सार

आज शहीद दिवस (Shaheed Diwas 2022) पर देशभर में भगत सिंह (Bhagat Singh), सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar) और शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru) को याद किया जा रहा है। आजादी के इन तीनों दीवानों ने अपनी शहादत से देशभर में क्रांतिकारियों में एक नया जोश, नया जज्बा और नई हिम्मत भर दी थी। 
 

नई दिल्ली। 23 मार्च को देशभर में शहीद दिवस मनाया जा रहा है। आज के दिन ही भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। इन तीनों क्रांतिवीरों को लाहौर साजिश के आरोप में फांसी पर लटकाया था। अंग्रेजी सरकार द्वारा पूरी प्रक्रिया गलत और जबरदस्ती की जा रही थी, बावजूद इसके आजादी के तीनों दीवानों ने कोई विरोध नहीं किया और हंसते-हंसते फांसी पर लटक गए। 

सुखदेव थापर के जीवन से जुड़ी बहुत सी जानकारियां लोगों को नहीं पता। उनके परिवार, परवरिश, शिक्षा, भगत सिंह से मुलाकात और कैसे वे आजादी के संघर्ष में शामिल हुए। 23 मार्च 1931 को जब उन्हें फांसी पर लटकाया गया, तब उनकी उम्र भी महज 23 साल ही थी। आइए जानते हैं सुखदेव थापर के जीवन से जुड़े कुछ अनसुने तथ्य। 

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भगत सिंह और सुखदेव का जन्म एक ही साल और एक ही शहर में हुआ था 
सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर था। उनका जन्म पंजाब के लायलपुर में 15 मई 1907 को हुआ था। उनके पिता का नाम रामलाल थापर और मां का नाम रल्ली देवी था। सुखदेव  के जन्म के तीन महीने बाद ही उनके पिता स्वर्गवास हो गया था, इसलिए इनकी परवरिश ताऊ अचिंतराम ने की। सुखदेव थापर और भगत सिंह लाहौर नेशनल कॉलेज के स्टूडेंट थे। हैरान करने वाली बात यह है कि सुखदेव और भगत सिंह दोनों ही 1907 में लायलपुर में पैदा हुए और दोनों की मौत भी एकसाथ हुई। 

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जेल में बंद क्रांतिकारियों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध भी आवाज उठाई 
सुखदेव थापर ने भगत सिंह, कॉमरेड रामचंद्र और भगवती चरण बोहरा के साथ मिलकर लाहौर में नौजवान भारत सभा गठित की थी। कहा जाता है कि लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सुखदेव क्रांतिकारी बने थे। यही वजह थी कि वे भगत सिंह और शिवराम राजगुरु के साथ आजादी की जंग में कूद पड़े थे। इसके अलावा, सुखदेव ने आजादी के आंदोलन में शामिल होकर 1929 में जेल में बंद क्रांतिकारियों के साथ हो रहे अन्याय के विरुद्ध भी आवाज उठाई। 

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तय तारीख से एक दिन पहले दी गई फांसी 
सुखदेव थापर, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने मिलकर सांडर्स की हत्या भी की। गांधी-इर्विन समझौते को लेकर एक ओपन लेटर गांधी जी के नाम इंग्लिश में लिखा था। इसमें उन्होंने गांधी जी से तमाम सवाल किए थे। इसका जवाब उन्हें यह मिला कि फांसी की तय तारीख 24 मार्च 1931 से एक दिन पहले ही 23 मार्च 1931 की शाम करीब 7 बजे तीनों क्रांतिकारियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को लाहौर के केंद्रीय कारागार में फांसी पर लटका दिया गया।