सार

Skandmata Puja: शारदीय नवरात्रि की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 30 सितंबर, शुक्रवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये देवी दुर्गा का पांचवां स्वरूप है। इनकी पूजा से भक्तों को सुख-शांति मिलती है। 
 

उज्जैन. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्कंदमाता (Skandmata Puja) की पूजा का विधान है। स्कंद भगवान कार्तिकेय का एक नाम है, जो देवताओं के सेनापति और शिवजी के पुत्र हैं। भगवान स्कंद की माता होने के कारण ही देवी के एक नाम स्कंदमाता प्रसिद्ध है। नवरात्रि की पंचमी तिथि पर इनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है। आगे जानिए स्कंदमाता की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती व कथा आदि…   

ऐसा है स्कंदमाता का स्वरूप
स्कंदमाता की एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती नजर आती हैं। देवी ने एक हाथ से गोद में बैठे अपने पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है। देवी के अन्य दो हाथों में कमल के फूल हैं। इनका आसन कमल है, इसलिए इनका एक नाम पद्मासना भी है। सिंह यानी शेर इनका वाहन है। 

30 सितंबर, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त (चौघड़िए के अनुसार)
सुबह 06 से 07.30 तक- चर
सुबह 07.30 से 09 तक- लाभ
सुबह 09 से 10.30 तक- अमृत
दोपहर 12 से 01.30 तक- शुभ
शाम 04:30  से 06 तक- चर  

इस विधि से करें देवी स्कंदमाता की पूजा (Skandmata Ki Puja Vidhi) 
- शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान आदि कर लें। इसके बाद साफ स्थान पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध कर लें। 
- देवी स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित कर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। माला पहनाएं। अबीर, गुलाल, सिंदूर, मेहंदी, हल्दी, चावल आदि चीजें चढ़ाएं। 
- देवी को प्रसाद के रूप में केले का भोग लगाएं। बाद में इसे भक्तों में बांट दें। अंत में देवी की आरती कर नीचे लिखा मंत्र बोलें-
या देवी सर्वभूतेषु स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

स्कंदमाता की आरती (Skandmata Ki Aarti)
नाम तुम्हारा आता, सब के मन की जानन हारी।
जग जननी सब की महतारी।।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं, हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।
कई नामों से तुझे पुकारा, मुझे एक है तेरा सहारा।।
कहीं पहाड़ों पर है डेरा, कई शहरो मैं तेरा बसेरा।
हर मंदिर में तेरे नजारे, गुण गाए तेरे भगत प्यारे।
भक्ति अपनी मुझे दिला दो, शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इंद्र आदि देवता मिल सारे, करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए, तुम ही खंडा हाथ उठाए
दास को सदा बचाने आई, चमन की आस पुराने आई।

ये है स्कंदमाता की कथा (Skandmata Katha)
तारकासुर नाम का एक पराक्रमी दैत्य था। उसे वरदान था कि उसकी मृत्यु सिर्फ भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही संभव है। तब शिव और देवी पार्वती के मिलन से एक पराक्रमी योद्धा का जन्म हुआ, जिसे कार्तिकेय कहा जाता है। कार्तिकेय को उनके पराक्रम के चलते देवताओं का का सेनापति बनाया गया। समय आने पर कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया। कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। इनकी माता होने के चलते ही देवी का एक नाम स्कंदमाता पड़ा।


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