सार
जीवनसाथी को लंबे समय तक सेक्स करने की अनुमति नहीं देना मानसिक क्रूरता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी पति-पत्नी के विवाद से जुड़े एक मामले मे की है और इसी आधार पर वाराणसी के दंपत्ति को तलाक की अनुमति दे दी।
प्रयागराज। जीवनसाथी को लंबे समय तक सेक्स करने की अनुमति नहीं देना मानसिक क्रूरता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी पति-पत्नी के विवाद से जुड़े एक मामले में की है और इसी आधार पर वाराणसी के दंपत्ति को तलाक की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और राजेंद्र कुमार की बेंच ने वाराणसी के रविंद्र प्रताप यादव की अपील को स्वीकारते हुए यह आदेश दिया। मामले में पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई थी, जो खारिज हो गई थी। फैमिली कोर्ट के उसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
15 साल तक पति-पत्नी के बीच नहीं बने संबंध
अपील के मुताबिक, याची की शादी साल 1979 में हुई थी। पर शादी के कुछ समय बाद ही पत्नी का व्यवहार अपने पति के प्रति बदल गया। इतना ही नहीं पत्नी ने पति के साथ रहने से भी मना कर दिया। पति ने आग्रह किया पर पत्नी नहीं मानी और उससे दूर ही रही। पति पत्नी एक ही छत के नीचे रहते थे। पर दोनों के बीच आपसी संबंध नहीं बने। कुछ दिन बाद पत्नी मायके गई और फिर अपनी ससुराल आने से इंकार कर दिया। याची ने उसे कई बार घर आने के लिए कहा भी, पर वह तैयार नहीं हुई। गांव की पंचायत में भी यह मामला उठा। साल 1994 में पंचायत के फैसले बाद दोनों अलग हो गए, पति ने 22 हजार रुपये गुजारा भत्ता भी दिया।
तलाक लिए बिना पत्नी ने कर ली दूसरी शादी
कुछ समय बाद पत्नी ने पति से तलाक लिए बिना ही दूसरी शादी कर ली पर कोर्ट नहीं गई। इसी मामले में फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था। बहरहाल, हाईकोर्ट की डबल बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद कहा कि पति-पत्नी लंबे समय से अलग रहते थे। पत्नी का वैवाहिक बंधन के प्रति कोई सम्मान नहीं था। इसी से साफ होता है कि दोनों का विवाह टूट चुका है और कोर्ट ने अपील को स्वीकारते हुए तलाक का आदेश दिया।