सार
एस गुरुमूर्ति का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को चुनावी बांड योजना रद्द करने की जगह उसमें सुधार कराना चाहिए था। कोर्ट के फैसले से काले धन का इस्तेमाल बढ़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों चुनावी बांड योजना रद्द करने का फैसला सुनाया। केंद्र सरकार चुनावी बांड योजना राजनीतिक दलों को चंदा के माध्यम से काला धन देने पर रोक लगाने के लिए लाई थी। कोर्ट के आदेश को लेकर बहस चल रही है।
मीडिया से लेकर बुद्धिजीवियों तक ने कोर्ट के फैसले की सराहना की है। विपक्षी दलों ने भी कोर्ट के आदेश की तारीफ की है। हालांकि चुनावी बांड योजना से उन्हें भी लाभ मिल रहा था। हमारा तर्क है कि कोर्ट के इस फैसले में त्रुटि है। आइए इस दावे के पीछे के कारणों पर नजर डालते हैं।
राजनीतिक दलों को दान में मिल सकता है काला धन
केंद्र सरकार द्वारा चुनावी बांड योजना लाने से पहले सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों राजनीतिक दलों को मुख्य रूप से नकद में दान मिलता था। दान के लिए बड़े पैमाने पर काले धन का इस्तेमाल होता था। काले धन पर राजनीतिक दलों की निर्भरता खत्म करने के लिए सरकार चुनावी बांड योजना लेकर आई। इसमें राजनीतिक दलों को चंदा बैंक से जारी बांड खरीदकर दिया जाता था। इससे काला धन राजनीतिक दलों को दिए जाने पर लगाम लगी थी।
चुनाव आयोग के अनुसार 2018 में चुनावी बांड योजना की शुरुआत के बाद राजनीतिक दलों को चुनावी बांड के माध्यम से कुल 16,000 करोड़ रुपए दान मिला। यह पैसा बैंकों के माध्यम से पारदर्शी तरीके से दिया गया। इसके लिए काले धन का इस्तेमाल नहीं हुआ। अगर चुनावी बांड योजना नहीं होती तो राजनीतिक दलों को यही 16 हजार करोड़ रुपए चंदा कैश में मिलता। यह पैसा काला धन है या नहीं, इसका कोई हिसाब नहीं होता। राजनीतिक दलों को चंदा के रूप में काला धन दिए जाने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। चुनावी बांड योजना में दान देने वाले का नाम जाहिर नहीं किया जाता था। इससे चंदा देने वाले को बिना परेशानी के दान करने की सुविधा मिलती थी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया है। इससे राजनीतिक दलों के खजाने में काला धन जमा होने का खतरा बढ़ गया है।
चुनावी बांड योजना से बीजेपी को मिला ज्यादा चंदा
वित्तीय वर्ष 2022-23 में चुनावी बांड योजना से राजनीतिक दलों को मिले चंदा को देखें तो पता चलता है भाजपा को कांग्रेस की तुलना में अधिक पैसे मिले। हालांकि इससे सभी दलों को लाभ हुआ है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसी पार्टियों को चुनावी बांड के माध्यम से अपने कुल दान का 97.5% प्राप्त हुआ है। DMK को 86.31%, बीजू जनता दल को 84%, बीआरएस को 72% और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को 69.6% चंदा चुनावी बांड योजना के माध्यम से मिला। भाजपा को कुल चंदा का 55% और कांग्रेस को 38% हिस्सा चुनावी बांड योजना से मिला।
वित्त वर्ष 2022-23 में चुनाव बांड योजना से भाजपा को 1,294 करोड़ रुपए, बीआरएस को 529 करोड़ रुपए, तृणमूल कांग्रेस को 325 करोड़ रुपए, डीएमके को 185 करोड़ रुपए, कांग्रेस को 171 करोड़ रुपए और बीजेडी को 152 करोड़ रुपए दान मिला। 2018 में चुनाव बांड योजना की शुरुआत के बाद से लेकर कोर्ट द्वारा इसे रद्द किए जाने तक कुल 16,518 करोड़ रुपए इसके माध्यम से राजनीतिक दलों को दान किया गया। इनमें से भाजपा को 6,566 करोड़, कांग्रेस को 1,123 करोड़, टीएमसी को 1,092 करोड़, बीजेडी को 775 करोड़, डीएमके को 617 करोड़ और बीआरएस को 384 करोड़ रुपए मिले।
सुप्रीम कोर्ट ने पारदर्शिता की कमी, मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन और दाताओं की पहचान गुप्त रखने के चलते चुनावी बांड योजना को रद्द किया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस बात की पहचान नहीं की गई कि चुनावी बांड योजना से चंदे के रूप में काला धन दिए जाने को कम किया गया। कोर्ट के फैसले का मूल आधार चुनावी बांड योजना के भीतर पारदर्शिता की कमी पर आधारित है। ऐसा है तो सुप्रीम कोर्ट को सभी क्षेत्रों में पारदर्शिता पर विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी संपत्ति की जानकारी सिर्फ चीफ जस्टिस को देनी होती है। वे इसे सार्वजनिक करने के लिए बाध्य नहीं हैं।
कोर्ट को चुनावी बांड योजना में कराना चाहिए था सुधार
कोर्ट के पास अवसर था कि चुनावी बांड योजना में सुधार कराए। कोर्ट को बांड जारी करने वाले भारतीय स्टेट बैंक को चुनाव आयोग को दानदाताओं की जानकारी देने का निर्देश देना चाहिए था। ऐसा होने पर चुनावी बांड योजना में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती।
चुनावी बांड योजना कैश लेनदेन पर रोक लगाने के लिए लाई गई थी। कोर्ट ने इसकी भूमिका स्वीकार की है। इससे राजनीति में काले धन का प्रवाह बढ़ने का डर है। कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को खारिज कर अनजाने में चुनावों में ब्लैक मनी के इस्तेमाल के दरवाजे खोल दिए हैं। हमारा दृढ़ विश्वास है कि कोर्ट के इस फैसले ने अनजाने में काले धन के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। इससे चुनावी बांड योजना से हुई प्रगति उलट गई है।
नोट- यह लेख मूल रूप से तुगलक तमिल साप्ताहिक पत्रिका में छपा था। इसका अंग्रेजी में अनुवाद तुगलक डिजिटल द्वारा www.gurumurthy.net के लिए किया गया था। इसे एशियानेट न्यूज नेटवर्क में दोबारा प्रकाशित किया गया है। व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।