सार

राजस्थान के सीकर जिले से टैलेंट की अनोखी कहानी सामने आई है। जहां एक अनपढ़ महिला किसान भगवती देवी बिना पढ़ लिखे वैज्ञानिक बन गई है। क्योंकि महिला ने फसल को दीमक से बचाने का ऐसा तरीका इजाद किया है जो पढ़े-लिखे भी नहीं कर पाए। महिला राज्य सरकार के 'खेत वैज्ञानिक' व  'कृषि प्रेरणा' सहित वह कई विश्वविद्यालयों से सम्मान प्राप्त कर चुकी है।

सीकर. ज्ञान अध्ययन ही नहीं अनुभव से भी हासिल किया जा सकता है। जो अनुसंधान तक पहुंचकर आमजन के लिए भी उपयोगी हो सकता है। ये साबित कर दिखाया है सीकर जिले की दांतारामगढ़ की महिला किसान भगवती देवी ने। जो महज साक्षर होने पर भी फसल को दीमक से बचाने का ऐसा तरीका इजाद कर चुकी है कि राज्य सरकार के 'खेत वैज्ञानिक' व  'कृषि प्रेरणा' सहित वह  कई विश्वविद्यालयों से सम्मान प्राप्त कर चुकी है।

यूं किया अनुसंधान
बकौल भगवती देवी खेत में वह दीमक से काफी परेशान रहती थी। चूल्हे के लिए सूखी लकड़ी लाते समय उन्होंने एक दिन ये अनुभव किया कि दीमक   सफेदे की लकड़ी से ज्यादा चिपटती है। इस पर  उन्होंने एक तरकीब निकालते हुए फसलों के बीच बीच  में सफेदे की लकड़ी लगाना शुरू कर दिया। जिसके बाद सारी दीमक फसलों को छोड़ सफेदे पर चिपकना शुरू हो गई। इससे फसलें सुरक्षित हो गई। कृषि वैज्ञानिक पति सुंडाराम वर्मा ने जब इस सफल प्रयोग की जानकारी फतेहपुर कृषि अनुसंधान केंद को दी तो  वहां भी इस पर तीन साल तक प्रयोग हुआ। जो वहां भी सफल साबित हुआ। इसके बाद तो किसानों को इसका प्रशिक्षण दिया जाने लगा। 

सौ वर्ग मीटर में एक लकड़ी बचा देती है फसल
बकौल भगवती देवी सफेदे की दो फीट लंबी व ढाई इंच मोटी लकड़ी सौ वर्ग मीटर खेत को दीमक से बचा सकती है। जिसका खर्च महज पांच से दस रुपए होता है। यानी एक हेक्टेयर जमीन की फसल को एक हजार रुपए के खर्च मे दीमक से बचाया जा सकता है। 

सरकार ने दिया खेत वैज्ञानिक सम्मान
भगवती देवी के इस अहम अनुसंधान पर उन्हें पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार राज्य सरकार के खेत वैज्ञानिक सम्मान से नवाज चुके हैं। महिन्द्रा एंड महिन्द्रा का कृषि पे्ररणा अवार्ड हासिल करने के अलावा  भगवती देवी मौलाना आजाद विवि जोधपुर व राजस्थान पशु विज्ञान विवि में भी सम्मानित हो चुकी है।