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मणिपुर में हिंसा को 3 महीने से रोक पाने में क्यों विफल हुई सरकार, जानिए शांति बहाली के सामने आ रहीं कौन सी प्रमुख चुनौतियां
Manipur 10 challenges: मणिपुर में कुकी आदिवासी समुदाय और मैतेई लोगों के बीच तीन महीना से हिंसा जारी है। दोनों समुदायों के लोग जनजातीय आर्थिक लाभ और कोटा साझा करने को लेकर आपस में लड़ रहे। हिंसा को रोकने के लिए सारे प्रयास विफल रहे हैं।
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मणिपुर हिंसा रोकने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई दिनों तक कैंप किया। शांति बहाली के लिए गृह मंत्रालय ने राज्यपाल अनुसुइया उइके के नेतृत्व में पीस कमेटी गठित की। लेकिन कुकी और मैतेई दोनों समुदायों के प्रभावशाली नागरिक ग्रुप्स ने विभिन्न कारणों से पीस कमेटी से खुद को अलग कर लिया। मंत्रालय की गठित पीस कमेटी पूरी तरह विफल रही।
सरकार पिछले दरवाजे से भी मैतेई सिविल सोसाइटी और कुकी विद्रोही समूहों के साथ बातचीत कर रही है। दोनों पक्षों से बातचीत कर हिंसा को रोकने का प्रयास हो रहा है लेकिन इन वार्ताओं से दोनों पक्षों के बीच विश्वास कायम करना अभी काफी लंबी प्रक्रिया लग रही। सरकार पर भरोसा कायम होने के बाद ही दोनों पक्ष किसी भी समझौता या शांति बहाली की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
मणिपुर सरकार और मैतेई समाज, किसी भी सूरत में क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं करना चाहता। जबकि कुकी समुदाय का कहना है कि 60 सदस्यीय विधानसभा में 40 विधायक मैतेई लोगों का है और उनका राजनीतिक प्रभुत्व है। ऐसे में कुकी समाज अलग एडमिनिस्ट्रेशन की मांग कर रहा।
मैतेई और कुकी दोनों सिक्योरिटी फोर्सेस पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। कुकी समुदाय, मणिपुर पुलिस पर पक्षपाती होने का आरोप लगा रहा। जबकि मैतेई समाज असम राइफल्स पर अविश्वास कर रहा। दरअसल, केंद्रीय बल राज्य में असीमित समय तक नहीं रह सकते। ऐसे में राज्य में पुलिस की जिम्मेदारी कानून-व्यवस्था को लेकर होगी और असम राइफल्स म्यांमार से लगे बार्डर की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाएंगे।
भाजपा के पूर्वोत्तर के सबसे बड़े संकट मोचक भी मणिपुर में फेल हो चुके हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य प्रवास के बाद संघर्ष विराम कराने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी थी। हिमंत बिस्वा सरमा दोनों पक्षों से बातचीत शुरू किए थे कि 2017 का एक लेटर अचानक लीक हो गया। लीक हुआ लेटर, कुकी विद्रोहियों के संघर्ष विराम के लिए गुप्त समझौता को सामने ला दिया। इस लेटर के सामने आने के बाद मैतेई समुदाय का उन पर विश्वास खत्म हो गया।
कुकी समुदायों ने बातचीत में शामिल होने से इसलिए इनकार कर दिया कि एन बीरेन सिंह को मणिपुर के मुख्यमंत्री पद से जबतक हटाया नहीं जाएगा वह किसी भी बातचीत का हिस्सा नहीं होंगे। कुकी समुदाय के इतर मैतेई समाज बीरेन सिंह के सपोर्ट में है।
मणिपुर का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय नागा, इस संघर्ष से बाहर है। नागा समाज की राजनीतिक पार्टी नागा पीपुल्स फ्रंट, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के साथ है। वह शांति बहाली के लिए लगातार काम कर रहे हैं।
मिज़ोरम और उसके मुख्यमंत्री का इन्वाल्वमेंट भी मणिपुर सरकार और मैतेई को परेशान कर रहा है। दरअसल, मिजो जनजाति का कुकी, जो और चिन जनजातियों के साथ नजदीकी संबंध है। केंद्र और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की नाराजगी के बाद भी मिजोरम सरकार ने म्यांमार और मणिपुर के विस्थापितों को आश्रय दिया है।
मणिपुर के प्रमुख हिस्सों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को वापस ले लिया गया है। अफ्स्पा कानून के खत्म किए जाने से राज्य के कई क्षेत्रों में सैन्य अभियानों के लागू करने में टेक्निकल समस्याएं पैदा हो रही है।
मणिपुर तीन मई से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। चार मई को भीड़ द्वारा दो नग्न महिलाओं का परेड कराए जाने की घटना हुई थी। राज्य में हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोगों की मौत हुई है। यहां मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच संघर्ष हो रहा है। कई हजार लोग बेघर हो चुके हैं। सैकड़ों घरों को आग के हवाले दंगाई कर चुके हैं। राज्य में शांति बहाली के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर उनके सहयोगी राज्यमंत्री नित्यानंद राय के अलावा सेना व सुरक्षा बलों के बड़े अफसर कैंप कर चुके हैं। शांति बहाली की हर कोशिश नाकाम साबित हो रही हैं।