Girls Safety India: मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि भारत में लड़कियां अब भी FGM, बाल विवाह, कुपोषण और डिजिटल उत्पीड़न जैसी खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाएं इन खतरों को चुनौती देती हैं।

नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) बी.आर. गवई ने हाल ही में कहा कि भारत में कई लड़कियां अब भी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेट (FGM), बाल विवाह, कुपोषण और यौन शोषण जैसी खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर रही हैं। उन्होंने यह बात ‘बालिकाओं की सुरक्षा: सुरक्षित और सक्षम वातावरण की ओर’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परामर्श में कही। न्यायालय ने यह भी ध्यान दिलाया कि लड़कियों के सामने आने वाले खतरे अब सिर्फ भौतिक जगहों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि डिजिटल दुनिया तक फैल गए हैं।

मुस्लिम समुदाय के लिए CJI ने क्या कहा?

मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि कुछ मुस्लिम समुदायों में FGM जैसी प्रथाओं की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। ये याचिकाएं सबरीमाला, अगियारी, पारसी समुदायों और मस्जिदों में महिलाओं के खिलाफ कथित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को भी चुनौती देती हैं।

क्या लड़कियों को डिजिटल दुनिया में भी खतरा है?

बी.आर. गवई ने कहा कि ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर धमकी, डिजिटल स्टॉकिंग, डीप फेक इमेजरी और पर्सनल डेटा का दुरुपयोग लड़कियों के सामने नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं। तकनीक हालांकि सशक्तिकरण का साधन हो सकती है, लेकिन इसका दुरुपयोग उन्हें और भी भेद्य और असुरक्षित बना रहा है।

बालिकाओं के मौलिक अधिकार कहाँ हैं?

न्यायमूर्ति ने कहा कि लड़कियों को उनके मौलिक अधिकार और जीवनयापन के लिए आवश्यक बुनियादी संसाधनों से वंचित रखना गंभीर चिंता का विषय है। उनके अनुसार, यह भेद उन्हें बालिकाओं के खिलाफ हिंसा, तस्करी, सेक्स सेलेक्टिव अबॉर्शन और उनके इरादों के खिलाफ बाल विवाह जैसी खतरनाक परिस्थितियों के प्रति उजागर करती है।

क्या लड़कियों की सुरक्षा केवल स्कूल और घर तक ही सीमित हो सकती है?

CJI न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट किया कि आज बालिकाओं की सुरक्षा का अर्थ है उनके सामने आने वाले हर स्क्रीन और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उनका भविष्य सुरक्षित करना। युवा लड़कियों को समान अवसर और संसाधन मिलने चाहिए ताकि वे अपने पुरुष समकक्षों की तरह स्वतंत्र रूप से जीवन में निर्णय ले सकें और किसी बाधा का सामना न करना पड़े।

क्या भारत में लड़कियां सच में सुरक्षित हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर जोर दिया कि सिर्फ कानून पर्याप्त नहीं है। नीति निर्माता, संस्थान और प्रवर्तन अधिकारी इस वास्तविकता को समझें कि कैसे प्रौद्योगिकी और समाजिक संरचनाएं लड़कियों को असुरक्षित बना रही हैं। तकनीक को शोषण के बजाय सशक्तिकरण और सुरक्षा का साधन बनाना होगा। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भारत में लड़कियों को तभी समान नागरिक कहा जा सकता है जब उन्हें समान अवसर और संसाधन मिलें और किसी बाधा का सामना न करना पड़े