सार

कोरोना महामारी के बीच हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में एक हफ्ते चलने वाला दशहरा मेला शुरू हो गया। रविवार को मेले में सैकड़ों लोगों ने भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा में हिस्सा लिया। कुल्लू में दशहरा पर 7 दिन का मेला लगता है। हर बार की तरह इस बार भी मेले को लेकर स्थानीय लोगों में उत्साह है। मेले में महिलाओं ने लोक नृत्य किया, वहीं पुरुषों ने ढोल बजाया। 

शिमला. कोरोना महामारी के बीच हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में एक हफ्ते चलने वाला दशहरा मेला शुरू हो गया। रविवार को मेले में सैकड़ों लोगों ने भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा में हिस्सा लिया। 

कुल्लू में दशहरा पर 7 दिन का मेला लगता है। हर बार की तरह इस बार भी मेले को लेकर स्थानीय लोगों में उत्साह है। मेले में महिलाओं ने लोक नृत्य किया, वहीं पुरुषों ने ढोल बजाया। 

कोरोना को लेकर जारी की गई गाइडलाइन
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, कैबिनेट मंत्री और दशहरा कमेटी के चेयरमैन गोविंद सिंह ठाकुर ने बताया, पारंपरिक तरीके से भगवान रघुनाथ की रथयात्रा निकाली गई। यह मेला उत्सव एक हफ्ते तक चलेगा। कोरोना को देखते हुए एसओपी भी जारी की गई है। मेले में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का भी पालन किया जा रहा है। 

17वीं शताब्दी से शुरू हुआ ये मेला
कुल्लू में इस मेले को देव मानव मिलन के तौर पर देखा जाता है। घाटी में रहने वाले लोग खेती और बागवानी कार्य समाप्त होने के बाद ग्रामीणों की खरीदारी के लिए खास होता है। इस मेले की शुरुआत 17वीं शताब्दी में कुल्लू के राजपरिवार द्वारा देव मिलन से यह दशहरा मेला शुरू हुआ था। अब इस मेले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल चुकी है। 

क्या है दशहरे मेले का इतिहास?
16वीं शताब्दी में श्राप से परेशान कुल्लू के राजा जगत सिंह अयोध्या से राम की मूर्ति लेने गए थे। ये मूर्तियां भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ के दौरान बनाई गई थीं। इन्हें 1653 में मणिकर्ण मंदिर में रखा गया और 1660 में इसे कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया गया। राजा ने अपना सारा राज पाठ भगवान रघुनाथ के नाम कर दिया। इस मेले को 1966 में राज्य स्तरीय उत्सव का दर्जा मिला और 2017 में इसे अंतरराष्ट्रीय उत्सव का दर्जा मिला।