सार
रेल यात्रियों (Train passenger) के लिए एक और खुशखबरी है। अब आपको एसी कोच (AC coach) में गंदी बेडशीट की वजह से अपने साथ बेडशीट ले जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। रेलवे विभाग (Railway Department) ने यात्रियों की सुविधा और स्वच्छता बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। रेल यात्रियों को एसी कोच में साफ बेडरोल (Bedroll) मिलेंगे। पहले रेल के एसी कोच में मिलने वाले बेडरोल महीने में एक बार धोए जाते थे। लेकिन अब रेलवे विभाग ने 15 दिन में एक बार बेडरोल धोने का फैसला किया है।
बेडशीट और तकिये के कवर की सफाई पर विशेष ध्यान देने का फैसला विभाग ने लिया है। यात्रियों ने कई बार शिकायत की थी कि चादरें गंदी होती हैं, जिससे उनका इस्तेमाल करना मुश्किल होता है। इस पर गंभीरता से विचार करते हुए रेलवे विभाग ने अब 15 दिन में एक बार बेडशीट साफ करने का फैसला लिया है। रेल मंत्री वैष्णव ने लोकसभा में बताया था कि रेलवे के एसी कोच में इस्तेमाल होने वाले बेडरोल महीने में एक बार धोए जाते हैं। इससे रेलवे विभाग की काफी आलोचना हुई थी। यात्रियों ने सवाल किया था कि अगर महीने में एक बार बेडशीट साफ की जाती है तो इतने सारे लोग इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं, बेडरोल साफ कैसे रह सकता है? इससे यात्रियों की सेहत खराब हो सकती है, ऐसी बातें सामने आई थीं। इन आलोचनाओं के बाद रेल मंत्रालय ने यह ठोस फैसला लिया है।
15 दिन में एक बार बेडशीट, तकिये के कवर साफ करने के लिए रेलवे विभाग ने गुवाहाटी के रेलवे लॉन्ड्री में काम शुरू कर दिया है। विभाग के दावे के मुताबिक, यात्रियों को साफ चादरें मिलेंगी। इससे उन्हें आरामदायक सफर करने में मदद मिलेगी। भारतीय रेलवे के एसी कोच के यात्रियों को बेडरोल की सुविधा दी जाती है। इसमें दो चादरें, एक गलीचा, तकिया और एक छोटा तौलिया दिया जाता है। इसके लिए रेलवे कोई अतिरिक्त पैसा नहीं लेता है। लेकिन गरीब रथ ट्रेन में बेडरोल के लिए अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है।
गुवाहाटी के रेलवे लॉन्ड्री में गलीचा और बेडशीट बहुत तेजी से साफ किए जाते हैं। एक चादर साफ करने में 45 मिनट लगते हैं। चादर को पहले 80 से 90 डिग्री तापमान पर धोया जाता है। फिर उसे सुखाया जाता है। एक बेडरोल साफ करने में लगभग 23.58 रुपये का खर्च आता है। गुवाहाटी कोचिंग डिपो मैनेजर सुदर्शन भारद्वाज ने बताया कि हर दिन बेडरोल साफ किए जा रहे हैं। भारद्वाज ने बताया कि एक बेडशीट साफ करने में लगभग 45 से 60 मिनट लगते हैं। इस काम के लिए ज्यादातर महिलाओं को काम पर रखा गया है। 60 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही हैं, जिससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिल रहा है।