सार

बच्चों को एक खास उम्र के बाद अपने फैसले खुद लेने चाहिए। जब बच्चे खुद फैसले लेने लगते हैं तो उनमें अपना भला-बुरा सोचने की क्षमता बढ़ जाती है। इस काम में उनके माता-पिता मददगार हो सकते हैं। 
 

रिलेशनशिप डेस्क। बच्चों को एक खास उम्र के बाद अपने फैसले खुद लेने चाहिए। जब बच्चे खुद फैसले लेने लगते हैं तो उनमें अपना भला-बुरा सोचने की क्षमता बढ़ जाती है। इस काम में उनके माता-पिता मददगार हो सकते हैं। अक्सर मां-पिता अपने बच्चों को लेकर काफी प्रोटेक्टिव होते हैं। बच्चे बड़े भी हो जाते हैं और खुद कोई जिम्मेदारी संभाल सकते हैं, लेकिन माता-पिता सोचते हैं कि वे तो बच्चे हैं और बिना बताए कोई काम नहीं कर सकते। इससे बच्चों में खुद कोई फैसला लेने की क्षमता कम होने लगती है और वे दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। आगे चल कर इससे उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए माता-पिता को बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कोशिश करनी चाहिए। जानें कैसे बनाएं अपने बच्चों को मजबूत।

1. उनकी इच्छा को दें महत्व
घर में कोई काम होने वाला हो या आयोजन हो तो उसे लेकर बच्चे क्या सोचते हैं या उनकी कोई खास इच्छा है, यह जानने की कोशिश करें। किसी भी काम को लेकर उनकी राय पूछें और उनकी इच्छा को महत्व दें। उनसे बातचीत करें। इससे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें यह अच्छा भी लगता है। 

2. दोस्ताना व्यवहार रखें
बच्चों के साथ हमेशा दोस्ताना व्यवहार रखें। इससे वे आपके सामने खुलेंगे। बहुत अभिभावक अपने बच्चों के साथ कठोरता से पेश आते हैं। उन्हें लगता है कि इससे बच्चे अनुशासन में रहेंगे, लेकिन ऐसी बात नहीं है। बच्चों के साथ जब समानता के धरातल पर पेश आएंगे तो वे कई खास चीजें बता सकते हैं। बच्चे के अनुभव भी हमारे काम आ सकते हैं। कई बार उनकी समझ ज्यादा कारगर साबित होती है।

3. धैर्य रखें 
बच्चों के साथ व्यवहार में धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है। बच्चे अक्सर गलती करते हैं। गलती तो बड़े भी करते हैं, लेकिन बच्चों की गलतियों पर लोग आग-बबूला हो जाते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर बच्चे गलती करते हैं तो इसे स्वाभाविक रूप में लें और डांट-फटकार कभी नहीं करें।

4. हार को सिखाएं स्वीकार करना
बहुत से अभिभावक अपने बच्चों में किसी तरह की कमी नहीं देखना चाहते हैं। अगर बच्चा परीक्षा में ज्यादा मार्क्स नहीं ला पाता तो बहुत दुखी हो जाते हैं और किस्मत को कोसने लगते हैं। इससे बच्चों का मनोबल कमजोर हो जाता है। जिंदगी में ना जाने कितनी हारों का सामना करना पड़ता है। इसलिए खुद भी सकारात्मक रवैया अपनाएं और बच्चों को भी हार को स्वीकार करना सिखाएं।