सार
राजस्थान की ये बेटी विधवा मां के जब्जे को देख खुद भी मोटिवेट हुई और कुश्ती के खेल में खुद को तराशा। इसके बाद 5 साल में ही 15 से ज्यादा मैडल जीत लाई। गांव में गोल्ड मेडलिस्ट नाम से फेमस बलकेश का सपना है कि वह दिल्ली पुलिस में करे नौकरी।
झुंझुनूं (Jhunjhunu). राजस्थान की यह मोटिवेशनल स्टोरी फिल्मी कहानी नहीं बल्कि हकीकत है। यहां के गरीब परिवार में अकेले कमाने वाले पुरुष की मौत हो गई। परिवार में विधवा के साथ उसके 5 बच्चों के सामने रोटी का भी संकट खड़ा हो गया। लेकिन इसके बाद भी विधवा ने हार नहीं मानी और अपने बच्चों के भरण पोषण और पढ़ाई के लिए बकरी चराना भी शुरू कर दिया। मां के इस जज्बे को देखकर एक बेटी भी मोटिवेट हुई और 5 साल में करीब 15 से ज्यादा मैडल जीत लिए। यह कोई फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं बल्कि जमीनी हकीकत है।
पति की मौत के बाद भी नहीं खोई हिम्मत, बेटी भी मां के साहस से हुई मोटिवेट
दरअसल साल 2011 में झुंझुनू के गांव खुडाना की रहने वाली मणि देवी के पति की मौत हो गई। पति की मौत के बाद पीछे 5 बच्चों की पढ़ाई और पेट पालने के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया। मणि देवी ने पशुओं को चराकर और खेतों में काम कर बच्चों को पढ़ाई करवाई। इसी बीच 15 साल की बेटी बलकेश का कुश्ती के लिए शौक बढ़ा। मां मणि ने भी उसे मना नहीं किया। और लगातार उसे मोटिवेट करती रही। नतीजा यह हुआ कि अब तक बलकेश नेशनल और स्टेट लेवल पर 6 गोल्ड, 7 सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी है।
दिल्ली पुलिस में नौकरी करना है सपना
गांव में गोल्ड मेडलिस्ट के नाम से जाने जानी वाली बलकेश पांच भाई बहनों में चौथे नंबर की है। जो वर्तमान में सीकर में रहकर दिल्ली पुलिस में भर्ती की तैयारी कर रही है। बलकेश का एक छोटा भाई भी है जो फिलहाल सेना में नौकरी कर रहा है। बिल्किस का कहना है कि जब वह केवल 10 साल की थी तब से ही उसे कुश्ती का शौक लग गया था। पिता की मौत के बाद साल 2012 में उसने गांव के पास ही एक व्यायाम शाला से कुश्ती सीखना शुरू कर दिया। 10 साल में उसने करीब 15 से ज्यादा यह पदक जीते हैं। आपको बता दें कि बलकेश ने यह सभी मेडल 5 साल में जीते हैं।