सार
क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को 1988 के रोड रेज मामले (Road rage case) में एक साल की जेल की सजा सुनाई गई है।
नई दिल्ली। 1988 के रोड रेज मामले (Road rage case) में सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को एक साल की जेल की सजा सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले 34 साल पुराने रोड रेज मामले में कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू को बरी करने के अपने मई 2018 के आदेश की समीक्षा की अनुमति दी थी, जिसमें पटियाला निवासी गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी।
सजा सुनाये जाने के बाद मीडियाकर्मियों ने बात करनी चाही तो सिद्धू ने सिर्फ 'नो कमेंट्स' कहा। सूत्रों के अनुसार पुलिस आज ही सिद्धू को गिरफ्तार कर पटियाला जेल भेज सकती है। सिद्धू सरेंडर भी कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को सरेंडर या गिरफ्तारी पर रोक के लिए राहत नहीं दी है।
आदेश के अनुसार सिद्धू को पंजाब पुलिस हिरासत में लेगी। सिद्धू को पहले 1000 रुपए के जुर्माने के साथ छोड़ दिया गया था। अब सिद्धू को आईपीसी की धारा 323 के तहत अधिकतम संभव सजा दी गई है। शीर्ष अदालत ने 15 मई, 2018 को सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया था और मामले में उन्हें तीन साल की जेल की सजा सुनाई थी। उन्हें एक वरिष्ठ नागरिक को चोट पहुंचाने का दोषी ठहराया था।
1 हजार रुपए का जुर्माना लगाकर सिद्धू को छोड़ दिया गया था
नवजोत सिद्धू को 65 वर्षीय व्यक्ति को "स्वेच्छा से नुकसान पहुंचाने" का दोषी पाए जाने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जेल की सजा से बख्श दिया था। उनपर 1,000 रुपए का जुर्माना लगाया था। बाद में सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत ने मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका की जांच करने के लिए सहमति व्यक्त की और उस पर सिद्धू को नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आईपीसी की धारा 304 ए के तहत गैर इरादतन हत्या के लिए सिद्धू को दोषी ठहराने की गुरनाम सिंह के परिवार की याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि कोर्ट ने सिद्धू को धारा 323 के तहत अधिकतम सजा दी।
बीच सड़क पर जिप्सी खड़ी करने को लेकर हुआ था विवाद
27 दिसंबर 1988 को सिद्धू और उनके दोस्त रूपिंदर सिंह संधू ने कथित तौर पर पटियाला में शेरनवाला गेट क्रॉसिंग के पास बीच सड़क पर अपनी जिप्सी खड़ी की थी। जब 65 वर्षीय गुरनाम सिंह एक कार में मौके पर पहुंचे तो उन्होंने उन्हें एक तरफ हटने के लिए कहा।
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इसके बाद सिद्धू ने सिंह की पिटाई कर दी। उन्होंने कथित तौर पर भागने से पहले सिंह की कार की चाबियां भी हटा दीं ताकि उन्हें चिकित्सा सहायता न मिल सके। सितंबर 1999 में सिद्धू को हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया था, लेकिन दिसंबर 2006 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने उन दोनों को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया। इसके साथ ही दोनों पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।
सिद्धू और संधू ने बाद में सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी। सिद्धू ने दावा किया कि सबूत विरोधाभासी थे और चिकित्सा राय "अस्पष्ट" थी। 2007 में अदालत ने उनकी सजा पर रोक लगा दी थी।
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