सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) 25 दिसंबर को दोपहर करीब 12:30 बजे गुजरात के कच्छ में गुरुद्वारा लखपत साहिब में गुरु नानक देव जी के गुरुपर्व समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करेंगे। 2001 के भूकंप के दौरान गुरुद्वारा को नुकसान हुआ था।

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) 25 दिसंबर को दोपहर करीब 12:30 बजे गुजरात के कच्छ में गुरुद्वारा लखपत साहिब में गुरु नानक देव जी के गुरुपर्व समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करेंगे। हर साल 23 दिसंबर से 25 दिसंबर तक गुजरात की सिख संगत गुरुद्वारा लखपत साहिब में गुरु नानक देव जी का गुरुपर्व मनाती है। अपनी यात्रा के दौरान गुरु नानक देव जी लखपत में रुके थे। गुरुद्वारा लखपत साहिब में उनके अवशेष हैं, जिनमें लकड़ी के जूते और पालकी (पालना) के साथ-साथ गुरुमुखी की पांडुलिपियां और चिह्नों की लिपियां शामिल हैं।

भूकंप के दौरान हुआ था नुकसान
2001 के भूकंप के दौरान गुरुद्वारा को नुकसान हुआ था। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने गुरुद्वारे की मरम्मत सुनिश्चित करने के लिए तत्काल दिशा-निर्देश दिए थे। मोदी गुरु नानक देव जी के 550 वें प्रकाश पर्व, गुरु गोबिंद सिंह जी के 350 वें प्रकाश पर्व और गुरु तेग बहादुरजी के 400 वें प्रकाश पर्व के उत्सव शामिल हो चुके हैं।

ऐतिहासिक महत्व रहा है लखपत का
लखपत (Lakhpat) गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित एक गांव है। यह18वीं शताब्दी में बनी 7 किमी लम्बी दीवारों से घिरा हुआ है। इस शहर का नाम राव लाखा के नाम पर है, जिन्होंने तेरहवीं शताब्दी के मध्य सिंध में शासन किया था। ऐतिहासिक रूप से यह गुजरात को सिंध से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थान रहा है। फतेह मुहम्मद ने अठारहवीं शताब्दी के करीब (1801) किले की दीवार को बड़ा कर दिया था। एक समय सिंध के व्यापार का एक बड़ा हिस्सा यहां केंद्रित था। 

गुरुद्वारे की चर्चा करते रहे हैं मोदी
नवंबर, 2020 में  मन की बात के तहत देश को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने प्रधानमंदी ने गुरुनानक दिवस के लिए देशवासियों को बधाई देते हुए गुररुद्वारे लखपत का जिक्र किया था। मक्का जाने के रास्ते में गुरुनानक जी अपनी दूसरी (1506-1513) और चौथी (1519-1521) मिशनरी यात्रा के दौरान शहर में रहे थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपनी चौथी यात्रा के दौरान इस स्थल का दौरा किया था। 19वीं सदी की शुरुआत में यहां गुरुद्वारा की स्थापना की गई थी। इस स्थल की उदासी संप्रदाय द्वारा पूजा की जाती है और रखरखाव किया जाता है। इसे राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इसने 2004 में यूनेस्को एशिया-प्रशांत पुरस्कार जीता है।

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