सार
एक मां और उसके तीन जवान दिव्यांग बच्चों से जुड़ी यह भावुक करने वाली कहानी पंजाब के फाजिल्का जिले की है। अपने बच्चों के इलाज और रोटी की फिक्र में पिता 5 साल पहले चल बसा। अब मां जैसे-तैसे असहाय बच्चों को पाल रही है। उसे मदद की दरकार है।
फाजिल्का, पंजाब. बिस्तर पर असहाय पड़े ये तीन जवान बच्चे ठीक से यह भी नहीं जानते कि उनकी हालत देखकर मां के दिल पर क्या बीत रही होगी? वे उठकर अपनी मां की मदद भी नहीं कर सकते। बूढ़ी मां रोती भी रहे, तो वो उठकर उसके आंसू नहीं पोछ सकते। क्योंकि ये तीनों जन्मजात दिव्यांग हैं। मां कभी इनकी लंबी उम्र की कामना नहीं करती, लेकिन जब तक जिंदा हैं, उन्हें भूखे नहीं देख सकती। उनके इलाज के लिए कोशिशें नहीं छोड़ सकती। अब उसे सिर्फ लोगों की मदद की उम्मीद है, ताकि बची-खुची जिंदगी ठीक से गुजर जाए।
तरस खाकर लोग कर देते हैं मदद..
इंसानियत किसी पर तरस खाने में नहीं है। लेकिन ज्यादातर लोग इस परिवार पर तरस खाकर मदद करते हैं। यह परिवार फाजिल्का जिले के जलालाबाद कस्बे के ढंडी खुर्द गांव में रहता है। इनकी मां रूपा बाई बताती हैं कि उनका बड़ा लड़का बलविंदर सिंह(27), गुरजंट सिंह(25) और लड़की काजल(21) बचपन से ही दिव्यांग है। इनके अंग पूरी तरह विकसित नहीं हो सके। इस परिवार के पास 9 एकड़ जमीन थी। इसमें से 5 एकड़ बच्चों के इलाज में बिक चुकी है। रूपा बाई ने रोते हुए मीडिया को बताया कि उनके पति पंजाब सिंह लकड़ी के मिस्त्री थे। 5 साल पहले उनका निधन हो गया। वो जब तक जिंदा रहे..अपने बच्चों की फिक्र में दिनरात मेहनत करते रहे। रूपाबाई ने बताया कि उनके पति भी बीमार होकर मरे। उनके इलाज के लिए भी बाकी जमीन गिरवी रखनी पड़ी। उनके इलाज पर भी करीब 6 लाख रुपए का कर्ज चढ़ गया था।
पेंशन नहीं मिलने से खाने के लाले
रूपाबाई ने बताया कि उन्हें पंजाब सरकार की ओर से पेंशन मिलती थी। वो भी पिछले 5 महीने से बंद हो चुकी है। उसे चालू कराने के लिए वो दफ्तरों के चक्कर काट-काटके थक चुकी हैं। अब उन्हें पंजाब के मुख्यमंत्री से ही मदद की उम्मीद है।