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Mahashivratri 2024: महीने में 2 दिन इस मंदिर में जरूर आते हैं शिव-पार्वती! इसे कहते हैं ‘दक्षिण का कैलाश’
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महाशिवरात्रि 8 मार्च को
Kab Hai Mahashivratri 2024: धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। इसी तिथि पर भगवान शिव पहली बार लिंग रूप यानी निराकार रूप में प्रकट हुए थे। इस बार ये पर्व 8 मार्च, शुक्रवार को मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि पर सभी शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इन मंदिरों में ज्योतिर्लिंगों का विशेष स्थान है। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरा है मल्लिकार्जुन। महाशिवरात्रि के मौके पर जानें इस ज्योतिर्लिंग की कथा, महत्व व अन्य रोचक बातें…
कहां है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग? (Kaha Hai Mallikarjuna Jyotirlinga)
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। पुराणों के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव तथा पार्वती दोनों का संयुक्त रूप है, जिसमें मल्लिका का अर्थ देवी पार्वती है और अर्जुन यानी महादेव। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
कैसे हुई मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना? (Story Of Mallikarjuna Jyotirlinga)
शिवपुराण में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा मिलती है। उसके अनुसार, एक बार महादेव और देवी पार्वती के मन में अपने पुत्रों कार्तिकेय व श्रीगणेश का विवाह करने का विचार आया। जब ये बात कार्तिकेय और गणेशजी को पता चली तो वे दोनों ही पहले विवाह करने की जिद करने लगे। ये देख महादेव ने शर्त रखी कि ‘तुम दोनों में से जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटेगा, उसी का विवाह पहले होगा।’
शर्त की बात सुनते ही कार्तिकेय मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए, वहीं श्रीगणेश ने शिव-पार्वती की परिक्रमा कर यह साबित कर दिया कि माता-पिता में ही संपूर्ण सृष्टि विराजमान है। शर्त जीतने से उनका विवाह पहले हो गया। इस बात पर कार्तिकेय क्रोधित होकर क्रौंच पर्वत पर जाकर रहने लगे। शिव-पार्वती के अनुरोध पर भी कार्तिकेय नहीं लौटे।
कार्तिकेय के रूठने से देवी पार्वती को बहुत दुख हुआ। तब अपनी प्रिय पत्नी को सुख देने के उद्देश्य से भगवान शिव अपने साथ देवी पार्वती को क्रौंच पर्वत पर जाकर मिल्लकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। मान्यता है कि आज भी हर पूर्णिमा-अमावस्या तिथि पर शिव-पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने आते हैं। इस ज्योतिर्लिंग का महत्व अनेक ग्रंथों में लिखा है।
इसे कहते हैं दक्षिण का कैलाश
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं। कहते हैं कि आदि शंकराचार्य जब यहां आए तो इस स्थान की सुंदरता और ज्योतिर्लिंग का महत्व देखकर उन्होंने शिवानंद लहरी की रचना की। शिवानंद लहरी एक शिव-स्तोत्र है, इसमें विभिन्न छन्दों के सौ श्लोक हैं। ये स्त्रोत मल्लिकार्जुन और भ्रमराम्बिका की स्तुति से आरम्भ होता है जो श्रीशैलम के आराध्य देवता हैं। मल्लिकार्जुन मंदिर के ठीक पीछे देवी पार्वती का मंदिर भी है। जहां पर पार्वती मल्लिका देवी के नाम से स्थित है।
पाताल गंगा में स्नान का महत्व
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के समीप ही कृष्णा नदी बहती है, जिसे पाताल गंगा भी कहा जाता है। यहां जाने के लिए मंदिर के कुछ दूरी पर लगभग 850 सीढ़ियां उतरनी पड़ती है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले यहां स्नान करने का विशेष महत्व है। शिवपुराण के अनुसार, पुत्र स्नेह के कारण शिव-पार्वती प्रत्येक अमावस्या और पूर्णिमा तिथि पर श्रीशैल पर्वत पर जरूर आते हैं।
कैसे पहुंचें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग?
- श्रीसैलम से सबसे नजदीक एयरपोर्ट 137 किलोमीटर दूर हैदराबाद में है। यहां से आप बस या फिर टैक्सी के जरिए मल्लिकार्जुन आसानी से पहुंच सकते हैं।
- सड़क मार्ग से भी श्रीसैलम पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। विजयवाड़ा, तिरुपति, अनंतपुर, हैदराबाद और महबूबनगर से यहां के लिए बस व टैक्सी आसानी से मिल जाती है।
- यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन मर्कापुर रोड है जो श्रीसैलम से 62 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां उतरकर मल्लिकार्जुन आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।