सार
एशियानेट न्यूज हिंदी क्राइम डायरी पर एक सीरीज चला रहा है। हम हर सप्ताह अलग-अलग क्राइम केसों की हैरतअंगेज कहानी लेकर आते हैं। आज पढ़िए दक्षिण भारत तक आतंक मचाने वाले बावरिया गैंग के सफाए की कहानी पूर्व IPS राजेश पांडेय की जुबानी।
राजेश कुमार पांडेय। आज हम कुख्यात बावरिया गैंग के खात्मे की कहानी लेकर आए हैं। गैंग का दक्षिण भारत तक आतंक था। साल 2003, 2004 और 2005 में तमिलनाडु के अलग-अलग जिलों में डकैती की ताबड़तोड़ 24 वारदातों से खलबली मच गई थी। स्थानीय पुलिस ने वारदातों का खुलासा कर आरोपियों को सलाखों की पीछे भेजा, पर घटनाएं थमी नहीं तो आला अफसर भी टेंशन में आ गए कि यदि असल अपराधी नहीं पकड़े गए हैं तो जेल में कौन हैं? इस सिलसिले में तमिलनाडु के तत्कालीन आईजी लॉ एंड ऑर्डर एसआर जांगीड़ ने एसटीएफ से मदद मांगी और एसटीएफ ने गैंग के कोड को डिकोड कर सफलता हासिल की। ब्लाकबस्टर मूवी 'थीरन' इसी आपरेशन बांवरिया पर बनी है।
तमिलनाडु में 24 वारदातोंं में 13 हत्याएं
- 24 वारदातों में 13 हत्याएं, 64 लोग गंभीर रूप से जख्मी।
- सालम जिले के जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मथु नारायन और उनके सिक्योरिटी गार्ड की घर में घुस कर हत्या। एक पिस्टल, गन, जेवर-नगदी की लूट।
- 9 जनवरी 2005 को तृवल्लूर विधायक सुदर्शनम की हत्या। बेटे-बहू को गंभीर रूप से जख्मी किया।
बांवरिया गैंग की मॉडस ऑपरेंडी
15 अगस्त के बाद बांवरिया गैंग के 10 से 12 लोग बड़े-बड़े ट्रक से अलग-अलग रास्तों से निकलते थे। सड़क के किनारे कोई बड़ा सा मकान देख कर, वहीं ट्रक रोक लेते थे और फूल-पत्ती या भगवान की फोटो बेचने के बहाने घर की रेकी करते थे। तमिलनाडु की सभी घटनाओं की मॉडस ऑपरेंडी एक सी थी। जैसे-6 से 10 अपराधी छत से या चहारदीवारी फांदते हुए दरवाजे की कुंडी तोड़ कर घर में दाखिल होते थे। फिर लाठी नहीं बल्कि किसी पेड़ से तोड़े हुए डंडे से सोते हुए व्यक्ति के सिर पर सीधे प्रहार करते थे। जिससे उसकी मौत हो जाती थी या वह निश्चेत हो जाता था और फिर गिरोह जेवर-नकदी लूट कर फरार हो जाता था। सभी वारदात में ज्यादातर हरे डंडों का प्रयोग किया गया था। वारदात को अंजाम देने के बाद बांवरिया घर के किसी कोने में मल त्याग करते थे और घर में रखे हुए खाने का सामान भी खा जाते थे। सभी वारदातों की टाइमिंग रात 12 बजे के बाद की थी।
एसटीएफ ऑफिस आए तमिलनाडु पुलिस के आईजी लॉ एंड ऑर्डर
आईपीएस एसआर जांगीड़ बांवरिया गिरोह के बारे में जानते थे। उन्होंने उनके ठिकानों के अलावा अन्य प्रदेशों में हुई घटनाओं में इंवॉल्व अपराधियों के बारे में पड़ताल कराई। पर सफलता नहीं मिली। फरवरी 2006 में जांगीड़ अपने टीम के साथ एसटीएफ़ ऑफिस आए और वारदातों के बारे में जानकारी दी। आईपीएस जांगीड़ का मकसद यह पता करना था कि 2004-05 में बांवरिया के किस गैंग का तमिलनाडु की तरफ मूवमेंट था। सर्विलांस की मदद से हरियाणा के पलवल में रहने वाले गैंग लीडर ओमा बांवरिया का पता चला। वह उस समय सबसे ज्यादा डकैतियां डालने वाला व्यक्ति निकला और उस समय अपनी पत्नी के साथ कन्नौज जेल में बंद है। उसके पिता रंजीत के खिलाफ भी कई केस दर्ज हैं। उनका नाम कुना उर्फ कुदनिया उर्फ कुंजू उर्फ उदय सिंह था। उनसे भी पूछताछ की कोशिश की गई।
कोड को डिकोड कर हुई मुठभेड़
26 फरवरी 2006 की रात को ओमा बांवरिया के छोटे भाई भूरा की लोकेशन यूपी में मिली। पर वह इतना शातिर था कि पकड़ में नहीं आता था। उनके कोड वर्ड थे। बहरहाल, पड़ताल में यह कंफर्म हो गया कि ओमा और भूरा बावरिया का गैंग ही तमिलनाडु तक अपने लोगों के साथ वारदातों को अंजाम देने गया था। दो मार्च 2006 को इनकी लोकेशन मेरठ सिटी में मिली। उसने अपने एक साथी से कोड वर्ड में बात की। एसटीएफ उनके कोड को डिकोड कर मौके पर पहुंच गई। मुठभेड़ में भूरा उसका एक साथी मारा गया। ओमा और भूरा 8 प्रदेशों कि अलग-अलग 48 घटनाओं में वांछित थे। यदि एमपी यूपी और अन्य प्रदेशों की भी घटनाएं जोड़ दी जाएं तो उस दौरान 100 से अधिक हत्याएं हुईं। जिसमें बांंवरिया गैंग शामिल रहा।
बावरिया गैंग पर तमिल भाषा में बनी फिल्म ‘थीरन’
एसटीएफ ने बांवरिया के एक अन्य गैंग के 6 लोगों को जौनपुर के पास बकसा में मुठभेड़ में मार गिराया। उसके बाद अन्य 12 लोगों को गिरफ्तार किया। उनमें 4 ऐसे थे जो सलाम और तृवल्लुर की हाईप्रोफाइल हत्याकांड में शामिल थे। उनके कब्जे से 4 ट्रक बरामद, गन और कुछ नकदी भी बरामद हुई। आगे चलकर इसी आपरेशन बावरिया गैंग पर तमिल भाषा में एक फिल्म थीरन बनी, जो बहुत सफल रही।
-किस्सागोई के लिए मशहूर राजेश कुमार पांडेय पूर्व आईपीएस हैं।
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