सार
MahaKumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ शुरू हो चुका है जो 26 फरवरी तक रहेगा। इस दौरान 14 अखाड़ों के लाखों साधु-संत पवित्र संगम में डुबकी लगाएंगे। इन अखाड़ों का इतिहास बहुत ही रोचक है।
Prayagraj MahaKumbh 2025 History of 13 Akharas: कुंभ मेले की बात हो और अखाड़ों का जिक्र न आए, ऐसा नहीं हो सकता है। इन अखाड़ों के बिना कुंभ मेले की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इन अखाड़ों का साधु-संतों से ही कुंभ की रौनक बढ़ती है। इन अखाड़ों में सामान्य के अलावा नागा साधु भी होते हैं जिनकी तपस्या देखकर लोग हैरान हो जाते हैं। वर्तमान में मान्यता प्राप्त इन अखाड़ों की संख्या 13 है, इनमें से 7 शैवों के, 3 वैष्णवों के और 3 सिक्खों के हैं। आगे जानिए इन 13 अखाड़ों की डिटेल…
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1. निरंजनी अखाड़ा (शैव)
ये शैवों में सबसे बड़ा अखाड़ा है। इस अखाड़े की स्थापना सन 904 में गुजरात के माण्डवी में हुई थी, ऐसी मान्यता है। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय हैं, जो देवताओं के सेनापति हैं। निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वरों की संख्या 33 और नागा संन्यासियों की संख्या 10,000 से भी ज्यादा बता ई जाती है। इस अखाड़े में सबसे ज्यादा पढ़े-लिख साधु-संत हैं जिन्होंने बड़े-बड़े पदों को छोड़कर आध्यात्म का मार्ग चुना है। वर्तमान में इसके आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशनंद गिरि महाराज हैं।
2. महानिर्वाणी अखाड़ा (शैव)
ये भी शैव अखाड़ों में प्रमुख स्थान रखता है। इसका केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है और इसकी अन्य शाखाएं ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबक, कुरुक्षेत्र और उज्जैन में है। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भी इस अखाड़े के साधु-संत मंहत बनते हैं। इसकी स्थापना आठ संतों ने मिलकर की थी। कपिल भगवान इनके इष्टदेव हैं। इसकी शुरुआत बिहार के हज़ारीबाग ज़िले के गडकुंडा के सिद्धेश्वर महादेव मंदिर से मानी जाती है। महानिर्वाणी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी हरि हरानंद हैं।
3. आवाहन अखाड़ा (शैव)
इस अखाड़े की स्थापना सन् 547 में हुई मानी जाती है। इस अखाड़े का मुख्य केंद्र काशी के आस-पास है। आवाहन अखाड़े की स्थापना धर्म की रक्षा के लिए की गई थी। इस अखाड़े के संत कुंभ-महाकुंभ में राजसी स्नान करते हैं। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान गणेश और दत्तात्रेय हैं। यह जूना अखाड़े का उप-अखाड़ा है। हरिद्वार में भी इनकी शाखा है। वर्तमान में आवाहन अखाड़े में 15 हजार संत हैं। इसमें 12 हजार नागा हैं। वर्तमान में आवाहन अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अरुण गिरि महाराज हैं। उन्हें पर्यावरण बाबा के नाम से भी जाना जाता है।
4. जूना अखाड़ा (शैव)
जूना अखाड़ा भी शैवों में प्रमुख स्थान रखता है। इसका नाम पहले भैरव अखाड़ा था, जिसे बाद में जूना कर दिया गया। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय हैं। इसकी स्थापना उत्तराखंड के कर्णप्रयाग 1145 में हुई थी। इस अखाड़े के साधु-संत शस्त्र चलाने में माहिर होते हैं। जूना अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी के हनुमान घाट पर है। इस अखाड़े में अवधूतनियां (महिला साधु) भी शामिल हैं। मुगल काल में इस अखाड़े के साधु-संतों में कईं लड़ाइयां लड़ीं। वर्तमान में इस अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरीजी महाराज हैं।
5. अटल अखाड़ा (शैव)
अटल अखाड़े का इतिहास बहुत पुराना है. इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। इसका केंद्र काशी में है। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान श्रीगणेश हैं। अटल अखाड़े की भूमिका महाकुंभ और कुंभ मेले में अहम होती है। अटल का अर्थ है जो कभी भी अपने मार्ग से हटता नहीं है और धर्म कार्यों के लिए आगे रहता है। यह अखाड़ा महर्षि अत्रि के नाम पर रखा गया है, जो एक प्रमुख वैदिक ऋषि थे। श्री शंभू पंचदशनाम अटल अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती हैं।
6. आनंद अखाड़ा (शैव)
ये भी शैवों का अखाड़ा है। इसकी स्थापना विक्रम संवत् 856 में महाराष्ट्र के बरार में हुई थी। इस अखाड़े के साधु-संत इष्टदेव के रूप में सूर्य को मानते हैं। इस अखाड़े का साधु-संत भी काशी के आस-पास के इलाकों में रहते हैं। मुगल काल में हुई लड़ाइयों में आनंद अखाड़े के कईं साधु-संत ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस अखाड़े में संन्यास देने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है। वर्तमान में आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि महाराज हैं।
7. अग्नि अखाड़ा (शैव)
अग्नि अखाड़ काफी प्राचीन है। इसका केंद्र गिरनार की पहाड़ी पर है। इस अखाड़े के साधु नर्मदा नदी के आस-पास निवास करते हैं। इनकी आराध्या मां गायत्री हैं। इस अखाड़े के साधु-संतों को वेद-पुराणों का ज्ञान के साथ ही अविवाहित होना भी जरुरी है। अग्नि अखाड़ा में चतुष्मान ब्रह्मचारी बनाए जाते हैं, जिन्हें आनंद, चेतन, प्रकाश और स्वरूप के नाम से बांटा गया है। देशभर में अग्नि अखाड़े के लगभग 4 हजार ब्रह्मचारी हैं। इस अखाड़े के साधु-संत पंचमुखी या 11 मुखी रुद्राक्ष पहनाते हैं। वर्तमान में अग्नि अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ब्रह्मर्षि रामकृष्णानंद जी महाराज हैं।
8. दिगंबर अखाड़ा (वैष्णव)
यह वैष्णवों का सबसे पुराना अखाड़ा है। इसकी स्थापना अयोध्या में हुई थी, लेकिन इसका मुख्यालय गुजरात के साबरकांठा ज़िले में है। इस अखाड़े के साधु-संत हमेशा सफेद वस्त्र ही पहनते हैं और उर्ध्वपुंड्र तिलक लगाते हैं। ये भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। इसके ध्वज पर हनुमान जी अंकित होते हैं। देशभर में इनके लगभग 450 से ज़्यादा मठ और मंदिर हैं। खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा दिगंबर अखाड़े के ही अंग हैं। वैष्णव अखाड़ों में सबसे बड़ा पद श्रीमंहत होता है। वर्तमान में दिगंबर अखाड़े के श्रीमंहत वैष्णव दास हैं।
9. निर्वाणी अखाड़ा (वैष्णव)
यह वैष्णवों का दूसरा अखाड़ा है। इसकी स्थापना संत अभयरामदासजी ने की थी। इस अखाड़े के साधुओं के चार विभाग हैं- हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया व सागरिया। अयोध्या के हनुमानगढ़ी पर इसकी अखाड़े का अधिकार है। पहले इस अखाड़े का नाम स्वामी बाला आनंद था, जिसे बाद में बदला गया। निर्वाणी अखाड़े का मुख्य स्थान वृंदावन और चित्रकूट में भी है। इस अखाड़े में श्रीमहंत का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से हर 12 साल में होता है। वर्तमान में निर्वाणी अखाड़े के श्रीमहंत धर्मदासजी महाराज हैं।
10. निर्मोही अखाड़ा (वैष्णव)
ये वैष्णवों का तीसरा अखाड़ा है। निर्मोही शब्द का अर्थ है मोह रहित। इस अखाड़े की स्थापना 4 फ़रवरी, 1720 को मानी जाती है। इसका मुख्य स्थान वाराणसी में है। यह अखाड़ा भगवान श्रीराम की पूजा करता है। इस अखाड़े की नींव वैष्णव संत और कवि रामानंद ने रखी थी। इस अखाड़े के साधु-संतों शास्त्र विद्या के साथ-साथ शस्त्र चलाने में भी निपुण होते हैं। निर्मोही अखाड़े के अनेक मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में हैं। निर्मोही अखाड़े के श्रीमहंत राजेंद्र दास महाराज हैं।
11. निर्मल अखाड़ा (सिक्ख)
ये सिक्खों का अखाड़ा है। इसकी स्थापना साल 1862 में बाबा महताब सिंह जी ने की थी। इसका मुख्यालय हरिद्वार के कनखल में है। इस अखाड़े में रोज सुबह 4 बजे से गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है। इस अखाड़े के साधु-संत किसी भी तरह का नशा नहीं करते। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। इस अखाड़े के साधु-संत सफेद कपड़े पहनते हैं। इस अखाड़े के ध्वज का रंग पीला होता है और ये रुद्राक्ष की माला हाथ में रखते हैं। इस अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञानसिंह जी हैं।
12. बड़ा उदासीन अखाड़ा (सिक्ख)
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का इतिहास काफी पुराना है। इसे नानाशाही अखाड़ा भी कहते हैं। इसकी स्थापना 1825 में हरिद्वार के कनखल में हुई थी। इस अखाड़े का प्रमुख आश्रम प्रयागराज में है। इस अखाड़े में नागा साधु नहीं होते। इस अखाड़े के साधु-संत गुरू नानक देव के पुत्र श्री चंददेव को अधिक मानते हैं। इस अखाड़े की एक और शाखा श्री पंचायती छोटा उदासीन अखाड़ा भी है। श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के मुखिया राम नौमी दास महाराज हैं।
13. नया उदासीन अखाड़ा (सिक्ख)
उदासीन साधुओं में मतभेद होने के कारण महात्मा सूरदासजी ने एक अलग संगठन बनाया, जिसका नाम उदासीन पंचायती नया अखाड़ा रखा गया। इस अखाड़े का पंजीयन 6 जून, 1913 को हुआ था। इसका प्रमुख केंद्र हरिद्वार के कनखल में बनाया गया। इस अखाड़े में केवल संगत साहब की परंपरा के ही साधु शामिल हैं।
14. किन्नर अखाड़ा
ये अखाड़ा 2015 से अस्तित्व में आया है। इसकी स्थापना किन्नर एक्टिविस्ट डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने की है। जब किन्नरों ने अपना अलग अखाड़ा बनाया तो अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को पता चली तो उन्होंने इसका विरोध किया। 2016 में उज्जैन के कुंभ में किन्नर अखाड़े ने अपना अलग कैंप लगाया। 2019 में किन्नर अखाडे़ की संस्थापक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की मुलाकात जूना अखाड़े के संरक्षक हरि गिरि महाराज से हुई। तब से किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़ा के अंतर्गत है।
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