Kanwar Yatra 2025 : कांवडियों में लगातार हो रहीं हिंसक घटनाओं को देखते हुए यूपी पुलिस ने कांवड़ यात्रा में लाठी, त्रिशूल, हॉकी स्टिक पर प्रतिबंध लगाया है। मुज़फ़्फ़रनगर, शामली समेत 6 ज़िलों में यह नियम लागू है।
Uttar Pradesh Kanwar Yatra : उत्तर प्रदेश पुलिस ने कांवड़ यात्रा को लेकर बड़ा फैसला किया है, अब से कांवडिये लाठी त्रिशूल और हॉकी स्टिक जैसे सामान साथ में नहीं ले जाएंगे। यानि यात्रा के दौरान इन सामान पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। बता दें कि लगातार हो रही मारपीट की घटनाओं और दुर्घटनाओं के कारण यूपी पुलिस ने सख्ती के साथ यह आदेश जारी किया है।
सहारनपुर रेंज के डीआईजी का कड़ा निर्देश
दरअसल, पिछले दिनों से जिस तरह कांवड़ यात्रा के दौरान विवाद के हालात बन रहे हैं उसे देखते हुए सहारनपुर रेंज के डीआईजी अभिषेक सिंह ने कांवड़ यात्रा को लेकर नियम बनाए हैं। जिनका सख्ती से पालन करवाने का अधिकारियों को साफ तौर पर आदेश भी जारी कर दिया है।
यूपी के इन जिलों में कांवडिए रहे सावधान
बता दें कि अभी फिलहाल उत्तर प्रदेश में यह प्रतिबंध मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर बुलंदशहर, हापुड़ और बागपत जैसे जिलों में लागू किया गया है। इन जिलों में पूर्ण रूप से कांवडिये लाठी त्रिशूल और हॉकी स्टिक साथ लेकर कांवड यात्रा नहीं कर पाएंगे।
क्यों यूपी पुलिस ने लिया गया फैसला?
पिछले कुछ दिनों यूपी में कांवड यात्रा के दौरान कुछ हिंसक घटनाएं देखी गई हैं। बताया जाता है कि कुछ कांवड़िए यात्रा को धार्मिक आस्था की बजाय शक्ति प्रदर्शन और हुड़दंग करते हैं। इतना ही नहीं इन हथियारों कि दम पर वह उत्पात भी मचाते हैं। जैसे हाइवे या सड़क पर डीजे पर डांस करना…इसी दौरान किसी से विवाद हो जाता है तो बात मारपीट तक पहुंच जाती है। हालांकि सभी कांवडिए ऐसे नहीं होते हैं।
क्या है कांवड यात्रा?
दरअसल, पौराणिक गाथाओं और धार्मिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के बाद उससे जो विष निकला था उसे भगवान शिव ने विष को पीया था, जिसकी वजह से उनका कंठ नीला हो गया था। उस दौरान रावण ने कांवड़ में जल भरकर महादेव के पास पहुंचे और उन पर जल अपर्ण किया। तभी से अब तक भगवान शिव को सावन के महीने में कांवड़ यात्रा निकालते हैं और शिव का अभिषेक करते हैं।
कावड़ यात्रा कहाँ से शुरू होती है?
आदि अऩादि भगवान शंकर की भक्ति की प्रतीक कांवड़ यात्रा हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, सुल्तानगंज जैसे पवित्र स्थानों से शुरू होती है। इन्हीं पवित्र नदियों का जल भरकर भक्त अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं और शिव का अभिषेक करते हैं।
