सार
आज पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। जिसका मकसद लैंगिक समानता और एक बेहतर समाज बनाने के लिए मिलकर काम करना है।
लाइफस्टाइल डेस्क: लैंगिक समानता यानि की लड़की- लड़के में कोई भेद ना हो, इस संदेश के साथ 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) मनाया जाता है। लेकिन आज भी हमारे समाज में लड़कियों को लड़कों से कम समझा जाता है। जिसकी शुरुआत कई बार हमारे घर से ही होती है। बच्चियों को पालने में माता-पिता कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं, जिससे उनमें यह भेदभाव नजर आने लगता है। ऐसे में आज हम आपको बताते हैं ऐसी पांच चीजें जो बेटियों के पालन पोषण के दौरान माता-पिता को नहीं करनी चाहिए...
बेटी होने के बाद बेटा करने की जिद
आज भी हमारे समाज में यह कुरीति है कि अगर किसी औरत को पहले बेटी पैदा हुई हो, तो उसके बाद बेटा पैदा करने का प्रेशर दिया जाता है और पति-पत्नी भी अक्सर बेटे के लिए प्लान करते रहते हैं। ऐसे में आपकी बेटी के ऊपर गलत असर पड़ सकता है, इसलिए कोशिश करें कि बेटी के सामने बेटा-बेटा करने की जिद ना करें। दूसरा बच्चा होना गलत बात नहीं है, लेकिन एक स्पेसिफिक जेंडर को लेकर हमेशा उसे अपनी पसंद बताना बेटियों पर नेगेटिव इफेक्ट डाल सकता है।
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बेटियों को केवल किचन के काम से खाना
कई घरों में ऐसा होता है कि बेटियों को शुरू से ही घर के कामों में लगा दिया जाता है। वैसे खाना बनाना या उसे सीखना कोई गलत चीज नहीं है, लेकिन सिर्फ बेटियों को ही खाने के काम सिखाना यह गलत है। आप अपने बेटों को भी खाना बनाना सिखाएं। आज के समय में लड़के और लड़की दोनों वर्किंग होते हैं और काम के साथ उन्हें घर की चीजें भी संभालने होती है, इसलिए बच्चों में फर्क ना करें उन्हें शुरुआत से ही घर के काम और बाहर के काम दोनों में एक एक्सपर्ट करें।
बेटी के सामने किसी तरह का फर्क नहीं करें
कई बार ऐसा होता है कि घर में लड़का और लड़की दोनों बच्चे होते हैं और जाहिर सी बात है जब घर में दो बच्चे हैं तो उनमें लड़ाई जरूर होती है। ऐसे में हर बार लड़के का पक्ष लेने से लड़कियों के मन में भेदभाव की भावना आ जाती है। ऐसे में पता लगाए कि किसकी गलती है और उसे समझाएं ना कि अपनी बेटी को यह कहें कि- भाई है जाने दो।
लड़कियों को अपने खेलकूद तय करने दें
अक्सर देखा जाता है कि मां-बाप अपनी लड़कियों के खेलने के लिए केवल गुड़िया, किचन सेट और मेकअप की चीजें ही लेकर आते हैं। ऐसे में बचपन से ही उनके दिमाग में यह चीजें आ जाती है कि उन्हें इन्हीं चीजों के साथ खेलना है, जबकि आप अपने बच्चों को अपने हिसाब से खेलने की आजादी दें, फिर चाहे उसे क्रिकेट, फुटबॉल और कबड्डी खेलने का शौक ही क्यों ना हो। आप उसे खेलने से बिल्कुल नहीं रोके।
आवाज उठाना गलत नहीं
अक्सर हमने देखा है कि मां-बाप अपनी बेटियों को यह सिखाते हैं कि लड़कियों को हमेशा कम आवाज में धीरे बात करनी चाहिए, जबकि आपको लड़के और लड़कियों में यह फर्क नहीं करना चाहिए। आप अपने बच्चे को समझा दें कि सही होने पर आवाज उठाना गलत नहीं होता है और ना ही कभी उसकी बात को नजरअंदाज करें। इसकी शुरुआत आपको खुद घर से करनी चाहिए, ताकि आगे जाकर उसे समाज में बराबरी का हिस्सा समझा जाएं।
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