सार
पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया। यह वही संगठन है जो एक बार फिर सवालों के घेरे में है। यहां तक की उत्तर प्रदेश में एक बार फिर इसको बैन करने की मांग उठने लगी है। यह पहला मौका नहीं है, जब यह संगठन सवालों के घेरे में है। इससे पहले दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में फरवरी में नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा फैली थी।
लखनऊ. पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया। यह वही संगठन है जो एक बार फिर सवालों के घेरे में है। यहां तक की उत्तर प्रदेश में एक बार फिर इसको बैन करने की मांग उठने लगी है। यह पहला मौका नहीं है, संगठन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। इससे पहले दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में फरवरी में नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा फैली थी। इसके पीछे भी इसी संगठन का हाथ बताया गया था। अब मुद्दे पर आते हैं, आखिर हम पीएफआई की बात क्यों कर रहे हैं?
उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक कथित गैंगरेप को लेकर लोगों में गुस्सा है। वहीं, विपक्षी पार्टियां भी राज्य की योगी सरकार पर जमकर निशाना साध रही हैं। इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार को साजिश का खुलासा किया था। पुलिस ने दावा किया कि हाथरस के बहाने यूपी को जलाने की साजिश रची जा रही थी। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा था कि देश और प्रदेश में जातीय और सांप्रदायिक दंगे फैलाने की साजिश रची जा रही है। इसके लिए विदेश से फंडिंग भी हो रही है। इस हिंसा के पीछे पुलिस ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का हाथ बताया है।
ऐसे रची जा रही थी साजिश
पुलिस के मुताबिक, जस्टिस फॉर हाथरस नाम से वेबसाइट तैयार की गई थी। इस पर आपत्तिजनक और भड़काऊ सामग्री अपलोड की गई। वेबसाइट पर बताया गया कि कैसे दंगे करें। दंगे में शामिल लोग अपना बचाव कैसे करें। इतना ही नहीं इस वेबसाइट के जरिए हाथरस के परिवार की मदद के नाम पर फंडिंग भी की जा रही थी।
उठी बैन करने की मांग
उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक मंत्री मोहसिन रजा ने पीएफआई को बैन करने की मांग की है। उन्होंने कहा, जो राजनीतिक पार्टियां पीएफआई का समर्थन कर रही हैं, वे देश में आतंक फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, मैं केंद्र सरकार से मांग करता हूं कि SIMI की तरह पीएफआई को भी आतंकी संगठन घोषित कर बैन लगाया जाए।
क्या है पीएफआई?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को चरमपंथी इस्लामिक संगठन माना जाता है। यह खुद को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला सगठन बताता है। 2006 में इस संगठन की स्थापना नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF)के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। इस संगठन का मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में है। मुस्लिम संगठन होने के चलते इसकी गतिविधियां मुस्लिमों के आस पास मानी जाती हैं।
23 राज्यों में सक्रिय है पीएफआई?
मौजूदा वक्त की बात करें तो पीएफआई 23 राज्यों में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। हालांकि, इसकी कार्यप्रणाली पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। इसके बावजूद संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है।
विवादों से है पुराना नाता
- 1977 में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का गठन हुआ था। इसपर 2006 में बैन लगा था। इसके तुरंत बाद पीएफआई का गठन किया गया। दोनों संगठन की कार्यप्रणाली भी एक जैसी है। इसमें ज्यादातर सदस्य वही हैं, जो सिमी से जुड़े थे। ऐसे में विरोधी पीएफआई को सिमी का दूसरा विंग कहते हैं।
- इस संगठन को बैन करने की मांग 2012 में भी उठी थी। लेकिन उस वक्त केरल सरकार ने पीएफआई का समर्थन किया था।
- केरल पुलिस ने इसके बाद कुछ पीएफआई कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया था, इनके पास से बम, हथियार, सीडी और तमाम ऐसे दस्तावेज जब्त किए गए थे, जिनसे ये अल कायदा और तालिबान से प्रभावित नजर आ रहे थे।
- 2016 में एनआईए ने केरल के कन्नूर से आतंकी संगठन आईएस से प्रभावित अल जरूल खलीफा ग्रुप का खुलासा किया था। इसे देश के खिलाफ जंग छेड़ने और समुदायों को आपस में लड़ाने के लिए बनाया गया था। बाद में एनआईए को जांच में पता चला कि गिरफ्तार किए गए ज्यादातर सदस्य पीएफआई से थे।
- इसी साल फरवरी में नागरिकता कानून के विरोध में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में हुए दंगों में भी पीएफआई का हाथ बताया गया था। इतना ही नहीं पीएफआई ने दंगों के लिए फंडिंग भी की थी। इस दौरान पीएफआई के कई कार्यकर्ता भी गंभीर आरोपों को लेकर गिरफ्तार हुए थे।