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World Labour Day 2023 : ऐसे हुई थी प्रतिदिन 8 घंटे काम करने की शुरुआत, अपनी मांगों के लिए सैंकड़ों मजूदरों ने खाई थीं गोलियां
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कई मजदूरों का बहा था खून
इस दिन को मनाने का उद्देश्य मजदूरों और श्रमिकों के हक और अधिकारों के प्रति जागरुकता फैलाना और उनकी उपलब्धियों का सम्मान करना है। हालांकि, मजदूर दिवस (Labour Day) की शुरुआत इतनी आसान नहीं थी, इसमें कई मजदूरों का खून बहा था। आइए जानते हैं…
पहले करना होता था 12-15 घंटे काम
इतिहासकारों के मुताबिक पहले मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 को हुए एक आंदोलन से हुई थी। अमेरिका में उस दौर में मजदूरों से प्रतिदिन 12 से 15 घंटे जबरन काम कराया जाता और अवकाश भी नहीं दिया जाता था। इससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा था। जिसके बाद मजूदरों ने अपने हक की लड़ाई लड़ना शुरू की।
मजदूरों पर दागी गोलियां
1 मई 1886 को शिकागो के हेमार्केट (Haymarket Affair) में हजारों मजदूरों ने अपने हक के लिए प्रदर्शन करना शुरू किया था। उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने बम और गोली दागना शुरू कर दिया, जिससे दंगे भड़क उठे। इसमें कई मजदूरों की जान गई और सैंकड़ों घायल हुए, जिसके बाद पूरे विश्व में मजदूरों के हक के लिए आवाजें उठने लगीं।
आंदोलन के तीन साल बाद हुआ ये फैसला
इस आंदोलन के लगभग 3 साल बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की एक अहम बैठक बुलाई गई। इसी बैठक में तय किया गया कि मजदूर, श्रमिक या अन्य किसी तरह का सेवा कार्य करने वाले व्यक्ति से केवल दिन के 8 घंटे ही काम लिया जा सकेगा और उन्हें सप्ताह में कम से कम एक बार अवकाश दिया जाएगा।
कई देशों में लागू हुआ ये नियम
1889 के अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ही 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया, साथ ही हर साल 1 मई को वैश्विक अवकाश रखने का फैसला किया गया। अमेरिका में आठ घंटे काम करने के नियम के बाद भारत समेत कई देशों में इस नियम को लागू किया गया।