One Nation One Election पर संसदीय समिति के सामने पूर्व CJI DY चंद्रचूड़ और JS खेहर ने कहा – चुनाव आयोग को असीमित अधिकार न दिए जाएं। पांच साल के कार्यकाल को 'अवश्य संरक्षित' रखने की सिफारिश।

One Nation One Election: देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने की दिशा में बनाए जा रहे One Nation, One Election सिस्टम पर देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं। पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) और पूर्व सीजेआाई जेएस खेहर (JS Khehar) ने संविधान संशोधन विधेयक 2024 की समीक्षा कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के समक्ष कहा है कि चुनाव आयोग को असीमित अधिकार देना लोकतांत्रिक संतुलन के लिए खतरनाक हो सकता है।

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JPC की बैठक में दिए सुझाव

भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष दोनों पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने प्रेजेंटेशन देते हुए कहा: संविधान संशोधन विधेयक में चुनाव आयोग को जो अनियंत्रित शक्तियां दी जा रही हैं, वे नियंत्रण और संतुलन (Checks and Balances) के मौलिक सिद्धांत के विरुद्ध हैं। चुनाव संचालन में एक स्वतंत्र निगरानी तंत्र (Oversight Mechanism) होना चाहिए।

पांच साल का कार्यकाल छेड़ा नहीं जाना चाहिए

पूर्व CJI ने यह भी कहा कि किसी भी चुनी हुई सरकार का पांच साल का कार्यकाल (Five-Year Tenure) लोकतंत्र और Good Governance के लिए अनिवार्य है। चंद्रचूड़ ने पहले भी कहा था कि यदि सरकार का कार्यकाल एक साल या उससे कम कर दिया जाए तो Model Code of Conduct के चलते कोई भी महत्वपूर्ण परियोजना प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो सकेगी।

पहले भी उठी है यही चिंता

इससे पहले पूर्व CJI रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) भी समिति के सामने चुनाव आयोग को मिल रही व्यापक शक्तियों पर सवाल उठा चुके हैं। JPC की यह आठवीं बैठक थी और पूर्व CJI यूयू ललित (UU Lalit) भी पहले इस मुद्दे पर राय रख चुके हैं।

समिति का जवाब: संविधान के अनुरूप होगा बिल

पीपी चौधरी ने इन सुझावों को गंभीरता से लेने की बात कही और कहा कि यदि समिति को लगता है कि विधेयक में संशोधन की ज़रूरत है तो राष्ट्रहित में संशोधन किए जाएंगे। उन्होंने यह भी दोहराया कि One Nation, One Election प्रणाली राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक है। संविधानिकता बरकरार रहनी चाहिए ताकि यह व्यवस्था सैकड़ों सालों तक टिक सके।

विपक्ष की आलोचना और जूरीस्ट का मत

जहां विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है, वहीं अब तक समिति के सामने पेश हुए अधिकतर कानूनी विशेषज्ञों ने इस आपत्ति को खारिज किया है। उनका कहना है कि संविधान में कहीं यह नहीं लिखा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग कराने ही होंगे।