सार
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में साईबाबा और पांच अन्य को आरोपियों को UAPA और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया था। इसमें साईबाबा और चार अन्य को उम्र कैद की सजा और एक को 10 साल की सजा का ऐलान किया गया था।
नई दिल्ली. नक्सलियों से संबंध और देशद्रोह के आरोप में सजा काट रहे दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा की बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा रिहाई के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा- इस मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। लिहाजा साईबाबा जेल में ही रहेगा। बता दें, बॉबे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने उसे तत्काल प्रभाव से रिहा करने का आदेश दिया था। 2017 में महाराष्ट्र की गढ़चिरौली की कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
यह है पूरा मामला...
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में साईबाबा और पांच अन्य को आरोपियों को UAPA और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया था। इसमें साईबाबा और चार अन्य को उम्र कैद की सजा और एक को 10 साल की सजा का ऐलान किया गया था। गढ़चिरौली कोर्ट के फैसले के खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान साईबाबा का पक्ष रखते हुए सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने तर्क दिया कि साईबाबा 8 साल से जेल में बंद हैं। 55 साल की आयु के साईबाबा के शरीर का 90% हिस्सा काम नहीं करता है। वे व्हीलचेयर पर चलते हैं। लिहाजा उनकी रिहाई की जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आतंकी और नक्सली गतिविधि में शामिल होने के लिए शरीर की नहीं ब्रेन की जरूरत होती है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान साईबाबा का पक्ष रखते हुए सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने तर्क दिया कि साईबाबा 8 साल से जेल में बंद हैं। 55 साल की आयु के साईबाबा के शरीर का 90% हिस्सा काम नहीं करता है। वे व्हीलचेयर पर चलते हैं। लिहाजा उनकी रिहाई की जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आतंकी और नक्सली गतिविधि में शामिल होने के लिए शरीर की नहीं ब्रेन की जरूरत होती है।
14 अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईबाबा को तुरंत बरी करने का आदेश दिया था। हालांकि इसके विरोध में महाराष्ट्र सरकार की ओर से तुषार मेहता जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में मामला लेकर पहुंचे थे। मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि साईबाबा को टेक्निकल आधार(दिव्यांगता) पर रिहा किया गया है। अगर वे जेल से बाहर आते हैं, तो देश के लिए खतरा होगा। मेहता ने कहा कि साईबाबा का माओवादियों से कनेक्शन है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि था कि अर्जेंट सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस के पास जानिए, क्योंकि वे रिहाई पर रोक नहीं लगा सकते हैं। इसके बाद मामला आगे पहुंचा।
जीएन साईंबाबा केस में अब तक क्या-क्या हुआ?
22 अगस्त, 2013 : महाराष्ट्र में गढ़चिरौली जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में निगरानी के बाद आरोपी महेश तिर्की, पांडे नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया गया।
2 सितंबर, 2013: दो और आरोपियों विजय तिर्की और प्रशांत सांगलीकर को पुलिस ने गिरफ्तार किया।
4 सितंबर, 2013: पुलिस पूछताछ के दौरान आरोपी हेम मिश्रा और सांगलीकर द्वारा किए गए खुलासे के बाद पुलिस ने मजिस्ट्रेट अदालत से जी एन साईंबाबा के घर की तलाशी लेने का वारंट मांगा।
7 सितंबर, 2013: मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सर्च वारंट जारी किया।
9 सितंबर, 2013: पुलिस ने साईंबाबा के दिल्ली स्थित घर की तलाशी ली।
15 फरवरी, 2014: गिरफ्तार किए गए पांच आरोपियों पर अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी।
26 फरवरी, 2014: साईंबाबा को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को वारंट मिला। हालांकि, सहानुभूति के चलते गिरफ्तारी नहीं हुई।
9 मई, 2014: साईबाबा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
21 फरवरी, 2015: सत्र अदालत ने सभी छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। सभी आरोपियों ने दोषी नहीं होने का अनुरोध किया।
6 अप्रैल, 2015: साईंबाबा पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी।
3 मार्च, 2017: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की सेशन कोर्ट ने साईबाबा और 5 अन्य आरोपियों को यूएपीए और आईपीसी के तहत दोषी ठहराया। साईंबाबा और 4 अन्य को आजीवन कारावास की सजा। एक को 10 साल की कैद।
29 मार्च, 2017: साईंबाबा और अन्य ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील दायर की।
14 अक्टूबर, 2022: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने मामले में साईंबाबा और पांच अन्य दोषियों को बरी कर दिया।
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