबिनेट मीटिंग में मंजूरी दी गई।
हेट स्पीच और हेट क्राइम कंट्रोल बिल-2025 पर पिछले जून में ही चर्चा हुई थी, लेकिन कुछ कन्फ्यूजन की वजह से इसे रोक दिया गया था। गुरुवार की कैबिनेट मीटिंग में पास किए गए बिल में धर्म, जाति, नस्ल, भाषा, लिंग, जन्म स्थान या सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर नफरत फैलाने या हिंसा भड़काने वालों पर पहली बार उल्लंघन करने पर 1 साल तक की जेल और 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है। साथ ही, बार-बार उल्लंघन करने पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना और 2 साल तक की जेल या दोनों की सज़ा का प्रावधान किया गया है।
सोशल मीडिया पर भी लागू
नफरत फैलाने के मामले में सोशल मीडिया और मीडिया की जवाबदेही एक बहुत ही अहम पहलू है। यह साफ किया गया है कि अगर अखबार, मीडिया या सोशल मीडिया के जरिए नफरत फैलाई जाती है तो भी कार्रवाई की जाएगी।
कुष्ठ रोगियों पर लगी पाबंदी हटेगी
कैबिनेट ने 'कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक-2025' में संशोधन करने का फैसला किया है। इसके तहत कुष्ठ रोगियों, कुष्ठ रोग से ठीक हो चुके लोगों और ऐसी ही गंभीर बीमारियों वाले लोगों को मंदिर मैनेजमेंट कमेटियों में सदस्य बनने से रोकने वाले नियमों को खत्म किया जाएगा। कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1997 की धारा 25(4)(1) और (2) में एक नियम था कि कुष्ठ रोग से पीड़ित या किसी भयानक बीमारी वाले लोग मंदिर की प्रशासनिक समिति के सदस्य बनने के लिए अयोग्य हैं। इसकी आलोचना हो रही थी कि यह मानवाधिकारों का उल्लंघन और भेदभाव है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश देकर कुष्ठ रोगियों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने को कहा था। इसी वजह से इसे हटाने का फैसला लिया गया है।
