सार

शशि थरूर (Shashi Tharoor) की यह असहमति ससंद के शीतकालीन सत्र में (Parliament Winter Session 2021) में विपक्ष के हंगामे को लेकर सामने आई है। थरूर ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि बाधा की जगह हमें बहस करनी चाहिए। 

नई दिल्ली। उत्तराखंड (Uttrakhand) में हरीश रावत (Harish Rawat) के प्रकरण पर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी (Manish Tewari) ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। इसके बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी पार्टी की कुछ गतिविधियों पर असहमति जताई है। यह पहला मौका नहीं है, जब कांग्रेस नेताओं ने नेतृत्व पर असहमति जताई है। थरूर की यह असहमति ससंद के शीतकालीन सत्र में (Parliament Winter Session 2021) में विपक्ष के हंगामे को लेकर सामने आई है। थरूर (Shashi Tharoor) ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि बाधा की जगह हमें बहस करनी चाहिए। थरूर ने हालिया किताब 'प्राइड, प्रेजुडिस एंड पंडित्री' (Pride Prejudice and Punditry) पर चर्चा के दौरान यह बात कही। 

संसद का उपयोग बहस के मंच के तौर पर हो 
थरूर ने कहा कि कुछ हद तक विपक्ष 'खुद के हाशिये पर जाने के लिए स्वयं जिम्मेदार है। सदन की कार्यवाही में व्यवधान नहीं डालने की वकालत करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कई बार मुद्दे उठाने की अनुमति नहीं मिलने से निराशा का सामना करना पड़ता है। थरूर ने कहा कि हमारी पार्टी मेरे इस विचार से वाकिफ है कि हमें व्यवधान पैदा नहीं करना चाहिए बल्कि संसद का उपयोग बहस के मंच के तौर पर करना चाहिए। 

ये नेता भी उठा चुके नेतृत्व पर सवाल 
मनीष तिवारी : उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत के ट्वीट पर कांग्रेस के असंतुष्ट धड़े जी-23 के अहम सदस्य मनीष तिवारी ने गुरुवार को प्रतिक्रिया दी। उन्होंने नेतृत्व पर तंज कसते हुए लिखा- पहले असम, फिर पंजाब, अब उत्तराखंड...भोग पूरा ही पाउण गे, कसर न रह जावे कोई'। गौरतलब है कि हरीश रावत ने कहा था- उनके लोगों ने मेरे हाथ पैर बांध दिए हैं। बहुत तैर लिया, अब विश्राम का वक्त है।

कपिल सिब्बल : सितंबर में पंजाब में जब नवजोत सिंह सिद्धू ने पार्टी से खफा होकर इस्तीफा दे दिया, तब सिब्बल ने कांग्रेस हाईकमान पर सवाल खड़े किए। कहा- हमें पता होकर भी पता नहीं है कि पार्टी कौन चला रहा है, कौन लीड कर रहा है। जी-हुजूर ग्रुप नहीं हैं, कम से कम हम अपनी बात रख रहे हैं और आगे भी रखते जाएंगे। इसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित उनके घर के बाहर प्रदर्शन किया था। सिब्बल जी-23 नेताओं की बैठक में भी कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा चुके हैं। 

पी चिदंबरम : सिब्बल के घर प्रदर्शन पर पी चिदंबरम ने भी कांग्रेस पर सवाल उठाए। कहा - जब मैं अपने एक सहयोगी और सांसद के आवास के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा नारे लगाते हुए तस्वीरें देखता हूं तो मैं भी आहत और असहाय महसूस करता हूं। उन्होंने कहा- जब हम पार्टी मंचों के भीतर सार्थक बातचीत शुरू नहीं कर पाते हैं तो मैं असहाय महसूस करता हूं।

गुलाम नबी आजाद : पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि किसी भी सुझाव का स्वागत होना चाहिए। उन्होंने कपिल सिब्बल के घर पर प्रदर्शन को गुंडागर्दी बताते हुए इसकी जमकर निंदा की थी। 

संजय झा : पिछले साल कांग्रेस नेता (निलंबित) संजय झा ने दावा किया था कि एक पत्र 10 जनपथ भेजा गया है, जिसमें पार्टी संगठन में पूरी तरह से बदलाव की मांग की गई है। इस पत्र पर 300 नेताओं ने हस्ताक्षर किए गए हैं। संजय झा के मुताबिक मोदी सरकार को चुनौती देने में पार्टी की विफलता से चिंतित इन नेताओं ने पार्टी में बदलाव के लिए सामूहिक प्रयास करना शुरू कर दिया है। झा ने सिंधिया के भाजपा में जाने पर भी पार्टी पर तंज कसा था, जिसके बाद वे सस्पेंड कर दिए गए थे।

नटवर सिंह : 2 अक्टूबर को पूर्व कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कांग्रेस में राहुल गांधी या कोई भी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने लायक नहीं है। आपको ऐसा लगता है क्या वो पीएम मोदी के सामने टिक सकते हैं? दोनों के बीच बहस करवाकर देख लीजिए। आपने राहुल गांधी का इंटरव्यू टीवी पर देखा है? उन्होने कांग्रेस के पतन के लिए गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराया था। 

शशि थरूर : सितंबर में तिरुवनंतपुरम से तीन बार के लोकसभा सदस्य शशि थरूर ने कहा था कि सोनिया गांधी खुद कह रही हैं कि वह पद छोड़ना चाहती हैं। इसलिए एक नए नेतृत्व को जल्दी से पद संभाल लेना चाहिए। अगर राहुल गांधी पदभार संभालना चाहते हैं, तो यह जल्दी से होना चाहिए।

प्रशांत किशोर :  प्रशांत किशोर कांग्रेस से नहीं जुड़े हैं लेकिन चुनावी रणनीतिकार माने जाते हैं। उन्होंने कहा था- एक मजबूत विपक्ष के लिए कांग्रेस जिस आयडिया और स्पेस का प्रतिनिधित्व करती है, वह महत्वपूर्ण है। लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व किसी व्यक्ति का दैवीय अधिकार नहीं है। खासकर तब, जब पार्टी पिछले 10 वर्षों में 90 प्रतिशत से अधिक चुनाव हार गई हो। विपक्षी नेतृत्व को लोकतांत्रिक तरीके से तय करने दें।

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