2 June ki Roti: विशेषज्ञों की मानें तो यह कहावत करीब छह सौ साल पुराना है। यह आज की तारीख को लेकर नहीं कहा गया बल्कि, दो समय यानी रोज सुबह और शाम के भोजन के प्रबंध और इसमें आने वाली मुश्किलों तथा चुनौतियों को लेकर कही गई थी। 

नई दिल्ली। 2 June ki Roti:दो जून की रोटी बड़े नसीब वालों को मिलती है। यह बात हम बचपन से अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनते और किताबों में पढ़ते आ रहे हैं। इसके लिए लोगों को किस-किस तरह के जुगाड़ करने पड़ते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं। तो सबसे पहले आज रोटी खाइए, क्योंकि आज दो जून है। 

हालांकि, हमारे बड़े-बुजुर्गों के कहने का मतलब सिर्फ आज यानी दो जून तारीख को खाई गई रोटी से नहीं था। उनका मतलब था कि रोज दोनों समय यानी दिन और रात के लिए रोटी का जुगाड़ करने के लिए इंसान को कितने तरह के पापड़े बेलने पड़ते हैं। किन-किन दुश्वारियों से उसे गुजरना होता है। यही कहावत लोगों ने दो जून तारीख से भी जोड़ दी है और आज के दिन को इसके लिए खास महत्व देते हैं। 

करीब छह सौ साल पुरानी कहावत आज सच होती दिख रही 
वहीं, हर साल 2 जून की रोटी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगता है। इसकी बड़ी वजह है कि युवा पीढ़ी इस कहावत को आज की तारीख यानी 2 जून की रोटी से जोड़ती है। दो जून का अवध भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है दो समय या फिर दो टाइम, जिसे हम रोज की दिनचर्या में सुबह-शाम भी कह सकते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार, यह कहावत कोई साल दो साल या फिर दस-बीस साल से नहीं कही जा रही। यह बात हमारे पूर्वज बीते करीब छह सौ साल से प्रयोग कर रहे हैं। 

दो जून की रोटी का महत्व वही समझ रहा, जो मेहनत से कमाकर खा रहा 
हालांकि, आज भी बहुत से लोगों से पूछा जाए तो वे इसे नहीं समझते होंगे। उनके लिए यह बात आज की तारीख से ही जोड़कर देखी जाती है। मगर देखा जाए तो जिस तरह महंगाई बढ़ गई है और लोगों के लिए घर का खर्च चलाना किसी चुनौती से कम नहीं है, उसमें बुजुर्गो की यह कहावत सच साबित होती दिख रही है कि दो जून की रोटी बड़े नसीब वालों को ही मिलती है। सच है कि आज घर का खर्च चलाने के लिए लोगों को तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं। ऐसे में दो जून की रोटी का महत्व वही समझ सकता है, जो मेहनत से कमाकर इसे खा रहा है। तो अब शायद आप समझ गए होंगे कि असल में दो जून की रोटी का अर्थ क्या है। 

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