वैज्ञानिकों ने चावल के दाने से भी छोटी, MOTE नामक वायरलेस ब्रेन चिप बनाई है। यह दिमाग के सिग्नल पकड़कर इन्फ्रारेड लाइट से भेजती है। चूहों पर सफल परीक्षण के बाद इसे न्यूरो टेक्नोलॉजी में एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है।

वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई खोज की है जो न्यूरो टेक्नोलॉजी का भविष्य बदल सकती है। शोधकर्ताओं ने एक ऐसी ब्रेन इम्प्लांट चिप बनाई है जो चावल के दाने से भी छोटी है। इस चिप को इंसान के दिमाग में लगाया जा सकता है, जहाँ से यह इलेक्ट्रिकल सिग्नल पकड़कर इन्फ्रारेड लाइट के जरिए बाहर भेजती है। इस खोज को न्यूरो टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। इस डिवाइस का नाम माइक्रोस्केल ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स टेदरलेस इलेक्ट्रोड (MOTE) है। यह अब तक का बनाया गया सबसे छोटा वायरलेस ब्रेन इम्प्लांट है। इस चिप को बनाने वाले कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता अलियोशा मोल्नार ने कहा कि यह अब तक का सबसे छोटा डिवाइस है जो दिमाग की एक्टिविटी को मापकर वायरलेस तरीके से भेज सकता है।

ब्रेन इम्प्लांट चिप क्या है?

ब्रेन इम्प्लांट चिप एक छोटी कंप्यूटर चिप होती है जिसे सर्जरी के जरिए इंसान के दिमाग में लगाया जाता है। इस चिप का मकसद दिमाग को सीधे कंप्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से जोड़ना है, ताकि गंभीर रूप से लकवाग्रस्त या दिव्यांग लोग भी सिर्फ अपने मन का इस्तेमाल करके कंप्यूटर कंट्रोल कर सकें। यह चिप दिमाग से निकलने वाले न्यूरल सिग्नल को पढ़ती है और उन्हें डिजिटल कमांड में बदल देती है। इससे कर्सर हिलाना, गेम खेलना या टाइप करना मुमकिन हो जाता है।

यह चिप कितनी छोटी है?

इस चिप की लंबाई करीब 300 माइक्रोन और चौड़ाई 70 माइक्रोन है। आसान शब्दों में कहें तो यह चिप इंसान के बाल जितनी पतली है। यह चिप दिमाग के सिग्नल को रोशनी में बदल देती है, जो दिमाग के टिशू से होते हुए एक रिसीवर तक पहुँचती है। शोधकर्ता 2001 से इस चिप पर काम कर रहे थे। इसे हकीकत बनाने में वैज्ञानिकों को करीब 20 साल लग गए।

यह चिप कैसे काम करती है?

यह चिप एल्यूमीनियम गैलियम आर्सेनाइड नाम के एक खास मटीरियल से बनी है। यह रोशनी के जरिए डेटा भेजती है और उसी रोशनी से एनर्जी भी लेती है। यह एक ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करती है जो रोशनी की पल्स के जरिए डेटा भेजती है। यह वही तकनीक है जिसका इस्तेमाल सैटेलाइट कम्युनिकेशन में किया जाता है।

चूहों पर किया गया प्रयोग सफल रहा

इस चिप का सबसे पहले लैब में उगाए गए सेल्स पर टेस्ट किया गया। बाद में इसे चूहों के दिमाग के उस हिस्से में लगाया गया जो उनकी मूंछों से मिली जानकारी को प्रोसेस करता है। इन टेस्ट से पता चला कि चिप ने एक साल से ज़्यादा समय तक दिमाग के सिग्नल को सही-सही रिकॉर्ड किया और चूहे पूरी तरह से स्वस्थ रहे।

वायरलेस टेक्नोलॉजी

मौजूदा ब्रेन चिप्स या इलेक्ट्रोड एमआरआई जैसी जांच के साथ काम नहीं करते। साथ ही, वे कभी-कभी दिमाग के टिशू को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। वहीं, माइक्रोस्केल ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स टेदरलेस इलेक्ट्रोड (MOTE) चिप ऐसे मटीरियल से बनी है जो एमआरआई के लिए सुरक्षित है और दिमाग को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती। वायरलेस होने की वजह से इसमें किसी तार की जरूरत नहीं होती, जिससे इन्फेक्शन जैसी संभावनाएँ खत्म हो जाती हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तकनीक सिर्फ दिमाग के लिए ही नहीं, बल्कि रीढ़ की हड्डी और शरीर के दूसरे नाजुक हिस्सों के लिए भी फायदेमंद हो सकती है। भविष्य में, इस तकनीक का इस्तेमाल सिंथेटिक खोपड़ी प्लेट लगाने या दूसरे टिशू से सिग्नल रिकॉर्ड करने के लिए किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि यह तकनीक भविष्य में ऐसे छोटे वायरलेस डिवाइस बनाने में मदद करेगी जो शरीर के अंदर लंबे समय तक रह सकें और दिमाग और नर्वस सिस्टम के कामकाज पर नजर रख सकें।