सार

महात्मा गांधी को दुनिया आज बापू और राष्ट्रपिता के नाम से जानती है। लेकिन ये बात बेहद कम लोगों को ही पता है कि मोहनदास करमचंद गांधी को सबसे पहले 'राष्ट्रपिता' (Father of Nation) किसने कहा था। बता दें कि गांधीजी को सबसे पहले 6 जुलाई, 1944 को ही इस नाम से संबोधित किया गया था।  

Today in history: महात्मा गांधी को दुनिया आज बापू और राष्ट्रपिता के नाम से जानती है। लेकिन ये बात बेहद कम लोगों को ही पता है कि मोहनदास करमचंद गांधी को सबसे पहले 'राष्ट्रपिता' (Father of Nation) किसने कहा था। बता दें कि 6 जुलाई, 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सबसे पहले सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहा था। बाद में भारत सरकार ने भी उनके इस नाम को मान्यता दी थी। हालांकि, बापू को ऑफिशियली राष्ट्रपिता घोषित नहीं किया गया है। बापू को सबसे पहले राष्ट्रपिता की उपाधि देने वाले सुभाषचंद्र बोस के बारे में जानते हैं कुछ इंटरेस्टिंग फैक्ट्स। 

1- गांधीजी का सम्मान लेकिन इस एक चीज को लेकर रहे मतभेद : 
नेताजी सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गांधी एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन दोनों के बीच एक चीज को लेकर बहुत बड़ा मतभेद था। दरअसल, सुभाषचंद्र बोस महात्मा गांधी के इस विचार से कतई सहमत नहीं थे कि अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही आजादी मिल सकती है। नेताजी का मानना था कि अहिंसा एक विचारधारा हो सकती है, लेकिन इसे अक्षरश: किसी पंथ की तरह फॉलो नहीं किया जा सकता

2- नेताजी की 'आजाद हिंद फौज' को 11 देशों ने दी मान्यता :   
21 अक्टूबर 1943 को सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर के कैथे सिनेमा हॉल में आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। इस सेना को जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड समेत 11 देशों ने  मान्यता दी थी। कहा जाता है कि 1944 में आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर हमला कर कुछ भारतीय प्रदेशों को आजाद भी करा लिया था। 

3- IAS में सिलेक्ट हुए, लेकिन इस्तीफा दे दिया : 
सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओड़िशा के कटक में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का प्रभावती था। सुभाष के पिता उन्हें आईएएस बनाना चाहते थे। यही वजह थी कि उन्होंने बेटे को पढ़ने विदेश भेजा। 1920 में सुभाषचंद्र बोस का नाम आईएएस की मैरिट लिस्ट में चौथे नंबर पर आया था। हालांकि, 22 अप्रैल 1921 को उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया था।

4- भगत सिंह को न बचा पाने की मलाल : 
जनवरी, 1931 में सुभाषचंद्र बोस जब कलकत्ता में एक रैली को संबोधित कर रहे थे तो अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर उन्हें जेल में डाल दिया। तब गांधी ने अंग्रेज सरकार से समझौता कर क्रांतिकारियों को रिहा करवाया। हालांकि, अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु को छोड़ने से मना कर दिया। सुभाष तब चाहते थे कि गांधीजी अंग्रेज सरकार से किया समझौता तोड़ दें। लेकिन गांधी इसके लिए नहीं माने। बाद में 23 मार्च, 1931 को अंग्रेजों ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी। इसे लेकर सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस और गांधी दोनों से नाराज थे। 

5- नेताजी की मौत आज भी एक रहस्य : 
माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान के पास हुई एक विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र की मौत हो गई थी। हालांकि, इसको लेकर आज भी विवाद है। कहा जाता है कि नेता जी को अंतिम बार टोक्यो हवाई अड्डे पर  देखा गया था और वे जापान से उसी विमान में बैठे थे। हालांकि, उनका शव कभी मिला ही नहीं, इसलिए लोग उनकी मौत की इस थ्योरी पर आज भी भरोसा नहीं करते। 

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