सार

कोेरोना वायरस पर प्रतिष्ठित विज्ञान लेखक निकोलस वेड ने और अधिक खुलासा किया है। कैसे वायरोलॉजी के गिल्ड को बाधित किया गया, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कैसे भ्रम पैदा किया, अमेरिकी मीडिया क्यों चुप रही और बंटी अमेरिकी राजनीति ने अपराधी इग्नोर किया। हालांकि, वेड ने सबसे संवेदनशील विषय ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ और चीनी सेना के बीच की कड़ी को नहीं छुआ। लेकिन वह अब सामने आने लगा है। यही नहीं अमेरिका और चीन के संयुक्त शोध ने दुनिया को किस तरह खतरे में डाल दिया। यह सब अमेरिका और चीन, दुनिया और उसके भविष्य को कहां छोड़ता है? पढ़िए दूसरी कड़ी...
 

एक तरफा प्यार

पूर्व के इतिहास से नहीं सीखने की आदत और अमेरिकी शीतयुद्ध के बाद की धारणा को भुगत रहा कि ‘एक समृद्ध चीन अंततः लोकतंत्रीकरण करेगा’। एक महान भारतीय द्रष्टा ने 1973 में कहा था कि चीन में साम्यवाद एक गुजरता हुआ चरण था जिसके बाद एक कन्फ्यूशियस चीन कम्युनिस्ट चीन से बाहर निकलेगा। इसमें साम्राज्य निर्माण की प्रवृत्ति बरकरार रहेगी। आधुनिक दिमाग वाले अमेरिका ने कम्युनिस्ट चीन की चेतना में गहरे दबे इस ऐतिहासिक प्राचीन सोच को नहीं समझने की भूल कर बैठा। माक्र्सवादी राज्य चीन ने एक बाजार अर्थव्यवस्था होने का दिखावा किया और 2001 में इसे विश्व व्यापार संगठन में शामिल करने के लिए अमेरिका को मंत्रमुग्ध कर दिया। लेकिन 18 साल बाद अमेरिका को इस भूल का एहसास हुआ। ठीक 18 साल बाद 2019 में, अमेरिका और यूरोपीय संघ को विश्व व्यापार संगठन में रोते हुए सुना गया कि चीन एक बाजार अर्थव्यवस्था नहीं है। 
बहरहाल, डब्ल्यूटीओ ने भी माना कि चीन एक बाजार अर्थव्यवस्था नहीं है। यह अमेरिका की अदूरदर्शिता और चीन की दूरदर्शिता को दर्शाता है। हालांकि, ट्रम्प के आगमन में अमेरिका के लिए बहुत देर हो चुकी थी, क्योंकि उस समय तक कमर्शियल हित चीन से सप्लाई चेन पर निर्भर हो चुके थे और इस पर अमेरिका अपना प्रभाव खो चुका था। लेकिन बहुत से क्षेत्रों में, अमेरिका और चीन ने संयुक्त अभ्यास किया था, जिसके इरादे गोपनीय रखे गए और अभ्यास भी अंडरकवर रखकर किया गया। 
बढ़ते आपसी संबंधों को देखते हुए, अमेरिका की इस अदूरदर्शित का लाभ उठाते हुए फोकस्ड चीन ने बड़ी चतुराई से अमेरिका को डिफोकस करते हुए कोरोना वायरस रिसर्च में शामिल कर लिया। अब मामला खुलने के बाद चीन से अधिक अमेरिका को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही। 
वेड अपने लेख में अमेरिका और चीन के बीच पर्दे के पीछे की बातचीत क्या हो सकती है, बात करते हैं। उधर, मामला सामने आने के बाद चीनी ने कहा, अगर यह शोध इतना खतरनाक था, तो आपने इसे और हमारे क्षेत्र में भी क्यों फंड किया? 
वेड का कहना है कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज के निदेशक एंथोनी फौसी जोकि ट्रंप के बाद अब राष्ट्रपति जो बिडेन के साथ काम कर रहे हैं, को ढोने की मजबूरी होगी। क्योंकि जिस तरह चीन इस मामले को दबाने की कोशिश में है, अमेरिका भी इस मामले को दबाने में लगेगा। क्योंकि, डब्ल्यूआईवी में शी झेंगली के विनाशक काम के लिए फंडिंग अमेरिका से भी हुई थी। 

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वायरोलॉजिस्ट ने भी की मामले को दबाने की कोशिश 

और अब आते हैं साइंटिस्ट गिल्ड पर। जब वुहान में वायरस के प्रकोप के दौरान इसके डब्ल्यूआईवी को स्रोत के रूप में इंगित किया तो वायरोलॉजिस्ट और अन्य लोगों के एक समूह ने इसे एक सिरे से खारिज किया। 9 फरवरी, 2020 को लैंसेट में लिखा कि हम एक साथ खड़े हैं और साजिश के सिद्धांतों की कड़ी निंदा करते हैं जो यह कहते हैं कि कोविड-19 की प्राकृतिक उत्पत्ति नहीं है। समूह ने लिखा कि वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि यह कोरोना वायरस वन्यजीवों में उत्पन्न हुआ है। इन वैज्ञानिकों ने बीमारी के खिलाफ लड़ाई में मजबूती से चीनी सहयोगियों के साथ खड़े होने का आह्वान किया। वेड कहते हैं कि यह तब था, जब किसी के लिए यह सुनिश्चित करना बहुत जल्द था कि क्या हुआ था। वैज्ञानिक समूहों के इस दावे से वैश्विक राय पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा।
गिल्ड ने लगातार मामले में भ्रमित करने की कोशिश की। दूसरा लेख और दावा वायरस को लेकर दृष्टिकोण और बदलने वाला था। 17 मार्च 2020 को नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित वायरोलॉजिस्ट के एक समूह द्वारा लिखा गया एक पत्र था। पत्र के पैरा 2 ने साफ तौर पर घोषित किया कि सार्स-2 प्रयोगशाला निर्माण नहीं था। इसके बाद के हिस्से ने कहा कि यह असंभव था कि यह प्रयोगशाला में हेरफेर किया गया था। फिर भी कोई उनसे पूछने की हिम्मत नहीं करता। क्यों? 
वेड का कहना है कि अगर वैज्ञानिकों के बड़े समूह ने एकलाइन खींची है तो उसको चुनौती देना किसी भी अन्य के लिए थोड़ा मुश्किल होता है। क्योंकि ऐसा करने से उनका करियर नष्ट किया जा सकता है, शोध के लिए अनुदान रोका जा सकता है। अगले अनुदान आवेदन को समुदाय प्रमुखों द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता है। पूरे विश्व में विज्ञान प्रतिष्ठानों को नियंत्रित करने वाला एक कुलीनतंत्र है जो सरकारी अनुदानों को नियंत्रित करते हैं, यह एक अधिक गंभीर खतरे की ओर इशारा करता है। 

डब्ल्यूएचओ ने भी की हेराफेरी

अब डब्ल्यूएचओ की भूमिका की जांच करें। सबसे पहले, इसने वायरस के नामकरण में प्राकृतिक विकास सिद्धांत को अनिवार्य रूप से शामिल किया। डब्ल्यूएचओ आयोग इस जांच को नियंत्रित किया जिससे यह पता चले कि यह प्राकृतिक विकास था या चीन ने मानव निर्मित वायरस फैलाया।
वेड का कहना है कि इस कमिशन में सदस्य के रूप में पीटर दासजक (एनजीओ इकोहेल्थ एलायंस के चीफ, जिसके माध्यम से यूएस फंड को डब्ल्यूआईवी में भेजा गया था) शामिल थे। पीटर जोर देकर कहते रहे कि लैब से वायरस के लीक होने की संभावना नहीं है।
उधर, प्राकृतिक उत्पत्ति सिद्धांत के समर्थन में चीनियों के पास कोई सबूत नहीं था। वेड के अनुसार, डब्ल्यूएचओ कमिशन के प्राकृतिक उत्पत्ति के दावे और वायरस के लैब से लीक नहीं होने के प्रोपगैंडा से चीन अपनी जीत को लेकर खुश था। वेड ने कहा कि डब्ल्यूएचओ के दावे से चीन के केंद्रीय अधिकारियों ने त्रासदी की प्रकृति और इसके लिए चीन की जिम्मेदारी को छिपाने में पूरी मदद मिली। इसके बाद डब्ल्यूआईवी के सभी रिकार्ड दबा दिए गए और लैब में वायरस के डेटाबेस को बंद कर दिया गया। इसके बाद वायरस को लेकर झूठ कहते रहे और गुमराह करते रहे। डब्ल्यूएचओ की मदद से जांच में हेरफेर कर वायरस को रोकने के लिए दिखावा करते रहे। जांच में हेरफेर करने में बदनाम डब्ल्यूएचओ आयोग ने फरवरी 2021 में फिर यात्रा की लेकिन कुछ हासिल नहीं हो सका। हालांकि, तबतक वायरस के प्राकृतिक उत्पत्ति पर सवाल उठ चुके थे। 

बंटा हुआ अमेरिका, खामोश मीडिया

लैब से वायरस के फैलने को लेकर अमेरिका में मुख्यधारा मीडिया की मूक चुप्पी साधे रहे। वेड ने वायरस पर सच नहीं लिखने की ओर इशारा करते हुए कहा कि सच नहीं सामने आने का नतीजा रहा कि 35 लाख जान चली गई। उन्होंने मीडिया की सुस्ती के दो कारण बताए। सबसे पहले वायरोलॉजिस्ट की राय है। दूसरा, राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि वायरस वुहान लैब से निकल गया था, जिसकी वजह से अधिकतर ने इसको तवज्जो नहीं दी। मीडिया यहां प्रतिष्ठित वायरोलॉजिस्ट के विचार को भी प्रमुखता देने के पक्ष में थी। इसलिए वायरस के लैब एस्केप के सिद्धांत को खारिज कर दिया गया। जाहिर है, राजनीतिक विभाजन ने मीडिया को भी खामोश कर दिया।

डब्ल्यूआईवी और पीएलए लिंक

विज्ञान लेखक वेड वैसे तो मानते हैं कि डब्ल्यूआईवी से घातक वायरस का रिसाव सामान्य रूप से हो सकता है। लेकिन कई लोग इसे भयावह षडयंत्र मानते हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने तो खुले तौर पर यह कहा था कि कोरोना वायरस एक जैव हथियार है और कोविड-19 जैव युद्ध। ब्राजील में भारत की मृत्यु दर का 10 गुना और हमारी संक्रमण दर का तीन गुना है।
इसके बाद, जनवरी 2021 में अमेरिकी विदेश विभाग की एक फैक्टशीट जारी किया जिसका सबहेड था ‘डब्ल्यूआईवी में सीक्रेट मिलिट्री एक्टीविटी’। इसमें बताया गया था कि चीनी सेना ने डब्ल्यूआईवी से मिलकर एक सीक्रेट मिशन के तहत जैव हथियार का निर्माण कर रहा है जोकि इसका एक्सपेरिमेंट 2017 से किया जा रहा है। कहा गया कि चीनी जैव-हथियार के काम में लगा है और अमेरिका और अन्य जिन्होंने वुहान लैब को फंडिंग की है उसको पता लगाना चाहिए कि चीन ने यह धन चीनी सेना के किसी रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए तो नहीं लगाया है।
यूके के सन अखबार ने ऑस्ट्रेलियाई मीडिया के हवाले से कहा कि चीनी सेना ने अनुमान लगाया है कि अगला विश्व युद्ध जैव-हथियारों से लड़ा जाएगा और उस उद्देश्य के लिए, यह दुश्मन के स्वास्थ्य ढांचे को नष्ट करने के लिए 2015 में कोरोना वायरस को विकसित किया था। इसमें कहा गया है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने चीनी दस्तावेज प्राप्त किए हैं जिसमें गतिविधियों का खुलासा किया गया है।

विश्व और चीन

एक षडयंत्रकारी प्रयोग ने दुनिया को कहां से कहां पहुंचा दिया है ? स्वास्थ्य, शांति, आजीविका के साथ ढेर सारे परिवार नष्ट हो गए हैं। अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्थाएं घातक वायरस की वजह से तनाव में है। यह सप्लाई चेन निश्चित रूप से चीन से है जिसने पूरे मानव जीवन को खतरे में डाल दिया। जबकि चीन, वायरस का वाहक और पहले से ही एक उभरती हुई महाशक्ति, उच्च विकास वक्र पर अपनी अर्थव्यवस्था के साथ सुरक्षित है। अपनी सैन्य शक्ति से, यह अपने द्वारा निर्यात किए गए जैव-वायरस से व्यथित सभी राष्ट्रों को पछाड़ सकता है।

क्या अमेरिका-चीन की राजनीति में यह दफन होगा या बेनकाब?

अब आते हैं अमेरिका के भीतर बंटे हुए और उसके चीन संबंधों पर। जब नेशनल इंटेलिजेंस के अध्यक्ष बिडेन के निदेशक एवरिल हैन्स ने कहा कि डब्ल्यूआईवी लैब रिसाव से इंकार नहीं किया जा सकता है, तो उन्हें काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया गया था। लेकिन हाल ही में बाइडेन प्रशासन और अमेरिकी मीडिया प्राकृतिक विकास सिद्धांत पर सवाल उठाने में सक्रिय हो रहे हैं।
फौसी ने खुद कहा था कि लैब एस्केप थ्योरी से इंकार नहीं किया जा सकता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हाल ही में ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान विदेश विभाग की एक फैक्ट शीट की रिपोर्ट दी थी जिसमें पाया गया था कि नवंबर 2019 में कोरोनवायरस के प्रकोप से पहले, डब्ल्यूआईवी के शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के अनुरूप लक्षणों के साथ अस्पताल में देखभाल की मांग की थी। डब्ल्यूएसजे ने कहा कि यह लैब से बचने की जांच के लिए तथ्यों को जोड़ता है। पोलिटिको पत्रिका ने कहा कि उसी तथ्य पत्र में, 2018 में डब्ल्यूआईवी का दौरा करने वाले अमेरिकी राजनयिकों ने चेतावनी दी थी कि डब्ल्यूआईवी शोधकर्ताओं ने नए बैट कोरोना वायरस पाए हैं जो आसानी से मानव कोशिकाओं को संक्रमित कर सकते हैं, लेकिन तब किसी ने नहीं सुना।
मीडिया और बाइडेन प्रशासन पर सच बोलने और कार्रवाई करने का दबाव है। लेकिन वे करेंगे? या वे दबाव में आकर सच्चाई को दबा देंगे?
वेड को उम्मीद है कि वुहान लैब से वायरस फैला जो कि पूरी दुनिया के लिए खतरा बना यह साबित हो सकता है। ऐसी बात नहीं है कि बिडेन प्रशासन पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के वुहान लैब के बारे में कहने की वजह से मामले को दबा दे क्योंकि अमेरिका एक लोकतांत्रिक देश है और इतने विशालकाय को सच को अमेरिका में दफनाना असंभव है।

(लेखक एस.गुरुमूर्ति Thuglak के संपादक हैं। आर्थिक और राजनीतिक मसलों के विशेषज्ञ हैं। यह लेख न्यू इंडियन एक्सप्रेस में अंग्रेजी से लिया गया है।) 

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