सार

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 साल की बच्ची के यौन शोषण करने के अपराध में 39 साल के शख्स को पॉस्को एक्ट का दोषी नहीं मानते हुए बरी कर दिया था। जबकि निचली अदालत ने उसे तीन साल की सजा सुनाई थी। तब से यह मामला तूल पकड़ा हुआ है।

 

मुंबई. 12 साल की बच्ची के यौन शोषण मामले में 39 वर्षीय आरोपी को बरी करने का मामला फिर से सुर्खियों में है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे पॉस्को एक्ट के तहत नहीं माना था। यह मामला 'स्किन-टू-स्किन' फैसले (Skin To Skin Judgment) के नाम से जाना जाता है। अब इस मामलें में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही आरोपी की जमानत पर रोक लगा दी थी।

यह है सुप्रीम कोर्ट ने
हालांकि प्रधान न्‍यायाधीश (CJI) एसए बोबडे ने कहा कि इस याचिका का कोई मतलब नहीं है, जबकि सरकार खुद इस मामले पर गौर कर रही है। चूंकि यह आपराधिक मामला है, इसलिए इस पर नोटिस जारी कर रहे हैं। बता दें कि राष्ट्रीय महिला आयोग की वकील गीता लूथरा ने याचिका पर विचार की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि महिलाओं को प्रभावित करने वाले ऐसे कानूनों पर पुनर्विचार होना चाहिए।

इस बीच अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बताया कि आरोपी जेल में ही है। अटार्नी जनरल, राष्ट्रीय महिला आयोग, यूथ बार एसोसिएशन और स्त्री शक्ति संगठन आदि ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करने की मांग की है। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट के 'स्किन-टू-स्किन' फैसले पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही 27 जनवरी को रोक लगा चुका है। बॉम्बे हाईकोर्ट से आरोपी को बरी करने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी तलब करेंगे। यह मामला अटॉर्नी जनरल ने उठाया था। आरोपी को यह कहकर बरी कर दिया गया था कि उसका बच्ची के साथ सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ है। इसका मतलब यह  POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आता है। यह आदेश हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को सुनाया था।