सार

एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हेल्थ सेक्टर से लेकर एग्रीकल्चर और एजुकेशन तक में हो रहा है, जो काफी फायदेमंद है। हाल के 'अनुमानों' से पता चला है कि सिर्फ जेनरेटिव एआई ही सालाना 2.6 ट्रिलियन डॉलर से लेकर 4.4 ट्रिलियन डॉलर तक वैक्यू बना सकता है।

टेक डेस्क : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI के आने से टेक्नोलॉजी में गजब की क्रांति आई है। धीरे-धीरे ही सही यह टेक्नोलॉजी अब लोगों की लाइफ में हिस्सा बन रही है। यही कारण है कि इस सेक्टर में काम करने वाली कंपनियां भी एआई को ज्यादा से ज्यादा आसान बनाने पर फोकस कर रही हैं। जितनी तेजी से दुनिया हाईटेक होती जा रही है, उसे देखते हुए एआई की उपयोगिता कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जा रही है। एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हेल्थ सेक्टर से लेकर एग्रीकल्चर और एजुकेशन तक में हो रहा है, जो काफी फायदेमंद है। हाल के अनुमानों से पता चला है कि सिर्फ जेनरेटिव एआई ही सालाना 2.6 ट्रिलियन डॉलर से लेकर 4.4 ट्रिलियन डॉलर तक वैक्यू बना सकता है।

AI के रिस्क कम करने पर फोकस

एआई एक तरफ जहां लाइफ को आसान बना रही है तो दूसरी तरफ इसके कई रिस्क फैक्टर भी सामने आ रहे हैं। जिसकी वजह से इसे लेकर दबाव भी बढ़ रहा है। इस कारण से इसमें लगातार इनोवेशन की जरूरत है। इस टेक्नोलॉजी में मोनोपॉली, प्रभुत्व और सुरक्षा से जुड़े रिस्क शामिल हैं। जनरेटिव एआई के दुरुपयोग से पैदा होने वाला खतरा, एआई डेटासेट और सिस्टम के जरिए असुरक्षा चिंता को बढ़ाता है।

एआई को रेगुलेट करने पर विचार 

यही कारण है कि एआई को लेकर एक रेगुलेटर का महत्व बढ़ जाता है। एआई के डेवलपमेंट और रेगुलेट करने के लिए तीन अलग-अलग अप्रोच सामने आ रहे हैं। पहला- संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में, दूसरा यूरोपीय संघ के नेतृत्व में और तीसरा चीन के नेतृत्व में। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और जापान जैसे देश रेगुलेशन और गाइडलाइन के जरिए एआई पर कंट्रोल करना चाह रहे हैं। जबकि यूरोपीय संघ और कनाडा-ब्राज़ील जैसे देश इसको लेकर सख्त हैं और कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं। चीन भी इसे लेकन अनुदेशात्मक दृष्टिकोण अपना रहा है। जिसकी वजह से एआई को लेकर अलग-अलग नजरिया बना हुआ है।

भारत और एआई

इन सबके बीच भारत जल्द ही 'तीसरी सबसे बड़ी एआई अर्थव्यवस्था' बनने जा रहा है। हालांकि, भारत ने अभी तक एआई पर कोई रुख नहीं अपनाया है। ऐसा लगता है कि भारत सरकार किसी तरह की कार्रवाई से पहले इस नई तकनीकि का आंकलन कर रही है और समय आने पर कोई कदम उठाएगी। भारत पश्चिम देशों की रेगुलेटरी सिस्टम से प्रभावित है। हालांकि, ये भी सच है कि वह खुद की नीति पर ही काम करती है। 'केंद्रीय बजट 2023' समेत कई जगह इसका उल्लेख किया गया है। 'डिजिटल इंडिया अधिनियम' के जरिए भी एआई को लेकर सरकार ने अपना इरादा साफ किया है। देश अपने राष्ट्रीय हित और सुरक्षा को साथ लेकर चलेगा। सरकार इसके खतरे को लेकर भी फोकस्ड है। एआई को लेकर भारतीय बाजार की भी अपनी चिंताएं हैं। कहा जा रहा है कि भारत स्लॉट के बजाय एआई प्रशासन के संबंध में अपना खुद का शासन बना सकता है।

एआई और अवसर

दुनिया में जहां एआई अवसर के दरवाजे खोल रहा है तो विकालशील देशों के लिए कई चुनौतियां भी बनी हुई हैं। ग्लोबल साउथ में पर्याप्त बुनियादी ढांचागत चुनौतियां और अलग डेटा शामिल हैं। जैसे-जैसे कई ग्लोबल साउथ देश अपनी एआई रणनीतियां बना रहे हैं। उनका मजबूत डेटा सुरक्षा और एआई नीतियों के अभाव से दुरुपयोग हो सकती है।

भारत निभा सकता है अहम रोल

एक बेहतर अप्रोच विकसित कर एआई से जुड़ी इन चिंताओं को दूर किया जा सकता है। इसकी मदद से विकालशील देश अपनी ताकत को बढ़ा सकते हैं। भारत के पास बढ़ती आबादी के कारण महत्वपूर्ण एआई डेटाबेस तैयार करने का अवसर है। जिससे वह ग्लोबर लीडर के तौर पर मजबूत हो सकता है। इसमें एआई काफी मदद कर सकता है। भारत अपना रुख विकसित कर दूसरे देशों को जोड़ने में अहम और प्रभावी भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र एक वैश्विक मंच है और एआई को रेगुलेट करने में काफी अलग स्थान रखता है। हाल ही में ग्लोबल एआई पर एक 'मल्टी स्टेकहोल्डर एडवाइजरी बॉडी' बनाया है। हालांकि, यह अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में कैसे काम करेगा ये देखने वाली बात होगी। भारत भी 'ग्लोबल इंटेलिजेंस (GPAI) शिखर सम्मेलन' के जरिए आर्टिफिशियल पर वैश्विक साझेदारी का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। भारत को जीपीएआई की आवश्यकता को उजागर करने के लिए अपनी अध्यक्षता का इस्तेमाल ग्लोबल साउथ के लिए बेहतर एआई सिस्टम तैयार करने में करना चाहिए।

एआई पर होगा अध्ययन

एआई को लेकर अलग-अलग विचार भी होना चाहिए। ब्रिक्स देशों ने हाल ही में एक एआई अध्ययन की घोषणा की है। एआई क्षमताओं पर शोध और आकलन करने के लिए समूह प्रयासरत है। हाल ही में अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में एआई के लिए क्षेत्रीय मंच भी बनाए हैं। इस सेटिंग में ग्लोबल साउथ देशों को ऐसे संस्थानों की पहचान करनी चाहिए जो मिलकर काम कर सकें।

भारत में एआई गवर्नेंस

भारत को एआई गवर्नेंस में नेतृत्व करने के लिए एक व्यापक रणनीति आवश्यक है। दूसरे क्षेत्रों की तुलना में एआई बुनियादी ढांचे के लिए सीमित क्षमता क्राइटेरिया बनाना शुरू कर दिया है। भारत को सामान्य रेगुलेटर बनाने में पार्टिसिपेट से पहले रूपरेखा तैयार करना चाहिए। ऐसा करने में उसे एक रणनीति की जरूरत होगी जो एआई के रिस्क से निपटते हुए उसका फायदा उठा सके। खासकर महत्वपूर्ण लागत पर ह्यूमन कैपिटल के लिए। जैसे-जैसे जीपीएआई पा आ रहा है, भारत अपनी रणनीति स्पष्ट कर रहा है, जो भारत को ग्लोबल साउथ में इस क्षेत्र का लीडर बना सकता है।