सार
हार्वर्ड साइंटिस्ट्स की यह स्टडी ऐसे समय पर सामने आई है जब दुनिया इस महामारी के चलते लगाए गए सख्त लॉकडाउन में नरमी बरतने पर विचार कर रहा है। शोधकर्ता स्टीफन किसलर ने कहा कि हमने कोविड-19 वैक्सीन, मौसम बदलने के साथ बीमारी बढ़ने की शंका, इंसान के शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर में उत्पन्न हुई प्रतिरोधक क्षमताओं आदि को ध्यान में रखते हुए इसका अनुमान लगाया है।
नई दिल्ली. कोरोना से अब तक दुनिया में 1 लाख 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। साथ ही 21 लाख से ज्यादा लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई है। ऐसे में पूरी दुनिया इस बीमारी से त्राहीमाम है। वहीं इससे बचने के लिए करीब 115 देशों को लॉकडाउन किया जा चुका है। लेकिन सवाल है कि लॉकडाउन कब तक ? इस सवाल का जवाब दिया है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने । उनका मानना है कि अगर कोविड-19 की वैक्सीन नहीं बनती है तो इस स्थिती में सोशल डिस्टेंसिंग से जुड़े उपायों को साल 2022 तक करना पड़ सकता है।
कोविड-19 सीजनल हो सकता है
हार्वर्ड साइंटिस्ट्स की यह स्टडी ऐसे समय पर सामने आई है जब दुनिया इस महामारी के चलते लगाए गए सख्त लॉकडाउन में नरमी बरतने पर विचार कर रहा है। शोधकर्ता स्टीफन किसलर ने कहा कि हमने कोविड-19 वैक्सीन, मौसम बदलने के साथ बीमारी बढ़ने की शंका, इंसान के शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर में उत्पन्न हुई प्रतिरोधक क्षमताओं आदि को ध्यान में रखते हुए इसका अनुमान लगाया है। साथ ही उनका मानना है कि कोविड-19 सीजनल हो जाएगा। यह बिल्कुल वैसा ही होगा जैसे सर्दी के मौसम में लोग वायरल से जूझने लगते हैं।
मौसम के अनुसार कोरोना ताकतवर भी हो रहा है
रिसर्चर किसलर के अनुसार अगर कोरोना वायरस पर अगले कुछ महीनों में काबू पार लिया जाता है तो भी सभी लोगों को सावधानी से रहना पड़ेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर इसकी वैक्सीन मिल भी जाती है तो यह देखना होगा कि वह कितने दिनों तक इंसानों को कोरोना वायरस से सुरक्षा दिलाने का काम करती है। क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना अपने आप को मौसम के अनुसार ताकतवर भी कर रहा है। ऐसे में महामारी से बचने के लिए 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग ही एकमात्र रास्ता हो सकता है।