सार
Shiv Chaturdashi November 2022: हिंदू धर्म में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई व्रत किए जाते हैं। शिव चतुर्दशी भी इनमें से एक है। ये व्रत प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इसे मासिक शिवरात्रि भी कहते हैं।
उज्जैन. इस बार 22 नवंबर, मंगलवार को अगहन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। इस दिन शिव चतुर्दशी का व्रत किया जाता है, जिसे मासिक शिवरात्रि भी कहते हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। मान्यता है कि इस दिन शिवजी के निमित्त व्रत-पूजा करने से हर तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है। इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए शिव चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त आदि…
क्यों किया जाता है शिव चतुर्दशी व्रत?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। कुछ विद्वानों का ये भी मानना है कि इस तिथि पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। इन दोनों ही कारणों से इस तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इसी तिथि को ध्यान में रखते हुए हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इसे शिव चतुर्दशी भी कहते हैं।
शिव चतुर्दशी के शुभ मुहूर्त (Shiv Chaturdashi Muhurat November 2022)
पंचांग के अनुसार, अगहन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 22 नवंबर, मंगलवार की सुबह 08:49 से 23 नवंबर, बुधवार की सुबह 06:53 तक रहेगी। चूंकि शिव चतुर्दशी में रात्रि पूजा का विधान है, इसलिए ये व्रत 22 नवंबर को ही किया जाएगा। इस दिन सौभाग्य, शोभन और ध्वज नाम के 3 शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
शिव चतुर्दशी की पूजा विधि (Shiv Chaturdashi Puja Vidhi)
- 22 नवंबर, मंगलवार की सुबह व्रत और पूजा का संकल्प लें। इसके बाद घर में कोई स्थान साफ करें और वहां शिवजी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- सबसे पहले शुद्ध घी का दीपक लगाएं और शिवजी को चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद फूल माला और बिल्व पत्र अर्पित करें। बाद में आंकड़े के फूल, धतूरा, भांग, इत्र आदि सभी चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें।
- पूजा करते समय ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। शिव को भोग लगाएं और आरती करें। रात्रि में जागरण करें शिवजी का ध्यान करें।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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