सार
शिवसेना के मुखपत्र सामना ने लिखा है कि महाराष्ट्र विधानसभा में उलटफेर के बाद विधानसभा अध्यक्ष का पद बीजेपी के पास है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
मुंबई. शिवसेना के मुखपत्र सामना ने लिखा कि यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव जीत लिया। यह इसलिए हुआ क्योंकि शिवसेना टूट गई है और उनके खिलाफ पार्टी का कोई व्यक्ति खड़ा नहीं है। शिवसेना के मुखपत्र ने लिया कि राज्य में नई सरकार के साथ राज्यपाल कोटे से 12 एमएलसी के नामांकन का मुद्दा भी जल्द ही सुलझा लिया जाएगा। पुरानी फाइल को नई फाइल में बदल दिया जाएगा। साथ ही इसे 24 घंटे के भीतर राज्यपाल की मंजूरी भी मिल जाएगी।
सामना ने व्यंगात्मक लहजे में लिखा है कि संविधान के रक्षक ही दोहरा रुख अपनाएंगे तो ये लोग कोई भी संकल्प कर सकते हैं और कोई भी चुनाव जीत सकते हैं। कहा कि उद्धव ठाकरे के सीएम पद से इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र में कोई कानून व्यवस्था नहीं है। हालांकि यह एक कठिन समय है, लेकिन यह भी बीत जाएगा। संपादकीय में लिखा गया कि वर्तमान मुख्यमंत्री की तरह वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष भी शिव सैनिक थे। शिवसेना, राकांपा से भाजपा और अब महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में वे कार्य करेंगे। वे यह जानते हैं कि कब क्या करना है और कहां जाना है।
कसाब से ज्यादा सुरक्षा
मराठी दैनिक सामना ने लिखा कि शिंदे समूह के भाजपा प्रायोजित विधायकों ने पार्टी के व्हिप का पालन नहीं किया। उनकी अयोग्यता के लिए भी कार्रवाई की जा रही है। इससे बचने के लिए भाजपा ने अध्यक्ष के रूप में कानूनी ज्ञान रखने वाले व्यक्ति को आगे किया। शिवसेना के मुखपत्र ने दावा किया कि जब 16 विधायकों (शिंदे समूह के) को अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है तो उन्हें मतदान प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देना अवैध है। शिवसेना ने चुटकी लेते हुए कहा कि अब वायुसेना और नौसेना का इस्तेमाल होना बाकी है। उन्होंने कहा कि कसाब की सुरक्षा के लिए भी इस तरह के इंतजाम नहीं थे, जैसे विधायकों के लिए हैं।
लागू नहीं हुए नियम
संपादकीय में यह भी दावा किया गया कि शिंदे समूह के विधायकों के चेहरे पर डर था। जिससे स्पष्ट था कि जब वे किसी दबाव में हैं। कहा कि अध्यक्ष का चुनाव अवैध था और लोकतंत्र और नैतिकता के अनुसार नहीं था। इसमें कहा गया कि राज्यपाल को अनैतिक कार्य में भाग लेते देखना बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नहीं थी। महा विकास अघाड़ी यानी एमवीए ने राज्यपाल से अध्यक्ष का चुनाव कराने की अनुमति मांगी थी लेकिन इस मुद्दे को विचाराधीन होने का हवाला देते हुए अनुमति से इनकार कर दिया गया था। अब वह नियम लागू क्यों नहीं किया जा रहा है।
राज्यपाल पर भी लगाए आरोप
शिवसेना ने राज्यपाल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि अध्यक्ष का चुनाव (सदन में विधायकों की) गिनती के माध्यम से किया गया था, लेकिन जब एमवीए सत्ता में था, तो वे (भाजपा) गुप्त मतदान पद्धति चाहते थे। विशेष रूप से पिछले विधायिका सत्र में तत्कालीन एमवीए सरकार ने ध्वनि मत के माध्यम से अध्यक्ष के चुनाव की सुविधा के लिए मौजूदा नियमों में संशोधन किया था। राज्यपाल ने इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कानूनी राय मांगी थी। अब समझ नहीं आता है कि राज्यपाल के पास कौन सी संविधान की किताब है। डॉक्टर अंबेडकर की या कोई और?
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