सार
राजद्रोह कानून को बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने होल्ड कर दिया। देश में लागू 162 साल पुराने इस कानून पर केंद्र सरकार ने पुनर्परीक्षण को तैयार है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि इस कानून का दुरुपयोग लगातार किया जा रहा है।
A. Sakthivel
राजद्रोह कानून पर कोर्ट की रोक के बाद हर ओर इसको लेकर बहसबाजी शुरू है। विपक्ष तो राजद्रोह कानून पर सुनवाई को लेकर ऐसे प्रतिक्रिया दे रही है जैसे यह कानून भाजपा सरकार द्वारा लाई गई हो। जबकि हकीकत यह है कि यह कानून अंग्रेजों द्वारा सन 1870 में लाया गया था। देश के आज़ादी के बाद जब संविधान बन रहा था तब इस कानून को लेकर संविधान सभा में चर्चा हुई तब कांग्रेस पार्टी चाहती तो कानून को हटा सकती थी लेकिन कांग्रेस ने इसे रहने दिया और लगातार अपने 60 साल के शासन काल में इसका भरपूर इस्तेमाल करते रहे। इंदिरा गाँधी ने तो अपने विरोधियों के खिलाफ इस कानून का जबरदस्त इस्तेमाल किया।
अदालतों के टिप्पणी और आदेशों के बावजूद कांग्रेस कानून के पक्ष में रही
विभिन्न अदालतों द्वारा IPC की धारा 124A को गैर-संवैधानिक करार देने के बावजूद कांग्रेस की सरकारों इस कानून के पक्ष में रहीं। सन 1951 में पंजाब हाई कोर्ट ने इस कानून को गैर-संवैधानिक बताया था। सन 1959 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने देशद्रोह कानून को अभियक्ति की आज़ादी के खिलाफ बताया था। अदालतों द्वारा ऐसी टिप्पणी के बावजूद भी तत्कालीन कांग्रेस की सरकारों ने इस कानून का समर्थन किया और इसका इस्तेमाल भी अपने विरोधियों के खिलाफ जारी रखा।
इंदिरा गाँधी ने किया कानून को और मजबूत
सन 1973 में इंदिरा गाँधी की सरकार ने राजद्रोह कानून को और मजबूत किया। इंदिरा गाँधी की सरकार ने इस कानून को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में डाला और बिना वारंट के गिरफ्तार करने का प्रावधान बनाया।
कांग्रेस की सरकारें अपने मनमाने ढंग से कानून का करती रही इस्तेमाल
कांग्रेस पार्टी की सरकार ने सन 1953 में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केदारनाथ सिंह के खिलाफ मात्र इसलिए देशद्रोह कानून का इस्तेमाल किया क्योंकि उन्होंने कांग्रेस पार्टी को गुंडों की पार्टी कह दिया था। 2004 से 2014 के दौरान जब देश में कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार थी तब सिमरनजीत सिंह मान से लेकर असीम त्रिवेदी तक को देशद्रोह कानून का इस्तेमाल कर जेल में डाला गया।
वर्ष 2005 में कांग्रेस की सरकार ने इस कानून का इस्तेमाल अकाली दल के नेता सिमरनजीत सिंह मान के खिलाफ किया। वर्ष 2007 में गाँधी अंतराष्ट्रीय शांति अवार्ड से सम्मानित समाज सेवी और नागरिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले बिनायक सेन के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया। वर्ष 2010 में अरुंधती रॉय के खिलाफ इस्तमाल किया और 2012 में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया। वर्ष 2012-13 में कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने कुडनकुलम नियुकिलियर पॉवर प्लांट के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले 9,000 लोगों को देशद्रोह कानून का इस्तेमाल कर गिरफ्तार कर लिया था।
कांग्रेस की सरकारों ने राजद्रोह कानून को मजबूत करने से लेकर और सरकार के नीतियों के खिलाफ बोलने और अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों के खिलाफ मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया। आज कांग्रेस पार्टी ऐसे प्रतिक्रिया दे रही है जैसे यह कानून 2014 के बाद ही अस्तित्व में आया हो।
कांग्रेस के यूपीए सरकार ने किया था कानून का समर्थन
वर्ष 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार में गृहराज्य मंत्री अजय माकन ने देशद्रोह कानून को ख़त्म करने के संबंध में संसद में पूछे गए एक सवाल का जवाब दिया था कि इसे ख़त्म करने की नहीं, इस कानून को और मजबूत करने की जरुरत है।
कांग्रेस शासित प्रदेश सरकारें कर रही हैं कानून का दरुपयोग
महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की महा विकास अघाड़ी सरकार ने बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ मात्र इसलिए राजद्रोह कानून लगाया क्योंकि उन्होंने सरकार विचार के विपरीत विचार रखा था। कंगना रनौत वाले मसले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने महा विकास अघाड़ी सरकार को फटकार लगते हुए कहा था की अगर कोई सरकार के विचारों से सहमत नहीं है तो क्या उसे राजद्रोही मान लिया जायेगा।
हाल ही में, महाराष्ट्र की सरकार ने सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा को धारा 124A का इस्तेमाल कर मात्र इसलिए जेल में डाल दिया क्योंकि वो मुख्यमंत्री के आवास के बाहर हनुमान चालीसा पढना चाहते थे।
मोदी सरकार कानून पर पुनर्विचार के लिए तैयार
जहाँ तक नरेन्द्र मोदी सरकार की बात है, इस सरकार ने वो किया जो नेहरु से लेकर मनमोहन सिंह की सरकार तक नहीं कर पाई थी। मौजूदा नरेन्द्र मोदी सरकार ने साल 2014-15 से लेकर अब तक 1500 ऐसे पुराने कानूनों को समाप्त किया है जो किसी न किसी रूप से जनता के लिए परेशानी के वजह बने हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सोलिसिटर जनरल ने साफ़ कर दिया है कि नरेन्द्र मोदी की कानून पर पुनर्विचार और पुनपरिक्षण करने के लिए तैयार है। कोर्ट में सरकार के दलीलों में साफ़ झलकता है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार कानून का दुरुपयोग के खिलाफ है।
(यह लेख A. Sakthivel ने लिखी है। लेखक लॉ के स्टूडेंट के साथ साथ राजनीतिक विश्लेषक भी हैं।)