सार

अकाली दल में सुखबीर बादल को लेकर कहीं ना कहीं असंतोष के सुर भी बुलंद होते रहते हैं। लेकिन क्योंकि प्रकाश सिंह बादल का इतना मान-सम्मान है कि पार्टी के सीनियर नेता भी उनकी बात काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर क्यों पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल के चुनाव लड़ने पर संशय है? 

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। बात 2007 के विधानसभा चुनाव की है। अकाली दल इतना मजबूत नजर नहीं आ रहा था। तब अकाली दल के सीनियर नेता प्रकाश सिंह बादल ने एक अपील की। यह अपील थी, मेरा आखिर चुनाव है। एक बार एक बार अकाली दल को बहुमत दिलवा दो। आगे चुनाव नहीं लडूंगा। बादल की यह इमोशनल अपील काम कर गई। अकाली दल को बहुमत मिला। प्रकाश सिंह बादल सीएम बने। पांच साल यहीं चर्चा चलती रही क्या प्रकाश सिंह बादल 2012 का चुनाव लडे़ंगे। क्योंकि बढ़ती उम्र की वजह से यह माना जाने लगा था कि वह राजनीति से अब दूर हो जाएंगे। लेकिन सारे कयासों को दरकिनार कर प्रकाश सिंह बादल ने 2012 का चुनाव भी लड़ा। 2017 में भी वह विधायक हैं। 

अब एक बार फिर से उनके चुनाव लड़ने को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। अकाली दल के सबसे वरिष्ठ नेता सबसे सम्मानित व्यक्ति पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल क्या इस बार लंबी से चुनाव लड़ेंगे। इस पर हर किसी की नजर टिकी हुई है। नजर टिके भी क्यों ना? क्योंकि अकाली दल की सारी रणनीति प्रकाश सिंह बादल पर निर्भर करती है। आज भी उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल पार्टी और मतदाताओं के बीच अपनी वह पकड़ नहीं बना पाए, जो पकड़ प्रकाश सिंह बादल की है। सुखबीर बादल ना सिर्फ मतदाताओं के बीच, बल्कि पार्टी के भीतर भी प्रकाश सिंह बादल से 19 ही साबित होते हैं। 

समझिए बादल परिवार में चुनाव की क्या रणनीति...
यही वजह है कि अकाली दल में सुखबीर बादल को लेकर कहीं ना कहीं असंतोष के सुर भी बुलंद होते रहते हैं। लेकिन क्योंकि प्रकाश सिंह बादल का इतना मान-सम्मान है कि पार्टी के सीनियर नेता भी उनकी बात काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर क्यों पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल के चुनाव लड़ने पर संशय है? इसका जवाब ये है- क्योंकि उनकी उम्र ज्यादा हो गई। वह ज्यादा प्रचार नहीं कर पाते। कोविड की वजह से भी वे सावधानी बरतते हैं। आखिरी चुनाव जैसी बात का इमोशनल कार्ड बार-बार नहीं चल सकता। सुखबीर बादल अब पार्टी की कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं। ऐसे में दूसरा सवाल उठता है कि क्या प्रकाश सिंह बादल के बिना अकाली दल मजबूत हो सकता है?

हर किसी की पसंद हैं प्रकाश सिंह बादल...
इस सवाल के जवाब में पंजाब की राजनीति को लंबे समय तक कवर करने वाले बलविंदर जम्मू कहते हैं कि शायद नहीं। बादल अकाली दल में ज्यादा अंसतोष नहीं होता। क्योंकि हर कोई सीनियर बादल का सम्मान करता है। अकाली दल इस बात पर तो राजी हो सकता है कि प्रकाश सिंह बादल सीएम का चेहरा बने, लेकिन सुखबीर पर वह राजी हो, इसमें संशय है। क्योंकि अकाली दल में ऐसे कई नेता है जिन्हें सुखबीर का नेतृत्व पसंद नहीं है। इन सभी परिस्थितियों में एक बार फिर नजर प्रकाश सिंह बादल पर टिकी हुई है। 

सुखबीर क्यों सर्वमान्य नहीं हैं...
इतना बड़ा संघर्ष नहीं किया। पार्टी के अंदर भी उन्हें वह दर्जा नहीं मिलता जो प्रकाश सिंह बादल को मिलता है। पार्टी को कॉरपोरेट कल्चर दे दिया। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। सभी को साध नहीं पाते। कई तरह के विवादों में नाम रहा है। विपक्ष लगातार बेअदबी कांड, नशा तस्करी के आरोप लगाता रहा। सुखबीर इन आरोपों को सही तरह से झूठला नहीं पाए। 

और इसलिए चाहिए अकाली दल को प्रकाश सिंह बादल...

  • 1947 में बादल गांव के सरपंच बने। बाद में ब्लॉक समिति के चेयरमैन बने। 1957 में पहली बार शिरोमणि अकाली दल से चुनाव लड़े। 
  • 1969 में चुनाव जीत कर पंचायती राज मंत्री बने। 
  • 1972, 1980, 2002 में नेता विपक्ष बने। 1957 से लेकर 10 बार विधानसभा चुनाव जीते। 1992 में अकाली दल ने चुनाव का बहिष्कार किया था। इस वजह से वे विधानसभा में नहीं थे। 1997 से अभी तक लगातार लंबे समय से विधायक हैं। मोरारजी देसाई की सरकार में केंद्रीय कृषि और सिंचाई मंत्री भी रहे हैं। 
  • 1970 में पहली बार सीएम बने। भारत के सबसे युवा सीएम बने। 2007 से 2012 से 2017 तक सीएम रहे। 

हरियाणा तब का संयुक्त पंजाब के करनाल जेल में 1975 से 1977 तक रखा गया। इसके बाद 1980 में पंजाब व पंजाबियत के नाम पर चलाए गए धर्मयुद्ध मोर्चा में इन्हें जेल में डाल दिया गया। अपनी जिंदगी के 17 साल जेल में बिताए। नेल्सन मंडेला के बाद जेल के इतिहास में सबसे ज्यादा समय रहने वाले  राजनैतिक कैदी प्रकाश सिंह बादल है। ग्राउंड कडर और पंथ वोटर्स पर मजबूत पकड़ है। रोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर जबरदस्त नियंत्रण। जो सिख वोटर्स को उनके पक्ष में करता है। पार्टी में सम्मानित है, सबसे बड़ा चेहरा है।

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