सार
केरल के तटीय क्षेत्रों में गैरकानूनी निर्माण से पर्यावरण को ‘अत्यधिक क्षति’ को गंभीरता से लेते हुये उच्चतम न्यायालय ने कोच्चि के मरदु में तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) की अधिसूचनाओं का उल्लंघन कर अनधिकृत निर्माणों पर सोमवार को हैरानी व्यक्त की।
नई दिल्ली. केरल के तटीय क्षेत्रों में गैरकानूनी निर्माण से पर्यावरण को ‘अत्यधिक क्षति’ को गंभीरता से लेते हुये उच्चतम न्यायालय ने कोच्चि के मरदु में तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) की अधिसूचनाओं का उल्लंघन कर अनधिकृत निर्माणों पर सोमवार को हैरानी व्यक्त की। न्यायालय ने तटीय विनियमन क्षेत्र का उल्लंघन करके अनधिकृत रूप से निर्मित चार अपार्टमेन्ट परिसरों को गिराने के उसके आदेश का पालन नहीं किए जाने पर केरल सरकार को कड़ी फटकार लगाई। न्यायालय ने कहा कि मुख्य सचिव को प्रकृति को हुए नुकसान का पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण करना चाहिए।
सितंबर को पारित होगा आदेश
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत शरण और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट्ट की पीठ ने सारे घटनाक्रम पर अप्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इस मामले में 27 सितंबर को विस्तृत आदेश पारित किया जायेगा। पीठ ने राज्य के मुख्य सचिव से कहा, क्या आपको इस बात का अंदाजा है कि पर्यावरण को पहुंचे नुकसान के कारण आयी बाढ़ से कितने लोगों की मौत हुई । आप प्रकृति से खेल रहे हैं। आपदाओं में हजारों लोग मारे गए हैं। आपने पीड़ितों के लिए कितने मकान बनाए ? इसके बाद भी तटीय इलाकों में अवैध निर्माण जारी है। पीठ ने कहा कि मुख्य सचिव का आचरण न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने वाला है और अब वह बहुत मुश्किल हालात में खड़े हैं। वहां जो कुछ भी हो रहा है, वह हम जानते हैं। हम जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय करेंगे। यह बहुत बड़ा नुकसान है। यह उच्च ज्वार भाटे वाला क्षेत्र है और सैकड़ों अवैध ढांचे तटीय क्षेत्र पर बने हुये हैं। पीठ ने कहा कि मुख्य सचिव ने अपने शपथ पत्र में यह नहीं बताया है कि इन अपार्टमेन्ट परिसरों को गिराने के शीर्ष अदालत के आदेश का पालन करने के लिए कितने समय की आवश्यकता है।
लॉ ऑफ ट्राट की देश में जरूरत
न्यायालय ने कहा कि कुछ अन्य मामलों में अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि भारत में अपकृत्य कानून (लॉ आफ टार्ट) की आवश्यकता है। हम अटार्नी जनरल से सहमत हैं। यदि इस देश में अपकृत्य कानून विकसित हुआ होता तो पर्यावरण की बर्बादी के लिये जिम्मेदार लोगों पर इसकी जवाबदेही तय की जा सकती थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन अपार्टमेन्ट परिसरों को गिराने से करीब 350 परिवार प्रभावित होंगे। अब उन्हें कौन बचायेगा। पीठ ने कहा, आपको समझ में नहीं आ रहा कि इस क्षेत्र में क्या हो रहा है। इस समस्या के लिये अधिकारी ही जिम्मेदार हैं क्योंकि वे इस क्षेत्र में गैरकानून निर्माण रोक नहीं सके। वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि उन्होंने मुख्य सचिव से कहा था कि न्यायालय के आदेश पर अमल के लिये जरूरी समय का संकेत देते हुये अपनी योजना दें। इस पर न्यायालय ने कहा, आप (साल्वे) वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और शायद आपको मालूम नहीं कि वहां क्या चल रहा है। यह (मुख्य सचिव) भलीभांति जानते हैं कि वहां क्या हो रहा है। ये सिर्फ बैठकें और बैठकें ही कर रहे हैं।
अभी भी चल रही है इमारतों को गिराने की प्रक्रिया
इससे पहले केरल के मुख्य सचिव ने हलफनामा दायर कर शीर्ष अदालत को भरोसा दिलाया था कि न्यायालय के आदेशों का पालन किया जाएगा और इमारतों को गिराने के लिए एक विशेष एजेंसी का चयन करने की प्रक्रिया चल रही है। मुख्य सचिव ने शीर्ष अदालत से यह आग्रह किया कि 23 सितंबर को व्यक्तिगत तौर पर अदालत में पेश होने से उन्हें छूट दी जाए। मुख्य सचिव टॉम जोस ने कहा कि वह अपने किसी भी व्यवहार के लिए बिना शर्त माफी मांगते हैं जिसे यह अदालत अपने आदेश के अनुकूल नहीं मानती है । शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को 20 सितंबर को अनुपालन रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि इसमें असफल रहने पर मुख्य सचिव को 23 सितंबर को न्यायालय में पेश होना होगा । मुख्य सचिव ने इन अपार्टमेन्ट के फ्लैटों का विवरण देते हुये हलफनामे में कहा कि 68,028.71 वर्ग मीटर क्षेत्र में चार बहुमंजिला इमारतों में 343 फ्लैट हैं। इस इलाके से दो राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं। शीर्ष अदालत ने जुलाई में भवन निर्माताओं की याचिका खारिज कर दी थी जिसमें आठ मई के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था। शीर्ष अदालत ने अधिसूचित तटीय विनियमन क्षेत्र में नियमों का संज्ञान लेते हुये आठ मई के आदेश में इन इमारतों को एक महीने के भीतर हटाने का निर्देश दिया था।
(यह खबर न्यूज एजेंसी पीटीआई भाषा की है। एशियानेट हिंदी की टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)