सार

उत्तर प्रदेश के संभल में रहने वाले एक परिवार को 47 साल बाद न्याय मिला है। 1978 में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान वह सब कुछ छोड़कर चले गए थे, जिसके बाद दूसरे समाज के कुछ लोगों ने इस पर कब्जा कर लिया था।

संभल जिला प्रशासन ने 1978 के दंगों के दौरान पलायन करने वाले तीन हिंदू परिवारों को उनकी जमीन का कब्जा वापस दिला दिया है। परिवार के पलायन करने के बाद दूसरे समुदाय के लोगों ने कब्जा कर लिया था। पीड़ित परिवारों ने प्रशासन से शिकायत कर न्याय की मांग की थी, जिसके बाद यह कार्रवाई की गई।

जमीन के दावेदारों में से एक, अमरीश कुमार ने बताया, "हम 1978 तक संभल के मोहल्ला जगत में रहते थे। दंगों के दौरान मेरे दादा तुलसी राम की हत्या कर दी गई थी। जान के डर से हमें अपनी संपत्ति छोड़नी पड़ी। जब हम वापस लौटने की कोशिश करते, तो हमें भगा दिया जाता था। हाल ही में हमने जिला प्रशासन को अपने स्वामित्व के दस्तावेजों के साथ शिकायत दी, जिसके बाद हमें हमारी जमीन वापस मिल गई।"

47 साल बाद मिला न्याय

1978 के दंगों में नरौली में रह रहे रघुनंदन के दादा बलराम की उसके सामने हत्या कर दी गई थी। इसके दो साल बाद उनके बेटे रामभरोसे का भी निधन हो गया। रामभरोसे के बेटे रघुनंदन वर्तमान में नरौली में पकौड़ी बेचने का काम करते हैं। रघुनंदन की शिकायत पर मंगलवार को एसडीएम ने मामले की जांच शुरू की।

जांच के दौरान जमीन पर कब्जा कर स्कूल चला रहे प्रबंधक से जमीन के दस्तावेज मांगे गए, लेकिन वे पूरी जमीन के कागजात नहीं दे पाए थे। राजस्व अभिलेखों की जांच में जमीन रामभरोसे के नाम पर दर्ज मिली। इसके बाद एसडीएम ने जमीन का सीमांकन कराया और रघुनंदन व तुलसीराम के परिवार वालों को उनकी जमीन का कब्जा वापस दिला दिया। इस दौरान स्कूल के दो भवनों पर "फायर स्टेशन संभल" के बोर्ड और हेल्पलाइन नंबर लिखे हुए पाए गए। जब इस पर सवाल किया गया, तो स्कूल प्रबंधक संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उन्होंने कहा कि एक बार दमकलकर्मी आग बुझाने के प्रति जागरूकता के लिए आए थे और तब यह लिखा गया था।

1978 में दादा की हुई थी हत्या

संभल के मोहल्ला चिमनदास सराय में माली समाज के लगभग 20 परिवार रहते थे। बलराम माली अपने पोते रामभरोसे, नन्हूं और तुलसीराम के साथ यहीं रहते थे। तीनों परिवारों के पास बेगम सराय में जमीन थी। लेकिन 1978 में जब संभल में दंगे शुरू हुए, तो हिंदुओं की हत्याएं होने लगीं। रघुनंदन ने बताया कि दंगों के दौरान उनके दादा बलराम की उनके बाग में ही हत्या कर दी गई। जैसे ही परिवार को इस घटना की खबर मिली, वे अपनी जान बचाने के लिए घर छोड़कर भाग गए। हालात इतने बुरे थे कि घर से सामान निकालने का भी समय नहीं मिला।

यह भी पढ़ें: ऋतिक रोशन ने कैसे की थी 'कहो ना प्यार है' की तैयारी, शेयर किए 27 साल पुराने नोट