सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन किया। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियां इस बात का विरोध कर रहीं हैं कि उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्यों किया।

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन (New Parliament building inauguration) किया। इसको लेकर खूब राजनीति हो रही है। 20 विपक्षी पार्टियों ने इस समारोह में हिस्सा नहीं लिया है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियां इस बात का विरोध कर रहीं हैं कि उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों कर रहे हैं। राष्ट्रपति से क्यों उद्घाटन नहीं कराया जा रहा है। कई लोग कांग्रेस के इस विरोध की वजह तलाशने में जुट गए हैं।

वर्तमान संसद भवन का उद्घाटन 1927 में हुआ था। उस वक्त भारत पर अंग्रेजों का राज चलता था। इस कार्यक्रम में कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भाग लिया था। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने वर्तमान संसद भवन का उद्घाटन किया था। कांग्रेस उस समय इस कार्यक्रम में शामिल होने का विरोध कर सकती थी। वह तर्क दे सकती थी कि औपनिवेशिक कब्जे को कायम रखने वाले किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगे। या कांग्रेस वर्तमान तर्क के अनुसार कह सकती थी कि ब्रिटिश सम्राट संसदीय प्रणाली का वास्तविक संवैधानिक प्रमुख है न कि वायसराय। वायसराय संसद भवन का उद्घाटन क्यों कर रहे हैं? इसके बजाय ब्रिटिश राजा को उद्घाटन करना चाहिए और उसके बाद ही हम इसमें शामिल होंगे। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा कोई बेतुका तर्क नहीं दिया। इस तरह की बेतुकी बातें केवल पीएम नरेंद्र मोदी के लिए कांग्रेस ने बचाकर रखी हैं।

नरेंद्र मोदी के प्रति नफरत से भरी है कांग्रेस
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस की नजर में लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री का कद ब्रिटिश एजेंट से कम है? कांग्रेस की दो मुख्य समस्याएं हैं। पहला है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नफरत। दूसरा यह सोच कि भारत गांधी परिवार की संपत्ति है। वे यह सोचते हैं कि कोई दूसरा कैसे राष्ट्रीय महत्व की गतिविधि कर सकता है।

ऐसा नहीं है तो कांग्रेस 2017 में जीएसटी लाने के लिए बुलाए गए सत्र का बहिष्कार क्यों करती? तब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों मौजूद थे। तब क्या तर्क था? सोनिया गांधी ने छत्तीसगढ़ के विधानसभा की नींव रखी थी। इसे किस तरह सही ठहराया जा सकता है? कांग्रेस के तर्क के अनुसार छत्तीसगढ़ का राज्यपाल (राज्यों में राष्ट्रपति के समकक्ष) को विधानसभा की नींव रखनी चाहिए थी, लेकिन राज्यपाल को तो भूल ही जाइए, मुख्यमंत्री को भी इसकी इजाजत नहीं थी। कांग्रेस में प्रत्येक काम गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है। इसलिए सोनिया गांधी ने बिना किसी संवैधानिक दर्जे के विधानसभा भवन की नींव रखी।