सार
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म The Kashmir Files इस समय देश में सियासी और सामाजिक चर्चा का विषय बनी हुई है। इस बीच एक फिल्म डायरेक्टर सनोज मिश्रा(Sanoj Mishra) ने दावा किया है कि इस विषय पर वे 2015 में सबसे पहले काशी टू कश्मीर फिल्म बना चुके हैं। तब फिल्म को कोई सपोर्ट करने आगे नहीं आया था। हां, सुषमा स्वराज ने मदद का भरोसा दिलाया था। सनोज मिश्रा ने Asianet News हिंदी से कहा कि अब वे दुबारा यह फिल्म शूट करेंगे।
न्यूज डेस्क(अमिताभ बुधौलिया). विवेक अग्निहोत्री की फिल्म The Kashmir Files इस समय देश में सियासी और सामाजिक चर्चा का विषय बनी हुई है। इस बीच एक फिल्म डायरेक्टर सनोज मिश्रा(Sanoj Mishra) ने दावा किया है कि इस विषय पर वे 2015 में सबसे पहले काशी टू कश्मीर फिल्म बना चुके हैं। तब फिल्म को कोई सपोर्ट करने आगे नहीं आया था। हां, सुषमा स्वराज ने मदद का भरोसा दिलाया था। सनोज मिश्रा ने Asianet News हिंदी से कहा कि अब वे दुबारा यह फिल्म शूट करेंगे। सनोज मिश्रा सच्ची घटनाओं पर फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं। 22 मई को उनकी फिल्म शशांक रिलीज हो रही है। यह सुशांत सिंह पर बेस्ड है।
मई में फिर से शूट होगी काशी टू कश्मीर
The Kashmir Files से पहले भी कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर एक फिल्म 'काशी टू कश्मीर' फिल्म बन चुकी है, जिसे पूर्व केंद्रीय स्वर्गीय मंत्री सुषमा स्वराज ने मदद का भरोसा दिलाया था। हालांकि तमाम संकटों के चलते वो फिल्म सिनेमाहॉल तक नहीं पहुंच पाई। अब ये फिल्म रीशूट होने जा रही है। काशी टू कश्मीर के निर्देशक सनोज मिश्रा(Sanoj Mishra) ने ऐलान किया है कि इस फिल्म की शूटिंग मई से कश्मीर घाटी में होगी। बता दें कि सनोज मिश्रा सुशांत सिंह पर फिल्म बनाने को लेकर चर्चा में हैं। शशांक टाइटल से उनकी यह फिल्म 27 मई को रिलीज हो रही है। हालांकि इस फिल्म में भी कई अड़चनें आईं। सुशांत सिंह का परिवार इस फिल्म का विरोध करता रहा है। पढ़िए द कश्मीर फाइल्स को लेकर सनोज मिश्रा क्या कहते हैं...
काशी टू कश्मीर फिल्म बनाने जा रहे निर्देशक सनोज मिश्रा ने लिखी फेसबुक पोस्ट
मुझे न सस्ती पब्लिसिटी चाहिए और न किसी की मेहनत की क्रेडिट, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि कश्मीरी मुद्दे पर बेबाक फिल्म का निर्माण सबसे पहले हमारी टीम ने किया है। ये बात और है की इस समय कश्मीर फाइल्स की सुनामी है और हो सकता है की मेरी बात को हल्के में लिया जाए। लेकिन साक्ष्य हैं हर बात के। जुलाई 2015 को युवा निर्माता दीपक पंडित किसी विषय पर फिल्म बनाने के लिए मुझे साइन करने आए। उन्हीं दिनों मैं कश्मीर से रिसर्च करके वापस आया था। मैने दुनिया के एक ऐसे विषय के बारे में जिक्र किया, जो हिरोशिमा पर परमाणु हमले या भारत पाकिस्तान के बंटवारे जैसा दर्दनाक था, लेकिन कोई भी उस पर बात नही करना चाहता था और युवा पीढ़ी को तो पता भी नही था की कोई ऐसी घटना भी हुई है?
विषय बड़ा था हिम्मत की बात थी
विषय बड़ा था। बहुत हिम्मत की बात थी। दीपक जी तैयार हो गए। उनका मनोबल और बढ़ा, जब वो भाजपा नेत्री स्व सुषमा स्वराज जी से मिले। उन्होंने पूरा सहयोग और आशीर्वाद दिया। साथ ही पाकिस्तान से छुड़ाकर लाई गईं भारतीय उजमा अहमद को भी फिल्म में कास्ट करने की सलाह दी। फिल्म के पहले शेड्यूल की शूटिंग कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र श्रीनगर, अनंतनाग, कुपवाड़ा, बांदीपुरा में होनी थी। उन दिनों माहौल बहुत ही खराब था और हमारे पास संसाधन का अभाव था।
मुस्लिम भाइयों ने किया था सहयोग
जब मैंने अपनी टीम के साथ जवाहर टनल पार कर घाटी में प्रवेश किया, तो एक पल के लिए मुझे लगा कि कहीं मैं अपने साथ अस्सी और लोगों की जान जोखिम में तो नहीं डाल रहा हूं....? हौसले के आगे डर हार गया। कश्मीर पहुंच कर हमने बिना सुरक्षा के शूटिंग के लिए प्लान बनाया, क्योंकि स्थानीय लोगों ने कहा की ऐसा करने से आतंकवादियों ने नजरों में आ जाने वाली बात होगी। थोड़ा दिमाग लगाकर हमने पूरी यूनिट और खुद भी स्थानीय पोशाक पहन ली, जिससे उस माहौल में घुल-मिल जाएं। बहुत से स्थानीय मुस्लिम भाइयों ने हमें सहयोग भी किया और हम सफलतापूर्वक कश्मीर की शूटिंग पूरी कर जम्मू पहुंचे।
कलाकार डर की वजह से काम करने से मना कर देते थे
समय बदला निर्माता दीपक पंडित ने आर्थिक कारणों से फिल्म को आगे बना पाने में अपनी मजबूरी जताई। फिल्म को पूरा करने के लिए मैंने अंतिम छोर तक प्रयास किया। पूरे देश के चक्कर लगाए, क्योंकि मकसद बड़ा था। इस वजह से करीब 4 फिल्में मेरे हाथ से चली गईं, क्योंकि जो भी फिल्म का प्रपोजल मेरे पास लेकर आता था, मैं उसके सामने काशी को रख देता था। लोग भाग जाते थे। यहां तक की फिल्म के विषय को लेकर कई बड़े कलाकारों ने मुझे फिल्म करने से भी मना कर दिया था।
कारवां चलता रहा
कारवां चलता रहा। कुछ लोग और भी जुड़े, लेकिन ये वो लोग थे, जिनका इस फिल्म इसके स्वरूप से कोई लेना-देना नही था। वो सिर्फ सस्ती पब्लिसिटी और पैसा चाहते थे। उनकी किसी भी तरह की न मेहनत जुड़ी थी न भी इमोशन्स। घिसते-पिटते फिल्म पूरी होते होते 6 से अधिक साल लग गए। यहां तक की कई बार फिल्म को पूरा करने के लिए मुझे तमंचे पर डिस्को भी करना पड़ा।
फिल्म का ट्रेलर चर्चा में आ गया था
फिल्म का ट्रेलर आते ही चर्चा का विषय हो गया। राजनीतिक दलों के आईटी सेल ने इसको फिजिकली सर्कुलेट कर वोट बनाए, लेकिन इसके बनाने वालो से कभी मिलना भी नहीं गंवारा समझा। 'मानसिक रोगियों(बेकार लोग)' के टीम में आने से भव्य रिलीज रुक गई। कई डील्स कैंसिल कर दिए गए। मैं समझता रह गया। उल्टा बाद में मानसिक रोगियों ने मुझे ब्लेम भी करना शुरू कर दिया, लेकिन फिल्म से जुड़ा छोटा सा कर्मचारी भी जानता है कि मैंने अपनी जिंदगी के सबसे अधिक मेहनत की और ईमानदारी से 6 साल दिए इस फिल्म को।
एक बार फिर इसी फिल्म को बनाने जा रहे हैं
फिल्म से जुड़े सभी लोगों को दु:ख है कि द कश्मीर फाइल्स को देश की जनता ने सर आंखों पर बैठा लिया और होना भी चाहिए था, क्योंकि मैंने खुद कई बार द कश्मीर फाइल्स देखी। ये बात अलग है की हमारी फिल्म को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कई अवॉर्ड मिले, लेकिन हम पीछे ही रहे। लेकिन खुशी इस बात की है की देश की जनता ऐसे विषयों को जानने-समझने लगी और जागरूक होने लगी है। अब काशी टू कश्मीर किसी अन्य टाइटल के साथ दोबारा शूट होने जा रही है। इस बार आर्थिक और मानसिक रूप से मजबूत टीम है। निर्माण की कमान एक बार फिर दीपक पंडित संभालने जा रहे हैं। जाहिर सी बात है पैसे से अकल नहीं खरीद सकता कोई भी। कई दिनों से दिनभर लोग सवाल करते हैं और मैं समझा नहीं पाता था। इसलिए ये पोस्ट लिखी है कि शायद जिज्ञासु लोगों को ये जवाब जरूर मिल जाएगा की काशी टू कश्मीर क्यों नहीं आई।