हाईकोर्ट ने कहा कि दूसरी पत्नी का खर्च उठाने वाला पति पहली पत्नी के गुजारे भत्ते से इनकार नहीं कर सकता। कोर्ट ने पहली पत्नी को ₹20,000 मासिक भत्ता देने के आदेश को सही ठहराते हुए पति की याचिका खारिज कर दी।

Allahabad HC First Wife Maintenance (प्रयागराज). पारिवारिक मामले से जुड़े एक केस में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जो पति अपनी दूसरी पत्नी के सुख-दुख में साथ दे सकता है, वह पहली पत्नी के गुजारे भत्ते को नजरअंदाज नहीं कर सकता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पति की आर्थिक क्षमता, जिससे वह दूसरी पत्नी का भरण-पोषण कर सकता है, पहली पत्नी के गुजारा भत्ता के अधिकार को नकारने का आधार नहीं हो सकती। याचिकाकर्ता ने 6 जून को अलीगढ़ की फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को 20,000 रुपये महीने का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था। उसने इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

अलीगढ़ फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस हरवीर सिंह की सिंगल बेंच ने यह देखते हुए कि जब पत्नी अलग रह रही हो और आर्थिक रूप से अपने माता-पिता पर निर्भर हो, तो उसे आर्थिक मदद बहुत जरूरी है, पति मोहम्मद आसिफ की क्रिमिनल रिवीजन याचिका खारिज कर दी। आसिफ ने फैमिली कोर्ट के गुजारा भत्ता आदेश के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता मोहम्मद आसिफ ने 6 जून को अलीगढ़ फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी पहली पत्नी को 20,000 रुपये महीने का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था।

आसिफ ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि वह बेंगलुरु में एक हार्डवेयर की दुकान में काम करता है और उसकी सैलरी पहली पत्नी को हर महीने 20,000 रुपये देने के लिए काफी नहीं है। उसने अर्जी में कहा था कि यह रकम बहुत ज्यादा है और उसकी आर्थिक हैसियत से बाहर है। आसिफ के वकील ने यह भी तर्क दिया कि अलीगढ़ फैमिली कोर्ट ने आदेश देते समय 2018 के आय प्रमाण पत्र को नजरअंदाज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता की सालाना आय लगभग 83,000 रुपये बताई गई थी। इस पर कोर्ट ने जवाब दिया कि यह प्रमाण पत्र पांच साल के लिए ही वैध होता है।

20 हजार रुपए गुजारा भत्ता की मांग

याचिका में यह भी कहा गया था कि शुरुआत में फैमिली कोर्ट ने 2,000 रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता दिया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 20,000 रुपये कर दिया गया, जो न केवल बहुत ज्यादा है बल्कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों और सबूतों के भी खिलाफ है। वहीं, पत्नी के वकील ने कोर्ट को बताया कि आसिफ ने दूसरी शादी कर ली है। यह बात 6 जून के आदेश में भी सामने आई थी। महिला के वकील ने कोर्ट को यह भी जानकारी दी कि जिस हार्डवेयर की दुकान में आसिफ काम करता है, वह उसके पिता की है और दोनों टैक्स भरते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी हार्डवेयर की दुकान का रजिस्टर्ड जीएसटी नंबर भी है।

वकील ने तर्क दिया कि अगर याचिकाकर्ता अपनी दूसरी पत्नी का भरण-पोषण कर सकता है, तो वह पहली पत्नी को नजरअंदाज नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि पत्नी एक बेरोजगार महिला है, जिसकी आय का कोई जरिया नहीं है और वह आर्थिक रूप से अपने माता-पिता पर निर्भर है। इन सभी दलीलों को सुनने के बाद, कोर्ट ने शमीमा फारूकी बनाम शाहिद खान मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को सिर्फ ऐसे आधारों पर खत्म नहीं किया जा सकता। यह कहते हुए कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी।