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रात को कुंवारे लड़कों को छड़ी मारती हैं लड़कियां, जिसको पड़ी उसकी हो जाती है शादी...विवाह पक्का
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जोधपुर. राजस्थान के नीले शहर यानि जोधपुर में ये परंपरा है जिसमें पूरे राजस्थान ही नहीं आसपास के भी शहरों से कुवांरे लड़के आते हैं, महिलाओं से लट्ठ खाते हैं । मान्यता है कि 564 साल पुरानी इस परंपरा के निर्वाह के बाद कुवांरों के लिए रिश्ते आना शुरू हो जाते हैं और उनकी शादी हो जाती है।
यह पूरा का पूरा मेला ही है और इसका आयोजन जोधपुर जिले के पुराने शहर में किया जाता है। इस मेले में बेंत यानि डंडा मारने की परपंरा है। दरअसल सुहागिन महिलाएं या वे युवतियां जिनकी शादी तय हो गई है... वे सोलह दिन की पूजा के बाद आखिरी रात को शहर के भीतरी इलाकों में अलग अलग स्वांग रचती हैं और बेंत मार खेलती हैं।
यह पूरा का पूरा मेला ही है और इसका आयोजन जोधपुर जिले के पुराने शहर में किया जाता है। इस मेले में बेंत यानि डंडा मारने की परपंरा है। दरअसल सुहागिन महिलाएं या वे युवतियां जिनकी शादी तय हो गई है... वे सोलह दिन की पूजा के बाद आखिरी रात को शहर के भीतरी इलाकों में अलग अलग स्वांग रचती हैं और बेंत मार खेलती हैं।
वैसे तो इस दौरन किसी भी पुरुष को अनुमति नहीं है कि वहा मौजूद रहे लेकिन बेंत मारने की परपंरा के लिए कुछ देर के लिए पुरुष वहां आते हैं जिनमें से अधिकतर कुवारें होते हैं। यह आयोजन रविवार यानि नौ अप्रेल को जोधपुर में सम्पन्न हुआ है। सोलह दिन गंवर माता की पूजा होती है और आखिर दिन घींगा कंवर की आरती हैं। दोनो लोक देवता हैं और इनका पूजन सालों से जारी है।
घींगा कंवर की पूजा इतनी जटिल होती है कि हर किसी के बस की बात नहीं। सोलह दिन तक अधिकतर महिलाएं उपवास रखती हैं। एक समय बेहद कम भोजन करती हैं और इन दिनों लगातार पूजा पाठ, हवन जारी रहते हैं।
मान्यता है कि जोधपुर की स्थापना जिस समय हुई थी, उसी समय से घींगा कंवर की पूजा इसी तरह से होती आ रही है। बड़ी बात ये है कि पुलिस और लोकल प्रशसन इस दौरान पूरी तरह से अलर्ट रहता है। उन्हें पहले ही हर तरह की सूचनाएं भेजी दी जाती है। आखिरी दिन महिलाएं अलग अलग स्वांग रचकर बाजार में निकलती हैं। इस दौरान उनके अलावा कोई पुरुष वहां नहीं होता। कोई नियम तोड़ता है तो उसक खिलाफ पुलिस एक्शन लिया जाता हैं
जोधपुर की यह परंपरा जोधपुर की स्थापना के समय राव जोधा ने शुरू की थी। स्थापना 1459 सन में की गई थी। बताया जा रहा है कि तभी से यह परपंरा जारी है। मान्यता है कि माता पार्वती ने जब सती रूप में खुद को अग्नि के हवाले किया थां उसके बाद जब उनका दूसरा जन्म हुआ था तो यह घींगा कवंर के रुप में हआ था।