कानपुर के कानूनगो आलोक दुबे ने 41 संपत्तियों में फर्जीवाड़ा कर करोड़ों का नुकसान किया। डीएम ने उसे डिमोट कर लेखपाल बनाया, मुकदमा दर्ज कराया और विभागीय जांच शुरू की। लेखपाल अरुणा द्विवेदी की भी भूमिका संदिग्ध पाई गई है।

पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बारे में कहते हैं कि उनका लिखित आदेश बेहद पक्का होता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक कानूनगो ने इसे अपने स्वार्थ के लिए गलत साबित कर दिया। आलोक दुबे नाम के इस कानूनगो ने भ्रष्टाचार और मिलीभगत की आदत से 41 संपत्तियों का फर्जी दस्तावेज तैयार कर करोड़ों का फायदा उठाया। मामले की गहन जांच के बाद डीएम ने उसे कानूनगो से डिमोट करके लेखपाल बना दिया है और भारी जुर्माने व मुकदमे के लिए विभागीय जांच के आदेश दिए हैं।

विवादित जमीनों की फर्जी दस्तावेजी कार्रवाई से हुआ करोड़ों का नुकसान

टीवी 9 द्वारा प्रकाशित खबर के अनुसार, जांच में पता चला कि सिंहपुर कठार और रामपुर भीमसेन की विवादित जमीनें न्यायालय में विचाराधीन होने के बावजूद, दुबे ने न तो सही विक्रेता का नाम खतौनी में दर्ज कराया और न वैध बिक्री की अनुमति ली। फिर भी उसने मार्च 2024 में फर्जीवरासत और बैनामा कराकर गाटा नंबर 207 को एक निजी कंपनी को बेच दिया। विभागीय जांच समिति ने पद के दुरुपयोग और धोखाधड़ी की पूरी रिपोर्ट डीएम को सौंप दी है।

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जांच और कार्रवाई में प्रशासन की अनदेखी मना हुई नहीं

डीएम जितेन्द्र प्रताप सिंह ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई करते हुए आरोपी को लेखपाल के पद पर डिमोट किया और उसकी सेवा अभिलेख में निंदा दर्ज कराई। मार्च 2025 में पुलिस ने भी कोतवाली में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की, जबकि अगस्त में आरोपी के खिलाफ आरोप सही पाए गए।

लेखपाल अरुणा द्विवेदी की भूमिका भी संदिग्ध, हो रही जांच

जांच के दौरान क्षेत्रीय लेखपाल अरुणा द्विवेदी की भी भूमिका संदिग्ध पाई गई है। उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया एसडीएम सदर के कार्यालय में चल रही है।

जनता का भरोसा बचाने के लिए सख्त प्रशासनिक कदम

यह मामला भ्रष्टाचार और पद का दुरुपयोग करते अधिकारीयों के खिलाफ प्रशासन की सख्त रुख का परिचायक है। डीएम की कार्रवाई से यह संदेश जाता है कि कोई भी दोषी बचने नहीं पाएगा और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए तत्परता बरती जाएगी। विभागीय जांच जारी है और जल्द ही पूरी सच्चाई सामने आएगी।

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