सार
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने ज्यूडिशियल एक्टिविज्म को लेकर कहा है कि न्यायपालिका भटक जाए तो उन्हें सुधारने का कोई उपाय नहीं है। इसके चलते ज्यूडिशियल एक्टिविज्म जैसे सवाल उठते हैं।
अहमदाबाद। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान ज्यूडिशियल एक्टिविज्म को लेकर कड़ी बात की। उन्होंने कहा, "हमारे पास विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीन स्तंभ हैं। मुझे लगता है कि कार्यपालिका और विधायिका अपने कर्तव्यों में बंधे हैं और न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। लेकिन मुद्दा यह है कि जब न्यायपालिका भटक जाती है तो उन्हें सुधारने का कोई उपाय नहीं है।"
कानून मंत्री ने कहा, "जब न्यायपालिका को नियंत्रित करने, उसे अपनी सीमा में बांधकर रखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती है तो ज्यूडिशियल एक्टिविज्म जैसे सवाल उठते हैं। कई जज ऐसे ऑब्जर्वेशन देते हैं जो उनके ऑर्डर का हिस्सा नहीं होते। जज ऑब्जर्वेशन देकर एक तरीके से उनकी सोच उजागर करते हैं। समाज में इसका विरोध भी होता है।"
जज ऑर्डर के जरिए अपनी बात कहें
किरेन रिजिजू ने कहा, "जब भी ज्यूडिशियरी के साथ मेरी वार्ता होती है, जजों के साथ मेरी बातचीत होती है तो उससे कहता हूं कि जजों को जो भी कहना है वो अगर ऑर्डर के जरिए कहें तो ज्यादा अच्छा रहेगा,ना की टिप्पणियों के द्वारा। दूसरा जब ज्यूडिशियरी अपने दायरा से बाहर जाती है। मैं एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। अगर एक जज कहता है कि कचरा को यहां से हटाकर वहां डालो। यहां इन लोगों का अप्वाइंटमेंट आप दस दिन में पूरा करो। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर को कोर्ट में बुलाएंगे और कहेंगे कि ये करो। ये सारे काम एग्जीक्यूटिव के हैं। आप जज हैं। आपको नहीं पता कि वहां काम करने में क्या परेशानी आ रही है। आपकी वित्तीय स्थिति क्या है।
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उन्होंने कहा, "जैसे उत्तर प्रदेश में किसी एक जज ने कहा कि इतने दिनों के अंदर सारे जिला अस्पतालों में कोरोना की दवा, एम्बुलेंस और ऑक्सीजन दिला दो। उतना हमारे पास पर्याप्त होना चाहिए। एक देश की अपनी क्षमता होती है। जिसको जिस काम का दायित्व दिया गया है उसपर वह अपना ध्यान दे तो ज्यादा अच्छा रहेगा।"
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