प्रधानमंत्री मोदी 20 दिसंबर को नादिया, ताहेरपुर में रैली करेंगे। SIR मुद्दा, मतुआ और रिफ्यूजी वोट बैंक पर फोकस, ममता बनर्जी का विरोध और पश्चिम बंगाल चुनाव 2026 की सियासी रणनीति मुख्य चर्चा।
कोलकाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के ताहेरपुर में रैली करेंगे। यह रैली ऐसे समय में हो रही है जब ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस राज्य में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) एक्सरसाइज का विरोध कर रही है। SIR एक्सरसाइज पर मतुआ वोट बैंक की प्रतिक्रिया और रिफ्यूजी वोटों की अहमियत इस रैली को और भी संवेदनशील बना देती है।
SIR विवाद: विपक्ष की नाराजगी
तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने SIR एक्सरसाइज का विरोध कर रखा है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाताओं को प्रभावित करने और राजनीतिक लाभ उठाने के लिए की जा रही है। नादिया और नॉर्थ 24 परगना जैसे मतुआ बहुल क्षेत्रों में पहले ही ममता बनर्जी की रैलियां हो चुकी हैं, जहां उन्होंने SIR को लेकर जनता को चेताया। लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी की रैली इस सियासी सस्पेंस को और बढ़ा सकती है। रैली के दौरान SIR मुद्दे पर बीजेपी द्वारा राज्य सरकार पर निशाना साधे जाने की संभावना जताई जा रही है।
वोटर लिस्ट और चुनावी रणनीति
पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का ड्राफ्ट 16 दिसंबर को जारी होने वाला है। उसके चार दिन बाद पीएम मोदी ताहेरपुर में रैली करेंगे। यह समय और स्थान राजनीतिक रूप से बहुत अहम है। ताहेरपुर राणाघाट लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और सीमा से लगे नादिया जिले में मतुआ और रिफ्यूजी आबादी की संख्या अधिक है। इस वजह से इस क्षेत्र की सियासी अहमियत बढ़ जाती है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि मोदी का यह दौरा मतुआ और बॉर्डर रिफ्यूजी वोटों को टारगेट करने के उद्देश्य से तय किया गया है। ऐसे में यह रैली केवल एक जनसभा नहीं, बल्कि सियासी रणनीति का अहम हिस्सा मानी जा रही है।
मतुआ और रिफ्यूजी वोटों पर फोकस
ताहेरपुर क्षेत्र में मतुआ बहुल आबादी है। पिछले चुनावों में यह वोट बैंक कई बार सत्ताधारियों के लिए निर्णायक रहा है। SIR विवाद के बीच मोदी की रैली इसे और अहम बनाती है। बीजेपी को उम्मीद है कि इस रैली के जरिए मतुआ और रिफ्यूजी वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत कर सके। विशेषज्ञों का मानना है कि SIR और वोटर लिस्ट का टकराव बंगाल की राजनीति में नए सस्पेंस पैदा कर रहा है। मोदी और ममता बनर्जी के बीच यह टकराव अगले विधानसभा चुनाव के नतीजों को भी प्रभावित कर सकता है।
चुनावी माहौल में बढ़ता सस्पेंस
नादिया का यह दौरा केवल राजनीतिक जनसभा नहीं बल्कि SIR विवाद के बीच एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। रैली के दौरान प्रधानमंत्री की बातों पर विपक्ष और जनता की नजरें टिकी रहेंगी। सवाल यह है कि क्या यह रैली केवल मतदाताओं को जोड़ने का जरिया होगी, या इसके पीछे कोई बड़ी चुनावी साजिश छिपी है। SIR, मतदाता सूची और मतुआ वोट बैंक-इन सभी पर निगाहें टिकी हैं।


