बेंगलुरु में एक टेक कर्मचारी की रेडिट पोस्ट वायरल, जिसमें उन्होंने 60 लाख की कमाई के बावजूद खराब सुविधाओं, भ्रष्टाचार और हाई टैक्स के कारण ज़िंदगी की मुश्किलों का ज़िक्र किया है। क्या भारत में अच्छी ज़िंदगी मुमकिन है, या विदेश ही विकल्प?

बेंगलुरु: बेंगलुरु में 60 लाख सालाना कमाई के बाद भी ज़िंदगी बेकार है। क्या अच्छी ज़िंदगी के लिए भारत छोड़ना पड़ेगा? एक टेक कर्मचारी का रेडिट पर ये पोस्ट खूब चर्चा बटोर रहा है। उनकी पोस्ट में लिखी बातें हर किसी के अनुभव में आती हैं। अच्छी सैलरी के बाद भी अच्छी ज़िंदगी क्यों नहीं मिल रही? हम ज़्यादा टैक्स देते हैं, फिर भी हमें अच्छी सुविधाएँ क्यों नहीं मिलतीं? अच्छी सड़कें नहीं, अच्छी स्वास्थ्य सेवा के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं, बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों में पैसे लगते हैं। तो फिर सुकून की ज़िंदगी के लिए हम क्या करें? ये सवाल उन्होंने उठाए हैं।

2.5 लाख रोड टैक्स दिया, मिला क्या?
बेंगलुरु के इस कर्मचारी की रेडिट पोस्ट खूब वायरल हो रही है। इसमें पूछे गए सवाल कई लोगों को परेशान कर रहे हैं। क्या भारत बदलेगा? या अच्छी ज़िंदगी के लिए हमें भारत छोड़ना होगा? ये सवाल उन्होंने किया है। यहाँ के भ्रष्टाचार और अन्याय से वो परेशान हैं। मूलभूत सुविधाएँ बहुत खराब हैं, हर सड़क गड्ढों से भरी है। सड़कों का डामर उखड़ा रहता है या फिर काम के नाम पर जगह-जगह खोदकर महीनों तक ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। लोग सोचते हैं कि आज सड़क ठीक हो जाएगी, कल ठीक हो जाएगी, लेकिन वो कभी ठीक नहीं होती। पूरे देश में बेंगलुरु में सबसे ज़्यादा रोड टैक्स है, फिर भी यहाँ की सड़कें खराब हैं। सिर्फ़ ३ कि.मी. जाने में ही हालत खराब हो जाती है। मैंने 2.25 लाख रोड टैक्स दिया है, बदले में मिला क्या? भयानक ट्रैफ़िक, हमेशा काम... ये दिनदहाड़े लूट के अलावा और क्या है? ये बातें टेक कर्मचारी ने अपनी पोस्ट में लिखी हैं।

कमाई का 30 से 40% टैक्स
हम अपनी कमाई का 30-40% टैक्स देते हैं, लेकिन मुफ़्त में अच्छी स्वास्थ्य सेवा नहीं मिलती, अच्छी शिक्षा नहीं मिलती, पानी भी नहीं मिलता। प्राइवेट स्कूलों को अलग से पैसे देने पड़ते हैं, प्राइवेट अस्पतालों को अलग से पैसे देने पड़ते हैं, पानी के टैंकरों के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं। मध्यम वर्ग की ज़िंदगी बहुत मुश्किल है।

कनाडा, जर्मनी जैसे देशों में भी ज़्यादा टैक्स देना पड़ता है, लेकिन वहाँ जो सुविधाएँ मिलती हैं, वो यहाँ क्यों नहीं मिलतीं? अच्छी ज़िंदगी यहाँ नहीं है। सड़कों पर सिर्फ़ धूल, शोर, तनाव है। आराम से चल भी नहीं सकते, साँस लेने के लिए साफ़ हवा नहीं है। शाम को 7 बजे के बाद पत्नी को अकेले कुछ लाने भेजना सुरक्षित नहीं लगता।

हर जगह रिश्वत, भ्रष्टाचार
हर तरफ़ भ्रष्टाचार है। एक मैरिज सर्टिफ़िकेट बनवाने के लिए इतना भटकना पड़ा कि आखिर में 2000 रुपये रिश्वत देकर बनवाना पड़ा। पैसे दिए बिना कुछ नहीं होता। घर का किराया हर साल 10% बढ़ता है, स्कूल की फ़ीस तो पूछो ही मत। कमाई से ज़्यादा यहाँ खर्चा है।

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उम्मीद रखें या ये हमारी बेवकूफ़ी है?
इतना सब होने के बाद भी अपने देश के लिए कुछ करना चाहता हूँ, लेकिन भारत कब बदलेगा? ये हालात कब बदलेंगे? कब अच्छी सुविधाएँ मिलेंगी? मैं सच में पूछ रहा हूँ, क्या कोई उम्मीद बाकी है या ये सोचना ही हमारी बेवकूफ़ी है कि कुछ बदलेगा?

इस पोस्ट पर कई कमेंट आए हैं। किसी ने कहा, "ये हालात कभी नहीं बदलेंगे।" तो किसी ने कहा कि यहाँ राजनीति और धर्म के झगड़ों से लोगों को सुकून नहीं है। जर्मनी में रहने वाले एक व्यक्ति ने लिखा कि मुझे अपना परिवार, लोग, संस्कृति सब याद आते हैं, वापस आना चाहता हूँ, लेकिन यहाँ मुझे अच्छी ज़िंदगी मिल रही है।