सार

19 जुलाई 2021 को, एक भारतीय समाचार पोर्टल सहित 17 अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के एक ग्रुप ने पेगासस प्रोजेक्ट नाम के दुनिया भर के फोन नंबरों की लीक हुई सूची के बारे में एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। लीक की गई सूची में ये नंबर कथित तौर पर इजरायल के एनएसओ ग्रुप द्वारा बेचे गए पेगासस स्पाइवेयर द्वारा हैक किए गए थे। हैक किए जाने वाले फोन की ‘‘टारगेट लिस्ट‘‘ हैं।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस स्पाइवेयर विवाद की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आज केंद्र को याचिका की प्रतियां देने का निर्देश दिया। कोर्ट आने वाले सप्ताह में अगली सुनवाई के लिए सूचिबद्ध भी किया है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी पूछा कि इसे 2019 में पहली बार क्यों नहीं उठाया गया और वैधानिक प्रावधानों के तहत कोई व्यक्तिगत शिकायत क्यों नहीं की गई।

कोर्ट ने पूछा आईटी/टेलीग्राफ एक्ट के तहत शिकायत क्यों नहीं दर्ज की

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, ‘हम एडिटर्स गिल्ड याचिका को छोड़कर कुछ प्रश्न पूछना चाहते हैं - आप सभी जानते हैं कि स्वीकार्य सामग्री, सत्यापित सामग्री है जिस पर हम डब्ल्यूपी के तहत सुनवाई कर सकते हैं। मई 2019 यह प्रकाश में आया। मुझे नहीं पता क्यों, इस मुद्दे के संबंध में कोई गंभीर चिंता तब नहीं उठाई गई थी। जिन लोगों ने ये डब्ल्यूपी दायर किए हैं वे प्रतिष्ठित लोग हैं।

उन्हें अधिक सामग्री डालने के लिए अधिक ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करना चाहिए था। साथ ही हम यह नहीं कह सकते कि कोई डाक्यूमेंट नहीं है क्योंकि इस पर रिपोर्ट हैं। एक और दृष्टिकोण यह है कि कुछ लोग व्यक्तिगत मामलों में नहीं गए हैं, वे इन जनहित याचिकाओं में अपने मामलों के लिए आए हैं। आप जानते हैं कि आईटी अधिनियम, टेलीग्राफ अधिनियम के तहत प्रावधान हैं। इसके तहत कोई शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई जाती?’

कोर्ट ने पूछा डब्ल्यूपी में पेपर क्लिपिंग के अलावा कुछ और है

एडवोकेट एमएल शर्मा की याचिका पर कोर्ट ने कहा, ‘अखबार की कटिंग के अलावा, क्या डब्ल्यूपी में और कुछ है? आपको लगता है कि हम जानकारी एकत्र करेंगे और आपके मामले पर बहस करेंगे! कहने के लिए क्षमा करें, मुझे नहीं पता कि आपने यह जनहित याचिका क्यों दायर की है।’

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘आपने 21 जुलाई को सीबीआई से शिकायत की और अगले ही दिन आप डब्ल्यूपी दाखिल करते हैं?‘ एन. राम के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, माकपा नेता जॉन ब्रिटास के लिए सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने बहस की है। जगदीप छोककर के लिए श्याम दीवान, एक जुड़े मामले में 2 पत्रकारों के लिए दातार उपस्थित हुए। 

कपिल सिब्बल ने बताया कि यह हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में घुसपैठ करता है।यह सुनता है, हर पल देखता है। यह गोपनीयता और गरिमा पर हमला करता है और इंटरनेट की रीढ़ की हड्डी में प्रवेश करता है। उन्होंने बताया कि यह केवल सरकार को बेचा जाता है। एजेंसियों को निजी हाथों में नहीं बेचा जा सकता है। सिब्बल ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कैलिफोर्निया कोर्ट के समक्ष एनएसओ के बयान पढ़कर सुनाया।

कोर्ट ने पूछा कि भारतीय पत्रकारों के लिए भी कथित जासूसी की रिपोर्ट की गई है। एन. राम की याचिका में आरोप लगाया गया है। कैलिफोर्निया कोर्ट के फैसले में यह कहां पाया जा सकता है?

इस पर सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि अगर भारत सरकार ने पेगासस नहीं खरीदी और ऐसा हो रहा है तो सरकार को एनएसओ के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। भारत सरकार ने अबतक कार्रवाई क्यों नहीं की है। वे चुप क्यों हैं। उन्होंने एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई? यह नागरिक अधिकारों, नागरिकों की गरिमा का मामला है। एन. राम की याचिका के पृष्ठ 32 का हवाला देते हुए सिब्बल ने पेगासस सॉफ्टवेयर के कारण होने वाले संभावित खतरों के बारे में विस्तार से बताया।

सीपीआई (एम) नेता जॉन ब्रिटास के लिए वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा, ‘यह एनएसओ द्वारा दिया गया एक स्पष्ट बयान है कि केवल संप्रभु संस्था ही इस सॉफ्टवेयर को ले सकती है।‘ जगदीप चोककर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान पेश हुए, जिनका फोन कथित तौर पर हैक कर लिया गया था।

श्याम दीवान ने कहा कि ये सिर्फ इधर-उधर की मीडिया रिपोर्ट नहीं हैं - दो राष्ट्रीय सरकारों ने कार्रवाई की है। यूएसए और फ्रांस ने इन रिपोर्टों के आधार पर कार्रवाई की है। तो ये मीडिया रिपोर्ट्स हैं जो बहुत उच्च स्तर की विश्वसनीयता वाली है। उन्होंने कहा कि हम अंतरिम राहत और इस मुद्दे की गहन जांच के रूप में सरकार से प्रतिक्रिया चाहते हैं। कैबिनेट सचिव के लिए वर्तमान मामले में हलफनामा देना आवश्यक है।

वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह किसी एक व्यक्ति की गोपनीयता में बाधा डालने का मामला नहीं है। यदि कोई विदेशी संस्था शामिल है, तो भारत सरकार को जवाब देना चाहिए या स्वयं कार्रवाई करनी चाहिए। पूरे देश को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके इंटरनेट से इस तरह समझौता नहीं किया जाएगा। इसमें केवल आपराधिकता ही नहीं, बल्कि संवैधानिकता भी शामिल है।‘ 2 पत्रकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने व्यक्तिगत राहत के लिए वैधानिक प्रावधानों पर अपना पक्ष रखा।

संघ के खिलाफ एडवोकेट एमएल शर्मा की याचिका में उठाए सवाल

क्या संविधान प्रधानमंत्री और उनके मंत्री को उनके निहित राजनीतिक हितों के लिए भारत के नागरिकों की जासूसी करने की अनुमति देता है? क्या पेगासस सॉफ्टवेयर को बिना मंजूरी के खरीदना कला के विपरीत है। क्या यह कृत्य 266(3), 267(2) और 283(2) आईपीसी के एस.408 और 409, 120-बी को के तहत अपराध हैं? क्या भारत के आम नागरिक, विपक्षी नेताओं, न्यायपालिका के न्यायाधीशों और अन्य लोगों की जासूसी करना, 1923 के आधिकारिक गुप्त अधिनियम के साथ-साथ सूचना की धारा 65, 66 और 72 के अपराध का मामला नहीं बनता है। 

दरअसल, 19 जुलाई 2021 को, एक भारतीय समाचार पोर्टल सहित 17 अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के एक ग्रुप ने पेगासस प्रोजेक्ट नाम के दुनिया भर के फोन नंबरों की लीक हुई सूची के बारे में एक रिपोर्ट पब्लिश की थी।

लीक की गई सूची में ये नंबर कथित तौर पर इजरायल के एनएसओ ग्रुप द्वारा बेचे गए पेगासस स्पाइवेयर द्वारा हैक किए गए थे। हैक किए जाने वाले फोन की ‘‘टारगेट लिस्ट‘‘ हैं।
लक्ष्य सूची में 136 प्रमुख राजनेताओं, न्यायाधीशों, पत्रकारों, व्यापारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि की संख्या शामिल है।

एनएसओ ग्रुप, जो ‘पेगासस स्पाइवेयर‘ का मालिक है, पर व्हाट्सएप और फेसबुक द्वारा 2019 में यूएस कैलिफोर्निया कोर्ट के समक्ष दूरस्थ निगरानी करने के लिए अपने प्लेटफॉर्म का शोषण करने के लिए मुकदमा दायर किया गया था। एनएसओ ने बताया था कि उसके उत्पाद केवल सरकारों और राज्य एजेंसियों को बेचे गए थे। हालांकि, कैलिफोर्निया कोर्ट ने व्हाट्सएप के पक्ष में फैसला सुनाया और एनएसओ के दावे को खारिज कर दिया था।